अधिकतर वादे पूरे, पर कुछ रह गए अधूरे
वाराणसी (ब्यूरो)। कश्मीर के पुलवामा जिले में 14 फरवरी 2019 को हुए हमले में सीआरपीएफ के कुल 40 जवान शहीद हुए थे। इसमें दो जवान वाराणसी के चिरईगांव निवासी रमेश यादव व पड़ाव के अवधेश यादव भी शामिल थे। आज भी गली-मुहल्ले और गांवों में उनकी वीरता की कहानी सुनाई देती है। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संख्या पर तिरंगा यात्रा के दौरान शहीदों की याद में गगनभेदी नारे लगाए गए, लेकिन उन्हें याद कर परिवारों की आंखों से आंसू की धारा बह रही थी। इनकी शहादत पर परिवार को गर्व है, लेकिन आज भी उनकी कमी खलती है। इस घटना के चार साल पूरे हो गए हैं। शहादत के बाद सरकार की ओर से किए गए वादों में अधिकतर पूरे तो कुछ अधूरे ही रह गए। शहीद जवानों की पत्नियों को नौकरी तो मिल गई, लेकिन सामाजिक सम्मान की दरकार है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शहीद जवानों के परिवार क्या कहते हैं। आइए आप भी जानिए
गांव के बाहर गेट व मूर्ति अभी नहीं लगी.पड़ाव के गांव बहादुरपुर के रहने वाले सीआरपीएफ में हेड कांस्टेबल अवधेश यादव पुलवामा हमले में शहीद हो गए। देश सेवा पर कुर्बान होने वाले बेटे के लिए एक तरफ बाप होने के नाते गहरा दु:ख था तो दूसरी तरफ पूरा क्षेत्र उसको अपना बेटा मान रहा था। देशभक्ति का जज्बा, देश के लिए प्रेम और शहीद बेटे के सम्मान को देखकर गर्व से छाती चौड़ी हो रही थी। पिता हरिकेश का रुंधा हुआ गला और डबडबाई हुई आंखें। खुद को संभालते हुए बताते हैं कि बेटे का सपना था कि नया घर बने। उसके जाने के बाद जब नया घर बनकर तैयार हुआ तब कुछ दिन बाद ही कैंसर से पीडि़त उनकी मां मालती देवी का भी निधन हो गया। मां-बेटे दोनों का नए घर में रहने का सपना अधूरा ही रह गया। पिता हरिकेश यादव बताते हैं कि बेटे के शहादत के बाद सरकार की तरफ से तमाम वादे किए गए थे। बहू को नौकरी मिल गई। परिवार का भरण-पोषण चल रहा है, लेकिन बेटे के नाम से गांव के बाहर गेट और मूर्ति लगाने का वादा अभी अधूरा ही है। हमने शहीद अवधेश यादव की पत्नी शिल्पी यादव से फोन कर बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो सकी। शिल्पी यादव के ससुर ने बताया कि वह मुगलसराय में मायके यानी पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर में रहती हैं। राज्य सरकार की तरफ से उन्हें कलेक्ट्रेट में बड़े बाबू की नौकरी मिली है।
पुलवामा में शहीद रमेश यादव
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स यानी सीआरपीएफ की 78 बसों का काफिला कश्मीर के पुलवामा जिले से गुजर रहा था। इन बसों में कुल 2500 जवान सवार थे। दोपहर के करीब 3.30 बज रहे थे। भारत मां के लाल बसों में आराम से बैठे थे। काफिला अपने तय रूट पर आगे बढ़ रहा था। कुछ जवान बस में गुनगुना रहे थे, कुछ चुटकुले सुना रहे थे, कुछ ठहाका लगा रहे थे और कुछ जम्हाई ले रहे थे। सड़क की दूसरी तरफ से आ रही एक एसयूबी ने काफिले के साथ चल रही एक बस में टक्कर मार दी। एसयूबी जैसे ही जवानों के काफिले से टकराई, वैसे ही उसमें जबरदस्त विस्फोट हो गया. विशाल पांडेय के नाम पर कुछ नहीं. बडग़ाम में 27 फरवरी 2019 को हुए हेलीकप्टर क्रैश में वाराणसी के विशाल पांडेय शहीद हो गए थे। वह वायुसेना में सहायक इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। विशाल पांडेय का पैतृक गांव रोहनिया थाना के काशीपुर में है। उनके पिता विजय शंकर पांडेय लगभग 20 वर्षों से हुकुलगंज अर्बनहाट के सामने मकान बनाकर रहते हैं। विजय शंकर पांडेय बताते हैं कि बेटे की शहादत के बाद सरकार की ओर से तमाम वादे किए गए थे, लेकिन सिर्फ बहू को नौकरी मिली। इसके अलावा कुछ नहीं मिला। वादा किया गया था कि बेटे के नाम से रोड, भव्य गेट और मूर्ति लगवाई जाएगी। चार साल हो गए, लेकिन अभी तक सारे वादे सिर्फ वादे ही रह गए। बहू को लखनऊ में नौकरी मिली तो वह दूर हो गई। अब तो बात भी नहीं होती है। बेटी वैष्णवी पाण्डेय का इंदौर एकेडमी में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने दाखिला कराया है। पढ़ाई सकुशल अच्छे से हो इस खातिर प्रियंका गांधी ने वैष्णवी पाण्डेय के खातिर लैपटॉप भेंट में भेजा है.शहर से 20 किलोमीटर दूर चौबेपुर थाना अंतर्गत तोफापुर गांव के रहने वाले रमेश यादव को पुलवामा हमले में शहीद हुए चार साल से अधिक गुजर गए। शहीद रमेश यादव की पत्नी रेनू को सरकारी नौकरी मिल गई। सरकार की ओर से कुछ वादे भी पूरे किए गए हैं। पत्नी रेनू कहती हैं कि उन्हें सरकारी नौकरी तो मिल गयी है। आज वो उसी के सहारे दिन काट रही हैं। वो कहती हैं कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वो देश के लिए शहीद हो गये। लेकिन इस नौकरी के अलावा सरकार ने कुछ नहीं दिया। कोई भी वादा पूरा नहीं किया। किसी तरह उनकी यादों के सहारे जिंदगी कट रही है। गांव में उनके पति के नाम भव्य गेट और मूर्ति लगाने की बात कही गई, लेकिन सिर्फ खानापूर्ति हुई है। शहीद के नाम से स्मारक और ग्राउंड बनेगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। बेसिक विभाग के शिक्षकों ने शहीद रमेश यादव के परिजनों की मदद के लिए एक दिन का वेतन दिया था, लेकिन विभाग की ओर से अभी तक वह फंड मुझे नहीं मिला है। इस संबंध में बेसिक विभाग के अधिकारी और डीएम से गुहार लगाई, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला। शहीद के परिवारों के साथ ऐसा बर्तात ठीक नहीं है। शहादत पर आंसू पोछने वालों की भीड़ थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, सुध लेने का टोटा पड़ गया। रमेश के वृद्ध पिता श्याम नारायण यादव पेट भरने के लिए हाड़-तोड़ मेहनत करते हैं और दूध बेचने साइकिल से शहर जाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार और उसके नुमाइंदे तो हमको भूल ही गए हैं। कुछ माह पहले प्रदेश सरकार की पहल पर ग्राम मिल्कोपुर उमरहा वाया तोफापुर मार्ग का नाम पुलवामा हमले के शहीद रमेश यादव मार्ग हो गया है।
कैसे हुआ था पुलवामा हमला