Varanasi news: पैरेंट्स के सेप्रेशन से टेंशन में बचपन
वाराणसी (ब्यूरो)। पैरेंट्स के सेप्रेशन की वजह से उन मासूम ब'चों की जिंदगी तबाह हो रही है, जिनका कोई कसूर भी नहीं है। कोर्ट में लगातार बढ़ रहे डायवोर्स के केस में ब'चे बुरी तरह से पीस रहे हैं। इससे न सिर्फ वे परेशान हो रहे हैं, बल्कि उनके मेंटल हेल्थ पर भी गहरा असर पड़ रहा है.
केस-1
फैमिली कोर्ट में आई एक मासूम बच्ची ने कहा, जज अंकल मैं बड़ी होने से डरती हूं, जब भी मैं कोर्ट में औरतों की लंबी लाइन देखती हूं तो दुआ करती हूं कि मुझे बेटी पैदा न हो, अंकल जो मुजरिम है आप उनको तो सजा दे देंगे, लेकिन मुझे अभी जो सजा मिल रही है, उसका क्या। ये सब तो अपने-अपने घमंड में खुश हैं। तलाक लेने-देने वाले क्यों ये नहंी सोचते कि मुझ जैसे बेटियां और बेटे उम्र भर एक घराने को तरसेंगे। हमें पैसा प्रॉपर्टी नहीं, मां-बाप का साथ चाहिए। जज अंकल सजा इन्हें नहीं मुझे सुनाई जाए।
केस-2
चार दिन पहले दिल्ली के फैमिली कोर्ट में 9 साल से चल रहे तलाक के एक केस में सुनवाई अंतिम चरण में चल रही थी। इस दौरान पहुंचे कपल्स के 11 साल के बेटे से जब जज ने पूछा कि वह किसके पास रहना चाहता है तो उस बच्चे ने अपने मां-बाप के रिश्ते को बचाने के लिए कहा कि मुझे दोनों के साथ रहना है। अगर ऐसा नहीं होता तो मुझे भी मम्मी-पापा से तलाक दे दीजिए। बच्चे के इस फैसले के बाद कपल्स ने न सिर्फ तलाक का फैसला वापस लिया, बल्कि वे साथ रहने को भी तैयार हो गए।
ये तो सिर्फ दो बच्चों की कहानी है। बनारस के फैमिली कोर्ट में भी ऐसे सैकड़ों बच्चे आ रहे हैं, जो अपने मम्मी-पापा के तलाक को लेकर कोर्ट में बेहद भावुक हो जाते हैं और मां-बाप दोनों के साथ रहने की जिद जज से करते हैं, लेकिन उनके पैरेंट्स की जिद और अहंकार के आगे उनके बच्चों की कोई नहीं सुनता। मां-बाप के बीच बिगड़ते रिश्तों की वजह से बच्चों की बिगड़ती स्थिति पर पढि़ए यह रिपार्ट
एकाकी जीवन को विवश
परिवार कल्याण विशेषज्ञ रेखा श्रीवास्तव बताती हैं कि माता-पिता का तलाक होने पर बच्चों को इसका दंश सबसे अधिक झेलना पड़ता है, क्योंकि बिना किसी कारण के ही बच्चों का अपने तमाम रिश्तों से अलगाव हो जाता है। पिता मिलता है तो मां नहीं मां मिलती है तो पिता नहीं। ननिहाल या ददिहाल या कभी-कभी दोनों से यहां तक कि कई बार तो सगे भाई बहन भी माता पिता के बीच बंट जाते हैं.
अच्छी नजर से नहीं देखते
रेखा बताती है कि कई बार जब ऐसा बच्चा अन्य बच्चों के रिश्तेदारों के साथ इमोशनल बॉडिंग को देखता है तो अपने जीवन के खालीपन के लिए अपने पैरेंट्स को दोषी मान कर उनके प्रति नकारात्मक विचारों से भर जाता है। कुंठित होने से उसमें हीन भावना जन्म लेने लगती है। वहीं समाज में आज भी तलाकशुदा महिला या उसके बच्चे को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता।
आत्मीय रिश्तों से तलाक
उनका कहना है कि कई बार बेटे की चाहत में बेटियां होने पर पति नाहक ही पत्नी को तलाक देने पर आमादा होता है तो कई बार करियर की महत्वाकांक्षा में तलाक की नौबत आ जाती है। कई बार पति और पत्नी पक्ष की बेवजह की खींच तान या वर्चस्व की लड़ाई में तलाक होते हैं जो कि वास्तव में जाने अंजाने बच्चों का उनके तमाम आत्मीय रिश्तों से तलाक करा देते हैं। बच्चे को पारिवारिक संस्कार नहीं मिल पाता.
छवि बनाते दागदार
बच्चा जिस भी पैरेंट्स के पास रहता है वह खुद को सही ठहराने की कोशिश में बच्चे के मन में उसके अलग रह रहे माता या पिता की छवि को इतना अधिक दागदार नकारात्मक बना देता है कि पूर्वाग्रह ग्रसित होने के कारण विवाह के बाद वह अपने जीवन साथी पर भी विश्वास करने से डरता है और छले जाने की आशंका में अपना मैरिटल लाइफ बर्बाद कर बैठता है.
ये बच्चों के गुनहगार
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के एक्सपर्ट एडवोकेट अंशुमान त्रिपाठी बताते हैं कि सिटी में ऐसे कई केसेस लगातार आए हैं और आ भी रहे हैं, जिसमें माइनर बच्चे तलाक लेने वाले अपने माता-पिता को लेकर बेहद डिस्टर्ब रहते हैं। जो लोग भी तलाक का केस फाइल कर रहे हंै, उसमें ज्यादातर बच्चे की कस्टडी को लेकर भी लड़ाई लड़ते हैं। ऐसे में उनके बच्चे जब कोर्ट में आते हैं तो वे पैरेंट्स के झगड़े देखकर बेहद ही मायूसी वाली स्थिति में आ जाते हैं।
कोर्ट तलाक के पक्ष नहीं
उनका कहना है कि कोर्ट कभी भी तलाक के पक्ष में नहीं रहा है, अगर ग्राउंड नहीं बनता है तो केस डिसमिस हो जाता है। हां अगर लगाए गए एलिगेंसेस साबित हो जाते हैं तो ये आसानी से मिल जाता है। फिर भी कोर्ट प्रयास करता है कि दोनों अलग न हों। खासकर जब कपल्स का छोटा बच्चा होता है। इसके लिए कोर्ट बकायदा मीडिएशन कराती है। अब हर कोर्ट में एक कंसिलिएटर नियुक्त कर दिया गया है, जो दोनों पार्टी की काउंसिलिंग करती है। ताकि मां-बाप से बच्चों का रिश्ता ना टूटे.
कपल्स में आएगी समझ
एडवोकेट सौरभ श्रीवास्तव कहते हैं कि शादी जैसे रिश्ते को निभाने के लिए पहले मेंटली, फिजिकली और सामाजिक रूप से मेच्योर्ड होना पड़ेगा। दोनों को मेच्योर्ड होना होगा, तभी आप किसी रिश्ते को निभा पाएंगे और जब रिश्ते बने रहेंगे तो बच्चों पर आज जो बीत रहा है वो नहीं होगा। जिस रिलेशन में मेच्योरिटी नहीं है, वैसे लोगों के बच्चे ही इस स्टेज तक पहुंच रहे हैं। फैमिली कोर्ट में 40 टू 50 परसेंट केसेस ऐसे हैं जो जालसाजी का शिकार होकर आ रहे हैं। इसमें 40 परसेंट केस अपने आप खारिज भी हो जाते हैं.
मायका पक्ष बन रहा कारण
उनका कहना है कि कई ऐसे केस सामने आए हैं, जिसमें पाया गया है कि महिलाओं का इगो सातवें आसमान पर है। अगर महिला की गलती है तो वो इगो में आकर तलाक ले लेती है, फिर कुछ समय के बाद उसके साथ उसके बच्चे को भी सारी समस्या झेलनी पड़ती है। एक ऐसा केस आया था जिसमें लड़की ने इगो मे आकर तलाक का केस फाइल कर दिया था। उसका एक बच्चा भी था, लेकिन महिला अपने 10 साल के बेटे को उसके पिता तक से मिलने तक नहीं दे रही थी.
कोर्ट पहुंचने वाले ज्यादातर मामले आपस में बातचीत से हल हो सकते हैं, लेकिन पक्षकारों के अहम बाधक साबित हो रहे हैं। न्यायालय में मध्यस्थता के जरिये अधिकतर मामले सुलझाये जा रहे हैं। इससे तलाक की दहलीज तक पहुंचे मामलों में भी समझौता होता है और परिवार बिखरने से बच जाते हैं.
रेखा श्रीवास्तव, परिवार कल्याण विशेषज्ञ
यह सही है कि उनके सारे रिश्तेदारों से संबंध खत्म हो जाता है, लेकिन बच्चे से पिता का संबंध कभी नहीं खत्म होता। तलाक के बाद भी महिला को उसके बच्चे के पिता या पिता को उसकी मां का नाम तो बताना ही होगा। इस टाइटल को बच्चों से कोई नहीं छीन सकता। इसके लिए बकायदा एक्ट भी है। सेक्शन 26 के अंतर्गत कोर्ट नाबालिग बच्चे से मिलने का अधिकार देती है.
अंशुमान त्रिपाठी, सीनियर एडवोकेट-डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
यह मां-बाप की जिम्मेदारी है कि वे देखें कि उनकी बेटी या बेटा शादी के लायक है या नहीं, उसमें मेच्योरिटी आई है या नहीं। जब तक उसमें रिश्तों के महत्व या दुनियादारी की समझ नहीं होगी, तब तक वह शादी को कभी भी अच्छे से नहीं निभा सकते। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान मासूम बच्चों का हो रहा है.
सौरभ श्रीवास्तव, एडवोकेट-डिस्ट्रिक कोर्ट
जब किसी का तलाक होता है तो बच्चा किसी एक नहीं दोनों के पास रहना चाहता है। अगर डायवोर्स हो गया तो ऐसी स्थिति में बच्चा जेंडर बायस्ड हो जाता है। क्योंकि वो हमेशा एक जेंडर के खिलाफ ही सुन और सीख रहा है। इससे उसका मेंटल स्टेटस जो बिगड़ता है वो उसके बड़े होने पर भी बना रहता है। जो कभी न कभी ब्लास्ट जरूर करता है। कपल्स अपने झगड़े से बच्चे की लाइफ खुद खराब कर रहे हैं। इससे उन्हें बाहर आने की जरूरत है।
डॉ। अंशु शुक्ला, सोशियोलॉजिस्ट