काशी में चिता से उठती लाश देख डर गईं थी लता दी
वाराणसी (ब्यूरो)। मानो तो मैं गंगा मां हूं, ना मानो तो बहता पानी.यह गीत बनारस के रहने वाले अंजान यानी लालजी पांडेय ने लिखा। गाया था स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने। गीत जरूर अंजान के थे, लेकिन इस गाने से लता दी का बनारस के प्रति अकाट्य प्रेम दिखता था। अंजान की तरह उनके बेटे समीर से भी लता दी का बहुत लगाव था। उनके लिखे कई गीतों को लता दी ने स्वर दिया। इसके अलावा लता दी के ज्योतिष सलाहकार स्वामी ओमा द अक भी बनारस के हैं। अस्पताल में भर्ती होने से पहले पांच जनवरी को अक से लता दी ने बात की थी। अक से अपने बारे में कम, बल्कि साहित्य, बनारस व देश से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा बात करती थीं। पद्यश्री राजेश्वर आचार्य के अनुसार लता दी 1952 में एक कार्यक्रम के सिलसिले में बीएचयू आई थीं, लेकिन उस दौरान एक ऐसा वाक्या हुआ कि दोबारा फिर बनारस नहीं आईं। बहुत ऐसे वाक्ये हैं जिससे पता चलता है कि स्वर कोकिला लता मंगेशकर का बनारस से खास रिश्ता था।
संगीत को स्वर देने दुनिया में आईंदैनिक जागरण आईनेक्स्ट से विशेष बातचीत में गीतकार समीर अंजान ने बताया कि लता दी को बनारस से बहुत लगाव था। जब भी उनसे मुलाकात होती थी तो बनारस का जिक्र जरूर करती थीं। मां गंगा से उनकी बात शुरू होती थी। इसके अलावा बनारस के पान, खान-पान, यहां के बदलाव पर खूब चर्चा करती थीं। मेरे पिता अंजान से तो बनारस को लेकर जमकर चर्चा होती थी। पिता के गीत मानो तो मैं गंगा मां हूं, ना मानो तो बहता पानी को लता दी ने ही गाया, जो आज भी हिट है। वह संकट मोचन संगीत समारोह में आना चाहती थीं, लेकिन स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से नहीं आ सकीं।
जब मुर्दा लकडिय़ों से उठ गयापद्यश्री राजेश्वर आचार्य ने बताया कि जब उन्होंने बीएचयू में एडमिशन लिया तो 1952 में लता दी आई थी। उस समय उनकी प्रसिद्धि युवाओं में खूब थी। लता दी भारतीय संगीत और संस्कृति की राजधानी कहे जाने वाले बनारस में केवल एक बार आईं। इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है। लता मंगेशकर के ज्योतिष सलाहकार बनारस के स्वामी ओमा द अक के अनुसार जब वह बनारस आईं तो हरिश्चंद्र घाट के पास किसी कोठी में उन्हें ठहराया गया। श्मशान के बगल में शव जलते रहते थे। लता दी घाट पर चली गयीं, जहां एक मुर्दा लकडिय़ों से उठ गया। यह देखकर वह इतना डरी की फिर कभी मुड़कर बनारस आने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं।
क्या फिर गा सकूंगी ओमा द अक् बनारस के कैंटोनमेंट में रहते हैं। उनका कहना है कि लता दी से पिछले महीने बातचीत हुई थी वाजिद अली शाह की किताब पढ़ रही थीं। कह रही थीं कि स्वामी मेरी तबीयत खराब लग रही है। क्या मैं फिर से गाना गा सकंूगी। ओमा द अक का कहना है कि 92 साल की उम्र में भी गायन के प्रति उनका समर्पण कम नहीं हुआ था। सम्मान लेने आशा आने वाली थीं लता मंगेशकर को गीता और गालिब के शेर बहुत पसंद थे। इसे लेकर वाराणसी में हर साल एक चिराग-ए-दैर सम्मान की शुरुआत की गई। इसे पद्याश्रीश देव, उषा मंगेशकर और हृदयनाथ मंगेशकर ने स्वीकार किया। इस बार यह सम्मान ग्रहण करने आशा भोंसले आने वाली थीं। 2016 में उषा मंगेशकर और 2018 में हृदय नाथ मंगेशकर यह सम्मान लेने बनारस आए थे, लता दी लाइव जुड़ती थीं। 2014 में लता दी के जीवन पर एक डॉक्यूमेंटी तैयार की गयी। जो कि बनारस में ही पूरी तरह से बनी थी। लता दी के ऊपर नज्म का राजेश्वर आचार्य ने पाठ किया था।