Varanasi news: डेंटल सर्जरी में आविष्कार जल्द इंप्लांट होगा जबड़ा
वाराणसी (ब्यूरो)। बीएचयू आईएमस की डेंटल साइंस फैकल्टी ने डेंटल सर्जरी में क्रांति लाने वाला आविष्कार किया है। टाइटेनियम और कार्बन को एक साथ यूज करने की इस विधा का लाभ ये होगा कि ये अब तक यूज होने वाले मैटेरियल से पहले सेट होने के साथ उससे काफी मजबूत होगा। यही नहीं ये बॉडी के साथ काफी तेजी से कनेक्ट होकर ठीक उस तरह सेट होगा, जैसा प्राकृतिक तौर पर होता है। इस आविष्कार के जनक प्रो। डॉ। राजेश बंसल के अनुसार ये प्रयोग भविष्य में हेल्थ सेक्टर ही नहीं अन्य सेक्टर में काफी यूजफूल साबित होगा।
पड़ोसी दांतों को नुकसान
सतह पर और इसके भीतर कार्बन को शामिल करके टाइटेनियम का तल संशोधन नामक पेटेंट लेने वाली टीम में प्रो। डॉ। राजेश बंसल, डॉ। वकील सिंह, डॉ। आंचल श्रीवास्तव और डॉ। अमित शर्मा हैं। डॉ। बंसल ने बताया, ब्रिज की पुरानी प्रक्रिया में दांतों के निकाले गए कुछ या पूर्ण सेटों के प्रतिस्थापन में स्वस्थ पड़ोसी प्राकृतिक दांतों या हटाने योग्य प्लेटों को घिसने की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में पड़ोसी दांत घिसने क्षय, ओवरलोडिंग और पायरिया के कारण निकल जाते थे।
अच्छा है टाइटेनियम
दंत प्रत्यारोपण जबड़े की हड्डी में उचित आकार के ऑस्टियोटॉमी ड्रिलिंग के बाद जबड़े की हड्डी में रखे पेंच के आकार के बेलनाकार उपकरण हैं। दंत प्रत्यारोपण टाइटेनियम से बने होते हैं, क्योंकि टाइटेनियम में ऑक्सीजन के लिए एक उच्च संबंध होता है और ये आसानी से इसकी सतह पर एक ऑक्साइड परत बनाता है। ये इसे आत्म-निष्क्रियता क्षमता प्रदान करता है। टाइटेनियम एक टफ धातु है, जो हड्डी के निकटतम मॉड्यूल्स ऑफ एलास्टिटी के मापांक के साथ लचीलापन और ताकत का एक अच्छा संयोजन बनाता है.
जल्द होगा सेट
डॉ। बसंल ने बताया, अब तक दंत प्रत्यारोपण को जबड़े की हड्डी के साथ दृढ़ता से एकजुट होने में तीन से छह माह तक का समय लगता है, ताकि चबाने के दौरान पूरी क्षमता से इसका उपयोग किया जा सके और क्रेस्टल हड्डी का नुकसान कम से कम हो। टाइटेनियम और कार्बन से युक्त होने के कारण सेट होने का समय सिर्फ छह सप्ताह का रह जाएगा। जिनकी हड्डियां कमजोर होंगी उनके लिए ये समय 12 सप्ताह तक का हो सकता है। अभी तक प्रत्यारोपण में उपयोग किए जाने वाले कोटिंग में जंग लगने, छिलने और पुनर्जीवन के कारण कामकाज में समस्या हो जाती है, लेकिन नई टेक्नोलॉजी से ये दिक्कत भी समाप्त हो जाएगी।
कार्बन है बेस्ट
कार्बन मानव शरीर का प्रमुख घटक तत्व है। कार्बन ने कोशिकाओं को उच्च जैव-अनुकूलता दिखाई है। शुद्ध कार्बन से बने प्रत्यारोपण के अन्य बायोमैटिरियल्स पर कई फायदे हैं। कार्बन अद्वितीय जैविक जड़ता, संक्षारण प्रतिरोध, थकान गुण और प्लास्टिसिटी के साथ ही गैर विषैले और गैर-कार्सिनोजेनिक है। अब तक कार्बन प्रत्यारोपण अत्यधिक जैव संगत साबित हुए हैं, लेकिन चूंकी ये टाइटेनियम की तरह कठिन सामग्री (लचीलापन और ताकत का अच्छा संयोजन) नहीं हैं। डॉ। बंसल के अनुसार उनकी टीम का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी प्रक्रिया का आविष्कार करना था, जिसके द्वारा एक नया बायोमैटेरियल (ग्राफीन जैसी कोटिंग के साथ टी) टाइटेनियम और कार्बन दोनों मिलाकर तैयार किया जाए। इस पर टीम लगातार प्रयास करती रही और अंतत: टीम को अपनी प्रयोगशाला में इसका आविष्कार करने में सफलता मिल ही गई।
इस तरह किया तैयार
टाइटेनियम 2 एमएम मोटे नमूनों को एक हैकसा के साथ विभाजित चिकना किया गया। एमरी पेपर के साथ पॉलिश किया गया और सिल्वेट कपड़े पर एक पॉलिशिंग व्हील पर रगड़कर पानी में एल्यूमिना पाउडर के निलंबन और अल्ट्रासोनिक क्लीनर का उपयोग कर साफ किया गया। फिर एसीटोन से धोया गया। नमूनों को हवा में सुखाया गया और डेसिकेटर में रखा गया। टाइटेनियम नमूना कार्बोनाइजिंग के लिए क्वार्ट्ज ट्यूबलर भ_ी में रखा गया था। फिर 300 प्रति मिनट की निरंतर हीटिंग दर पर 650-20 के वांछित तापमान तक गर्म किया गया। जब वृद्धि तापमान तक पहुंच गया तो कार्बन के लिए तरल अग्रदूत के रूप में हेक्सेन को ट्यूब में भेजा गया, प्रक्रिया पूरी होने के बाद, भ_ी को कमरे के तापमान तक ठंडा किया गया। पूरी प्रक्रिया के दौरान, हाइड्रोजन गैस लगातार बह रही थी। इसके बाद तैयार नमूने अधिक हाइड्रोफिलिक, खुरदरे, संक्षारण प्रतिरोधी और जैव-संगत थे.
300 पेशेंट प्रतिदिन आते हैं बीएचयू के ट्रामा सेंटर स्थिति डेंटल ओपीडी में
20 पेशेंट पर डे ऐसे आते हैं जिनके दांतों की हालत होती है नाजुक
100 से 150 मरीजों में डेंटल इंप्लांट होता है प्रति माह डेंटल साइंस फैकल्टी में
50 से अधिक मरीजों के खराब दांत प्रतिदिन निकाले जाते हैं