मथुरा को बनाना था दंतेवाड़ा
-जवाहरबाग बन गया था नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर
-सत्याग्रही बन उठाया नियमों की लाचारी का फायदा -यूपी के गाजीपुर, मिर्जापुर समेत अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लोग थे कैम्प में मौजूद -इरादा था साफ, कोई भी अंदर आया तो जान लेनी है -रेकी टीम पर पथराव और फायरिंग का जवाब देने दाखिल हुए थे अफसर kumar.abhishek@inext.co.in VARANASIछत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा मतलब नक्सलियों का राज। कुछ ऐसा ही राज जवाहरबाग में जमा सत्याग्रही मथुरा पर करना चाहते थे। इसकी तैयारी भी कर ली थी। सत्याग्रह की आड़ में हथियारों का जखीरा जमा किया था तो खाकी वर्दी को जवाब देने के लिए बारूद का ढेर लगा दिया था। खूंखार नक्सलियों को पैदा करने के लिए जवाहर बाग को ही ट्रेनिंग सेंटर बना दिया था। गलती न पुलिस की प्लानिंग में थी और न ही जल्दबाजी हुई थी। उनका इरादा साफ था कि जो भी जवाहर बाग के अंदर प्रवेश करेगा, उसे मौत की नींद सुलाना है। यह कहना है मथुरा कांड के प्रत्यक्षदर्शी एक सीनियर पुलिस अफसर का। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि घटना में जो भी हुआ, सब सत्याग्रहियों की सोची-समझी साजिश थी। उनका इरादा क्या था? यह तो कहना मुश्किल है। मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे यूपी को भी छत्तीसगढ़ की तरह बनाकर राज करने के फिराक में थे।
सत्याग्रह करने पर नहीं होती चेकिंग मीडिया से लेकर जानकारों के बयान में सिर्फ एक ही बात आ रही है कि आखिर पुलिस ने पहले कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? इस बारे में जब प्रत्यक्षदर्शी अफसर से पूछा गया तो उनका जवाब था कि सत्याग्रही चालाक हैं। उन्होंने नियमों का फायदा उठाया। कहीं भी सत्याग्रह करने या धरना देने वालों की चेकिंग नहीं होती। इसी आड़ में उन्होंने हथियारों के जखीरा के साथ लोगों का हुजूम इकट्ठा कर लिया। इस खेल में उन्होंने महिलाओं और बच्चों को भी शामिल किया। जिनके सामने पुलिस अक्सर कार्रवाई करने से कतराती है। रेकी टीम को बचाने गए थे अफसरप्रत्यक्षदर्शी अफसर के मुताबिक जवाहर बाग को खाली कराने की प्लानिंग में कोई कमी नहीं थी। रेकी टीम अभी जवाहर बाग में दाखिल ही हुई थी कि अचानक सत्याग्रहियों ने पत्थर फेंकना और गोली चलाना शुरू कर दिया। टीम को बचाने के लिए पुलिस अफसर बाग के अंदर दाखिल हुए। तभी सत्याग्रहियों ने अपने घर के छप्परों में आग लगा दी। महिलाएं और बच्चे भी होने के कारण पुलिस उन्हें सेफ करने में लगी हुई थी कि इसी बीच सत्याग्रहियों ने उन्हें ही अपना शिकार बना लिया और एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी, एसओ संतोष कुमार यादव की मौत हो गई।
पैसे की आपूर्ति करते थे नक्सली दो साल से जवाहर बाग में करीब तीन हजार से अधिक लोग सत्याग्रह की आड़ में डटे थे। सभी के लिए तीन टाइम का भोजन और असलहों का भारी जखीरा आखिर कहां से आ रहा था, इसका जवाब अब तक किसी ने जानने की कोशिश नहीं की। इस बारे में प्रत्यक्षदर्शी अफसर की मानें तो सत्याग्रहियों को नक्सलियों का सपोर्ट था। वे ही इनकी हर जरूरतों को पूरी करते थे। सत्याग्रहियों तक इतने रुपए पहुंचते थे कि वे ऐशोआराम के साथ जीवन व्यतीत कर रहे थे। विस चुनाव में दिखानी थी ताकत सत्याग्रहियों का सरगना रामवृक्ष राजनीतिक महत्वाकांक्षी था। काफी प्रयास करने के बावजूद राजनीति में पहचान न बना पाने से निराश रामवृक्ष को अब विधानसभा चुनाव का इंतजार था। वह अपनी नक्सली टीम के जरिए प्रदेश में ताकत दिखाना चाहता था। उसकी मांगें भी इस तरह की थीं कि जो कम पढ़े-लिखे लोगों को प्रभावित कर सकें। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता, इसकी फौज लंबी होती जाती और ताकत में भी इजाफा होता जाता। ---------------- वर्जनहथियारों को बाग में छिपाकर, पेड़ों पर, जमीन के अंदर गाड़ कर रखा था। अंदर नक्सली थे। पुलिस टीम ने अंदर तलाशी की है।
-डीसी मिश्र, आईजी आगरा जोन