Varanasi news: ...मारबो रे सुगवा धनुक से, सुगा गिरे मुरुछाय
वाराणसी (ब्यूरो)। लोक महापर्व डाला छठ का सबसे प्रमुख विधान अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को अघ्र्य देने का अद्भुत अनुष्ठान अन्र्तमन को मुग्ध कर गया। सामने घाट से राजघाट के बीच सभी घाट, वरुणा का पावन तट सहित कुंड और सरोवर छठव्रतियों से ठसाठस भरा रहा। शाम चार बजते ही ढोल-नगाड़ों की थाप, सिर पर फलों से भरी टोकरी हाथ में गन्ना लिए हर परिवार घाट की ओर बढ़ चला। गन्नों के छाजन तले सूप में सजे पूजन वेदियां, रंगीन परिधानों में भर माथा सिन्दूर लगाए व्रती स्त्रियां अगाध श्रद्धा व भक्ति भाव से भरे और ठेउना भर जल में खड़े। दूध व जल धारा से संझिया अघ्र्य देते व्रतियों की छवि अविश्वसनीय हो आयी। घाट किनारे सिर्फ व्रतियों की भीड़ ही भीड़ नजर आयी। 5 लाख से अधिक व्रतियों ने भगवान भास्कर को अघ्र्य देकर गुहार लगायी।
छठी मइया से सुहाग-संतान
छठी मइया से सुहाग-संतान और धन-धान की विनती करते व्रतियां अघायीं। नारी सशक्तिकरण के प्रतीक इस महापर्व के कठिन व्रत की पारन सोमवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद की जाएगी। छठव्रती महिलाओं का दोपहर होने के साथ अपने परिजनों व परिचितों संग गंगा घाट व पवित्र जलाशयों के किनारे पहुंचना शुरू हो गया। कंकड़वा घाट पर कर्म योगी बंधुओ के परिवार के लोगों ने छठ पूजा का आयोजन किया। सतीश प्रसाद, विकास, छोटू, मदन, शंकर, ब्रह्मदेव वर्मा, रूपेश आदि लोग उपस्थित रहे.
मंगल गीत गाती रहीं युवतियां
पूजन डाला परिवार के पुरुष सदस्यों ने उठाए रखा था तो युवकों के कंधे पर पत्तीयुक्त लंबी-लंबी ईखें और हाथ में पूजन सामग्री से भरे झोले रहे। व्रती महिलाओं के इर्द-गिर्द चल रही परिवार की अन्य महिलाएं और युवतियां मंगल गीत गाती जा रही थीं। लौटते वक्त व्रती महिलाओं ने कलश पर जलता हुआ दीपक हाथ में ले रखा था। भीड़ के धक्के से दीपक को बचाने के लिए परिवार के सदस्य उस दीपक के चारों ओर घेरा बना कर चल रहे थे.
सीढिय़ों पर गन्ने का छत्र ताना
जो जल्दी पहुंचा उसने जल में और जो देर से पहुंचा उसने सीढिय़ों पर गन्ने का छत्र तानाउसे नये वस्त्र से सजाया। इसके बाद सिन्दूर से रंगे सूप में मौसमी फलों, माला-फूल और ठेकुआ आदि रखा। साथ ही जल पूरित कलश पर नारियल रख उसे छत्र नीचे रखा। घी और तेल की बाती जलती रही तो नाक से लेकर मांग तक भर माथा सिन्दूर एक-दूसरे को लगती-लगाती रहीं.
व्रतियों की निगाहें सूर्य की ओर टिकी
छठी मइया की पूजा के साथ ही सूर्य के अस्ताचल होने के इंतजार में व्रतियों की निगाहें पश्चिम दिशा में आकाश की ओर टकटकी लगाए रहीं। शाम ढलने के साथ ही अघ्र्य देने के लिए लाखों व्रतियों की हथेलियां उठनी शुरू हो गयीं। कलश से गिरते हर धार में कामनाओं की मनुहार शामिल रही। व्रती महिलाओं की भीड़ से सामनेघाट, भैंसासुर घाट, प्रहलादघाट, राजघाट, नमोघाट, पंचगंगा, दशाश्वमेध, राजेन्द्र प्रसाद, अस्सी, शक्का, त्रिलोचन, गायघाट समेत शहर के कुंड और सरोवर पर भारी भीड़ रही.
झुंड के झुंड वापस लौटे
अघ्र्य देकर झुंड के झुंड श्रद्धालु वापस लौटते रहे। वहीं, जिसकी मन्नत पूरी हो गयी वह बैण्ड-बाजे और शहनाई के साथ आया। किसी घाट व कुंड पर शहनाई की मंगल ध्वनि तो कहीं बैंड बाजे का धुन गूंजता रहा। इसके साथ ही रह-रहकर आतिशबाजी होती रही। सबसे ज्यादा बच्चे ठुमका लगाने और आतिशबाजी में मस्त रहे.