वाराणसी में एमएसएमई पार्क में लैंड का रोड़ा
वाराणसी (ब्यूरो)। सूक्ष्म, लघु व मध्यम दर्जे के उद्योगों को बढ़ावा देने की योजना अधर में लटका हुआ है। योजना के पांच साल बाद भी अभी तक धरातल पर नहीं उतरा। अगर जमीनें मिल गई होती तो आज 400 से अधिक इकाइयां चल रही होती और कईयों को रोजगार भी मिला होता। उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए योगी सरकार निजी क्षेत्र के अंतर्गत एमएसएमई पार्क की स्थापना को प्रोत्साहन देने के लिए यह योजना लाई थी। अभी तक लैंड न मिलने की वजह से योजना अधर में लटकी हुई है। लैंड मिल जाता तो इंडस्ट्रियल पार्क में कई उद्योग विकसित होते.
20 से लेकर 100 एकड़ जमीनयोजना के मुताबिक निजी क्षेत्र की ओर से 20 से लेकर 100 एकड़ तक के क्षेत्रफल में एमएसएमई पार्क विकसित होते। पार्क का कुल क्षेत्रफल का 50 फीसद एमएसएमई सेक्टर के लिए आरक्षित किया गया था। इसमें 50 फीसद क्षेत्र का 60 प्रतिशत यानि पार्क के कुल क्षेत्रफल का 30 प्रतिशत हिस्सा सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए आरक्षित होता.
स्टांप डयूटी में छूटउद्यमियों की मानें तो एमएसएमई पार्क विकसित करने के लिए जमीन खरीदने वाले डेवलपर को स्टांप ड्यूटी में 100 प्रतिशत छूट मिलती। वहीं पार्क में उद्योग की स्थापना के लिए जमीन खरीदने वाले पहले खरीदारों को स्टांप ड्यूटी में 50 प्रतिशत छूट देने का भी प्रस्ताव था.
तीन प्रकार की सब्सिडी निजी क्षेत्र को पार्क के लिए जमीन खरीदने पर बैंक से लिए गए कर्ज पर अदा किये गए ब्याज पर सब्सिडी मिलती। उन्हें पार्क में सड़क, नालियां व अन्य अवस्थापना सुविधाएं विकसित करने के मकसद से लिये गए बैंक लोन पर अदा किये गए ब्याज पर भी सब्सिडी दी जाती। पार्क में स्थापित की जाने वाली औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले श्रमिकों के रहने के लिए आवास बनाने की खातिर लिये गए कर्ज पर अदा किये गए ब्याज पर भी सब्सिडी मिलती। इन तीनों प्रकार की सब्सिडी उप्र औद्योगिक निवेश एवं रोजगार प्रोत्साहन नीति 2017 में इन मदों के लिए प्रस्तावित प्रोत्साहनों का 20 फीसद दिया गया है. एमएसएमई पार्क बनने से कई उद्योग विकसित होते। लोगों को रोजगार मिलता। इससे शहर का विकास होता. राजेश सिंह, अध्यक्ष, लघु उद्योग भारती योजना को लागू करते। इससे उद्यमी भी पीछे नहीं होते। योजना के तहत करीब 400 से अधिक उद्योग लग गए होते. नीरज पारिख, सचिव सरकार की योजनाएं जमीन पर उतरने में समय लगती है, क्योकि डिपार्टमेंट उसमें ऐसा पेंच फंसाते हैं कि सिर्फ कागज पर ही सिमट कर रह जाती हैं.ज्योति शंकर मिश्रा, उपाध्यक्ष, लघु उद्योग भारती
सरकार की सभी योजनाएं अच्छी होती हैं। अगर विभाग चाहे तो जमीनें उपलब्ध करवा सकता है। अभी भी शहर के आसपास काफी जमीनें खाली हैं. दीनानाथ बरनवाल, प्रदेश उपाध्यक्ष, लघु उद्योग भारती जमीन की तलाश की जा रही है। नए उद्योग लगे, यह विभाग भी चाहता है। इसके लिए पहले सौ एकड़ जमीन मिलना जरूरी है. मोहन शर्मा, उपायुक्त, उद्योग