फोन यूजर्स और वेब सीरीज देखने वाले अनिद्रा के कारण खुद को मान लेते हैं बीमार मनोचिकित्सक के पास बढ़े केस सर्वाधिक चपेट में 7 से 35 साल एज ग्रुप के लोग


वाराणसी (ब्यूरो)लगातार मोबाइल का उपयोग, गेम खेलना, वेब सीरीज देखना उनकी सेहत के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। यूथ वन सिटिंग में ही वेबसीरीज के पूरे एपिसोड देख रहे हैं। आमतौर पर इसे डिजिटल ड्रग की लत या बिंज वॉचिंग कहा जाता है। यह व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से रोगी बना देती है, जो आगे चलकर साइको सोमेटिक डिसऑर्डर का रूप ले लेती है। काशी के साइकेट्रिस्ट के पास पहले वेबसीरीज एडिक्शन के एक-दो केस आते थे, लेकिन अब 10 से 15 केस रोजाना आ रहे हैं, जिसमें 7 से 35 वर्ष तक के युवा शामिल हैं.

केस-1

7 साल का लड़का जब भी अपने पेरेंट्स को परेशान करता था तो उसके माता-पिता उसे शांत कराने के लिए उसे फोन थमा देते थे, जिसमें बच्चा घंटों कार्टून देखता था। कुछ समय बाद वह परिवार से झगडऩे लगा और अकेले कमरे में रहने की जिद करता था। आंखें कमजोर होने पर नेत्र विभाग पहुंचा। चिकित्सकों ने उसे चश्मे का नंबर देने के साथ मनोचिकित्सक से परामर्श लेने की सलाह दी.

केस-2

45 साल की घरेलू महिला सिर में तेज दर्द और घर में कम बात करने जैसे लक्षणों के चलते मनोचिकित्सक के पास पहुंची। पति ने महिला के बदले व्यवहार को देख डॉक्टर से चर्चा की। काउंसलिंग में पता चला महिला दिनभर घर में अकेले रहने पर घंटों फोन में ड्रामा सीरियल देखती थी, जिससे उसमें ये समस्याएं शुरू हुईं.

यह दो केस बताने के लिए काफी हैं कि फोन का अधिक यूज किस तरह बच्चों और बड़ों को साइको सोमेटिक डिसऑर्डर का शिकार बना रहा है।

दिमाग में स्टोर होता गुस्सा

कई बार हमें हमारे माता पिता या टीचर से डांट पड़ती है और हम उसका विरोध नहीं कर पाते हैं। वो गुस्सा हमारे दिमाग में ही रह जाता है, जिसके कारण दिमाग में स्टोर ये गुस्सा बेहोश होकर, मांसपेशियों में दर्द, सांस लेने में परेशानी के लक्षण के रूप में देखने को मिलता था। एक्सपर्ट का कहना है कि दिमाग में स्टोर ये गुस्सा लोगों की अटेंशन पाने के लिए बाहर निकलता है, जिससे लोग हमारी चिंता करें। ये सभी लक्षण साइको सोमेटिक डिसऑर्डर के हैं। जिसके होने की सबसे बड़ी वजह जरूरत से ज्यादा फोन का यूज करना है।

क्या है साइको सोमेटिक डिसऑर्डर

इसमें लोगों को लगता है कि उन्हें शारीरिक समस्याएं हो रही हैं, लेकिन वास्तविकता में वे किसी भी शारीरिक रोग से पीडि़त नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति को साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर कहा जाता है। अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि मुझे हर पल एसिडिटी रहती है, मेरी पैरों का दर्द बढ़ रहा है या मुझे थकान महसूस हो रही है। सुनने में ऐसा लगता है कि मानो व्यक्ति किसी शारीरिक समस्या से ग्रस्त है या किसी बीमारी के शुरुआती लक्षण हैं। मगर वास्तव में ये शारीरिक नहीं बल्कि खराब मानसिक स्वास्थ्य का एक संकेत हैं, जो साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर को दर्शाता है। इससे व्यक्ति की पर्सनल लाइफ के साथ प्रोफेशनल लाइफ भी प्रभावित होने लगती है।

साइको सोमेटिक डिसऑर्डर के कारण

1. सोशल सर्कल का कम होना

वे लोग जो हर पल अपने दर्द को उजागर करते रहते हैं। उनका सोशल सर्कल धीरे-धीरे कम होने लगता हैं। ऐसे लोग किसी न किसी चिंता के कारण लोगों से मिलना जुलना बंद कर देते हैं। वे खुद को मन ही मन अकेला मान लेते हैं, जो उनकी शारीरिक समस्याएं बढऩे का कारण बन जाते हैं.

2. हर वक्त गुस्से में रहना

अपने आप को किसी गंभीर बीमारी का शिकार मानकर ऐसे लोग खुद को चार दीवारी में कैद कर लेते हैं, जिससे इनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढऩे लगता है। दूसरों के अंदर गलतियां खोजना इनके व्यवहार का हिस्सा बन जाता है। वे हर दम अपनी ही चिंता में खोए रहते हैं.

3. बीमारी के बारे में चर्चा करना

साइको सोमेटिक डिसऑर्डर के शिकार लोग खुद को बीमार मानने लगते हैं। हर मिलने जुलने वाले व्यक्ति से केवल अपनी बीमारी के बारे में ही बात करते हैं। इनके जीवन का कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं रहता है। जीवन में उत्साह की कमी इन्हें हर पल परेशानी से ग्रस्त रखती है.

4. बार-बार डॉक्टर से मिलना

ऐसे लोग मन ही मन खुद को बीमार समझ बैठते हैं, जो उनके शरीर में कई प्रकार के दर्द व हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को बढ़ा देता है। मानसिक तौर पर स्वस्थ न होने के चलते वे अपनी समस्या से राहत पाने के लिए डॉक्टर क्लीनिक पर बार बार विजि़ट करते हैं.

इस प्रॉब्लम से ऐसे करें डील

1. क्वालिटी स्लीप है जरूरी

नींद पूरी न हो पाना तनाव बढऩे का मुख्य कारण साबित होता है। ऐसे में व्यक्ति दिनभर आलस्य और थकान से चूर रहता है। शरीर में ताजग़ी को बनाए रखने के लिए भरपूर नींद लें। इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जिसके चलते शरीर एक्टिव रहता है। साथ ही शरीर में बढऩे वाले तनाव का स्तर भी घटने लगता है.

2. पॉजिटिव थिंकिंग अपनाएं

हर पल जीवन में कमियों को तलाशना और दूसरों से अपनी तुलना करना नकारात्मकता को बढ़ा देता है। इससे व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रस्त रहने लगता है, जिसका असर उसकी विचारधारा पर भी दिखने लगता है। ऐसे लोगों का अक्सर कोई सोशल सर्कल नहीं रहता है और निगेटिविटी के शिकार होने लगते हैं। ऐसे लोगों को अपने विचारों को सकारात्मक बनाना बेहद आवश्यक है.

3. शारीरिक क्रिया को न करें अवॉइड

दिनों दिन बढ़ रहे तनाव, दर्द और एसिडिटी की समस्या से बचने के लिए योग व एक्सरसाइज़ को रूटीन में शामिल करें। इससे शरीर में होने वाली प्रॉबलम्स रिवर्स होने लगती हैं।

4. हेल्दी डाइट जरूरी

तला भुना और फ्र ाइड खाना शरीर में कई समस्याओं का कारण बनता है। ज्यादा मात्रा में सोडियम इनटेक मूड स्विंग का कारण साबित होता है, जिससे बेचैनी की समस्या बढऩे लगती है। ऐसे में आहार में विटामिन, मिनरल और कैल्शियम समेत जरूरी पोषक तत्वों को शामिल करें। इससे शरीर बीमारियों की चपेट में आने से बच सकता है.

5. एक-दो घंटे से ज्यादा न देखें वेबसीरीज

साइकेट्रिस्ट डॉ। आरके कुशवाह ने बताया कि लंबे समय तक वेब सीरीज देखने से नींद की समस्या, साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर, अवसाद, व्यवहार में बदलाव समेत कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं। लगातार वेब सीरीज देखने से शरीर में झनझनाहट व बेवजह दर्द शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि एक-दो घंटे से ज्यादा समय तक वेब सीरीज नहीं देखनी चाहिए। लोग सब काम छोड़कर सिर्फ मोबाइल या अन्य डिस्प्ले डिवाइस में लगे रहते हैं। परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

माता-पिता को अपने बच्चे को घंटों फोन यूज करने नहीं देना चाहिए। इस समय ये समस्या सबसे ज्यादा 15 से लेकर 35 साल वाले युवाओं को घेर रही है।

डॉआरके कुशवाहा, साइकेट्रिस्ट

Posted By: Inextlive