खतरे में बनारसियों के दिल
वाराणसी (ब्यूरो)। सड़कों पर सरपट दौड़ रहे वाहनों से शहर का प्रदूषित होना लाजिमी है, लेकिन स्वच्छ अविरल गंगा के किनारे घाटों की स्थिति अच्छी मानी जाती है। आम लोगों के बीच यही धारणा है, लेकिन ये सच नहीं है। क्लाइमेट एजेंडा की ओर से अस्सी घाट पर स्थापित किये गए उच्च क्षमता वाले फिल्टर युक्तकृत्रिम फेफड़े महज दो दिन के अंदर धुंधले हो गए। घाट किनारे भी आबो-हवा खराब होने के मामले ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। एक अनुमान के तहत साफ व स्वच्छ हवा लेने के लिए हर दिन सुबह से शाम तक 50 हजार से अधिक लोग गंगा किनारे सैर के लिए जाते हैं। इनके फेफड़े व दिल भी प्रदूषण के शिकार हुए होंगे.
अस्सी घाट पर लगा कृत्रिम फेफड़ाबनारस के आम जन में वायु प्रदूषण की समझ पैदा करने के उद्देश्य से अस्सी घाट पर रविवार को शहर के जाने माने चिकित्सक डॉ। आरएन वाजपेई, पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान के निदेशक डॉ। एएस रघुवंशी और योगिराज पंडित विजय प्रकाश मिश्रा की मौजदूगी में क्लाइमेट एजेंडा की ओर से कृत्रिम फेफड़े लगाए गए थे। महज दो दिन में उच्च क्षमता वाले ये फिल्टर युक्त सफेद कृत्रिम फेफड़े धुंधले हो गए, जबकि भीषण गर्मी में प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है। इससे साफ जाहिर है कि बनारस में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद खराब है।
हर 3 मिनट पर एक बच्चे की मौत अस्सी घाट स्थित कृत्रिम फेफड़े के समीप मॉम्स फॉर क्लीन एयर ने सभा की। इस दौरान क्लाइमेट एजेंडा की निदेशक एकता शेखर ने बताया कि बढ़ते वायु प्रदूषण का सीधा और सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार आउटडोर और इनडोर वायु प्रदूषण के कारण 2019 में जन्म के एक महीने के भीतर भारत में 116000 से अधिक शिशुओं की मृत्यु हो गई। इसी अध्ययन संस्थान की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर 3 मिनट पर एक बच्चे की मौत हो जाती है। इनमे सबसे टॉप पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार प्रदेश हैं। यहां सबसे अधिक मृत्यु दर दर्ज की गयी है। इसके अलावा, प्रतिवर्ष अस्थमा, ब्रोंकाइटिस आदि जैसी बीमारियों के कारण लाखों बच्चों का विकास प्रभावित हो रहा है। 2018 में दुनिया का सबसे प्रदूषित तीसरा शहर था बनारसदुनिया की सबसे न्यारी नगरी काशी को किसी की नजर लग गयी है। प्रशासन व शासन के तमाम प्रयास के बावजूद बनारस का प्रदूषण से नाता खत्म नहीं हो रहा है। बुधवार को एक्यूआई अर्दली बाजार में-115, भेलूपुर-119 और मलदहिया में 104 दर्ज किया गया है। इसके पहले 2018 में वाराणसी दुनिया का सबसे प्रदूषित तीसरा शहर था। 2021 में वाराणसी वल्र्ड का 22वां और इंडिया का 8वां सबसे प्रदूषित शहर था।
हेपा फिल्टर कपड़े से बने कृत्रिम फेफड़े अस्सी घाट पर लगाए गए कृत्रिम फेफड़े को हेपा फिल्टर कपड़े से बनाया गया था। एन-95 मास्क में हेपा फिल्टर कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है, जो प्रदूषण को अंदर नहीं जाने देता है। एकता शेखर के अनुसार कृत्रिम फेफड़ा रीयल की तरह काम करता है। कृत्रिम फेफड़े के पीछे दो फैन लगाए गए थे। इसके अलावा कई नलियां और मशीनें भी लगी थीं. हम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में यू ही नहीं शामिल हैं। महज दो दिनों में कृत्रिम फेफड़ों का ग्रे हो जाना इसे साबित करता है कि शहर और आसपास रहने वाले लोगों के दिल और फेफड़े वायु प्रदूषण की जद में हैं। बेहद जरूरी है कि इसे एक स्वास्थ्य आपातकाल मानते हुए जरूरी कदम उठाए जाएं। -डॉ। ओम शंकर, वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ, सर सुंदर लाल अस्पताल, बीएचयूअस्सी घाट अब तक शहर में सबसे स्वच्छ जगहों में शामिल माना जाता था। महज 48 घंटे में कृत्रिम फेफड़े का ग्रे हो जाना बेहद गंभीर विषय है। आम जनता के स्वास्थ्य के लिए यह खतरनाक स्थिति मानी जानी चाहिए। यह अब बेहद जरुरी हो गया है कि पर्यावरण की बेहतरी के लिए परिवहन को प्रमुख रूप से स्वच्छ बनाया जाए और सभी विभाग मिल कर स्वच्छ वायु कार्य योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें.
-डॉ। आरएन वाजपेई, श्वांस रोग विशेषज्ञ दो दिन के अन्दर कृत्रिम फेफड़े का काला हो जाना हमें सचेत करता है कि वायु प्रदूषण कितनी बड़ी समस्या है। ऐसे में यह जरूरी है कि बच्चों की सेहत की रक्षा के लिए माताएं बाहर निकलें। सौर ऊर्जा, सार्वजनिक परिवहन, कचरा प्रबंधन की व्यवस्था ठीक से की जाए. -सरोज सिंह, सदस्य, मॉम्स फॉर क्लीन एयर महज दो दिन में उच्च क्षमता वाले फिल्टर युक्त सफेद कृत्रिम फेफड़े के ग्रे होने से स्पष्ट होता है कि शहर की आबोहवा सुरक्षित नहीं है। बनारस में लगातार बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और विशेष रूप से बच्चों पर पडऩे वाले प्रतिकूल असर से माताओं को सचेत करते हुए साफहवा के लिए व्यवहार परिवर्तन एवं प्रशासन की भूमिका पर चर्चा करनी थी. -एकता शेखर, निदेशक, क्लाइमेट एजेंडा