ज्ञानवापी परिसर की वैज्ञानिक जांच की मांग पर मस्जिद पक्ष की दाखिल आपत्ति में दावा जज ने अगली सुनवाई के लिए सात जुलाई की तारीख दी

वाराणसी (ब्यूरो)ज्ञानवापी परिसर (बैरिकेङ्क्षडग के अंदर का भाग) की वैज्ञानिक जांच कराने के मंदिर पक्ष के प्रार्थना पत्र पर मस्जिद पक्ष ने सोमवार को जिला जज की अदालत में आपत्ति दाखिल की। इसमें दावा किया कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर तोडऩे का फरमान नहीं जारी किया था। जज ने अगली सुनवाई के लिए सात जुलाई की तारीख दी है.

दिया प्रार्थना पत्र

ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवङ्क्षलग की कार्बन डेङ्क्षटग का इलाहाबाद हाई कोर्ट से आदेश मिलने के बाद गत मंगलवार को मंदिर पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन, सुधीर त्रिपाठी ने पूरे ज्ञानवापी परिसर की वैज्ञानिक जांच के तीन प्रार्थना पत्र दिए थे। ङ्क्षहदू धर्मावलंबियों के विश्वास का हवाला देते हुए कहा था कि सदियों से ज्ञानवापी में भगवान का मंदिर है और उसमें स्वयंभू ज्योर्तिङ्क्षलग है.

मंदिर के साक्ष्य

मुगल शासक औरंगजेब के फरमान पर 1669 में मंदिर को तोड़ा गया और वहां मस्जिद बनाई गई, जो पुराने मंदिर के खंभों पर स्थित है। वहां मंदिर होने के तमाम साक्ष्य हैं, जो एडवाकेट कमिश्नर की कार्यवाही में दिखे भी थे। साक्ष्यों की जांच भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआइ) से कराई जा सकती है। अयोध्या के राम मंदिर समेत कई मामलों में अदालत की ओर से एएसआइ जांच का आदेश दिया गया था.

गलत व झूठ है

मस्जिद पक्ष के वकील एखलाक अहमद व रईस अहमद ने कहा कि पुराने मंदिर को मुस्लिम आक्रमणकारी ने तोड़ा और 1580 में उसी स्थान पर राजा टोडरमल ने पुन: मंदिर स्थापित किया, सरासर गलत व झूठ है। औरंगजेब निर्दयी नहीं था और न उसके फरमान पर 1669 में मंदिर तोड़ा गया। काशी में दो विश्वनाथ मंदिर (पुरानी व नए) के होने की कोई धारणा कभी नहीं थी। जो इमारत मौके पर है, वह आलमगीरी-ज्ञानवापी मस्जिद हजारों साल से है.

फव्वारा है आकृति

बीते वर्ष एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही में मिली आकृति फव्वारा है। अयोध्या का प्रकरण व वर्तमान मुकदमे में जमीन-आसमान का अंतर है। 1991 में दाखिल प्राचीन मूर्ति बनाम अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद वगैरह मुकदमा सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) की अदालत में विचाराधीन है। इसमें आठ अप्रैल 2021 को एएसआइ के सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था.

हाईकोर्ट में आदेश सुरक्षित

इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर आदेश सुरक्षित है। ऐसे में उन ङ्क्षबदुओं पर दोबारा उसी संपत्ति के बाबत एएसआइ सर्वे का औचित्य ही नहीं है। बीते वर्ष एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही की रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की जा चुकी है। इसका निस्तारण होना शेष है। मस्जिद की खोदाई की मंदिर पक्ष की ओर से मांग की गई है। इससे तो मस्जिद ही ध्वस्त हो जाएगी और प्रतिवादी के अहम साक्ष्य नष्ट हो जाएंगे। कार्बन डेङ्क्षटग के हाई कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही रोक लगा चुका है.

Posted By: Inextlive