बारिश होने वाली है, नाला सफाई अभी बाकी है
वाराणसी (ब्यूरो)। स्मार्ट सिटी बनारस के नालों का हाल ठीक नहीं है। तकरीबन 344.73 करोड़ रुपए जमीन के नीचे खर्च हो गए। जब भी मूसलाधार बारिश होती है तो यहां पर विकास के दावे पर सवाल खड़े होने लगते हैं। इस बार बारिश शुरू होने में अब कुछ सप्ताह ही बचे हैं। शहर में जल निकासी की तैयारी को लेकर नालों से गली पिट तक की साफ सफाई की जिम्मेदारी और उनके सिल्ट को उठवाने का कार्य नगर निगम का होता है। इसके लिए नगरायुक्त द्वारा करीब अप्रैल में संबंधित विभागों को शहर के नालों की साफ सफाई के लिए आदेशित किया था। इस आदेश के बाद देर से ही सही पर नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग ने तो नाले-नालियों की सफाई शरू करा दी, लेकिन निगम के सामान्य विभाग ने सीवर लाइन और उन बड़े नालों की सफाई शुरू नहीं की जिसमें सभी छोटे नालों का पानी जाता है.
नाले की सफाई में अब तक 92 करोड़ रुपए खर्च वाराणसी की सीवर व्यवस्था 200 साल बाद भी अंग्रेजों के जमाने में जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनाए गए शाही नाला के भरोसे है। 2015 तक इस नाला की किसी को याद नहीं आई थी। इसके बाद नाले की सफाई का काम जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की देखरेख में जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (जायका) को दिया गया। इस नाले की सफाई में 92 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। 2015 से शुरू हुआ नाला सफाई का काम 2017 में पूरा होना था, लेकिन अब भी काम जारी है। फैक्ट फाइल 267-छोटे नाले 150-गहरे वाले नाले 90-बड़े नाले 3200-गली पिट 450-ध्वस्त हो चुकी गली पिट 137000 मीटर छोटे नालों की लंबाई 60000 मीटर बड़े नालों की लंबाई 381 मैनपावर छोटे नाले-नाली साफ करने के लिए 40 से 50 दिन लगते हैं नालों की सफाई करने में क्या हुआ अभी तक 90 हजार मीटर छोटे नाले साफ 47 हजार मीटर छोटे नाले दो सप्ताह में हो जाएंगे साफ स्वास्थ्य विभाग के दायरे में आने वाले नालों की सफाई का कार्य युद्धस्तर पर हो रहा है। बारिश शुरू होने से पहले पूरा प्रयास है कि सभी नाले और गली पिट की सफाई करा ली जाएगी. एनपी सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगमविभाग का दावा, 90 हजार मीटर हो गई सफाई
पूरे शहर के अंदर नाले और नालियों की लंबी फौज है। यहां 270 छोटे नाले, 90 बड़े नाले और 3200 गली पिट हंै। नगर स्वास्थ्य विभाग ने पिछले 15 मई से पांडेयपुर के काली माता मंदिर से इस साफ सफाई की शुरुआत की थी। इस विभाग को शहरभर में कुल एक लाख 37 हजार मीटर तक नाले-नालियों की सफाई करनी है। विभाग का दावा है कि करीब 90 हजार मीटर तक सफाई कर दी गई है। शेष 47 हजार मीटर की सफाई बारिश से पहले पूरी कर ली जाएगी। अधिकारियों का कहना हैं कि जी-20 के चलते पहले उन प्रमुख एरिया के नालों की सफाई कराई गई है। खैर विभागीय दावे जो भी हो, अब तो पहली बारिश ही बताएगी कि एक्चुअल में कितना काम हुआ है।
सफाई के साथ सिल्ट हटाना चुनौती नालों की साफ सफाई कराने के बाद इनकी सिल्ट को बाहर निकालकर रखना होता है। इस सिल्ट को सूखने के बाद उठाकर डिस्ट्राय किया जाता है। इसके बाद उन नाले और नालियों को ढकने का कार्य किया जाता है। कई एरिया में नालों की सफाई के बाद बाहर रखे गए सिल्ट कई दिनों तक वहीं पड़े रहते है। इसकी वजह से राहगीरों को आने-जाने में काफी परेशानी होती है। अधिकारियों का सारा ध्यान शहर में जी 20 की मीटिंग को लेकर सौन्दर्यीकरण में लगा हुआ, लेकिन जहां इस तरह की हालत है उस पर सभी मौन हैं. पिछले वर्ष झेलनी पड़ी थी मुसीबतशहर में छोटे नालों की लंबाई 1 लाख 37 हजार मीटर है, वहीं बड़े नालों की लंबाई 60 हजार मीटर है। पिछले साल इन नालों की साफ सफाई कराने को लेकर नगर निगम प्रशासन हांफ गया था और करीब 40 हजार मीटर की सफाई नहीं कर पाया था। उसी दौरान बारिश भी शुरू हो गई थी। जिसके बाद शहर के अंदर कई इलाकों में जल जमाव की स्थिति पैदा हो गई थी। इसके चलते कॉमन पब्लिक के साथ टूरिस्ट और वीवीआईपी मूवमेंट में भी परेशानियों का सामना करना पड़ा था.
सामान्य विभाग अब खामोशनगर निगम स्वास्थ्य विभाग शहर के नालों की सफाई कराने के लिए अपने मैन पावर के साथ कार्य करना शुरू कर दिया है। लेकिन सामान्य विभाग अभी खामोश मुद्रा में है। उसके द्वारा नाले और नालियों की सफाई के लिए कोई प्रयास अभी नहीं किया गया है। पहले चुनाव आचार संहिता का हवाला देकर अभी टेंडर कार्य नहीं पूरे नहीं होने का बहाना बना रहे थे। लेकिन शहर की नई सरकार बन जाने के बाद भी कही भी बड़े नालों की सफाई नहीं हो रही है। अन्य विभागीय लोगों का कहना है कि सामान्य विभाग के मुख्य अभियंता एक माह से अवकाश पर चल रहे थे, जिस कारण कार्य में देरी हो रही है। अवकाश समाप्त होने के बाद अब वे मोबाइल भी नहीं उठा रहे हैं।
नगर व जल निगम की रस्साकसी, भुगत रहा शहर जल निगम और नगर निगम के बीच हमेशा से जारी रस्साकसी का खामियाजा आज पूरा शहर भुगत रहा है। वर्ष 2008 में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जेएनएनयूआरएम के तहत स्टार्म वॉटर ड्रेनेज (एसडब्ल्यूडी) परियोजना को मंजूरी दी गई थी। परियोजना का उद्देश्य जल निकासी और सीवेज लाइनों को अलग करने के अलावा शहर को जलभराव की समस्या से बचाने के साथ भूमिगत जल को रिचार्ज कर जलनिकासी की सुविधाओं में सुधार करना था। परियोजना की प्रारंभिक स्वीकृत लागत 191.62 करोड़ रुपए थी। बाद में इसे संशोधित कर 252.73 करोड़ रुपए कर दिया गया था. 2011 में पूरा होना था परियोजना का काम इसे 28 महीने में यानी दिसंबर 2008 से शुरू कर मार्च 2011 में पूरा कर देना था, लेकिन परियोजना पूरी नहीं हो सकी। वहीं, जल निगम के अधिकारी दावा करते रहे कि यह परियोजना 2015 में पूरी हो गई थी और शहर के लोगों ने एक-दो साल के लिए जलभराव की समस्या से राहत का भी अनुभव किया था। हालांकि, जल निगम धनराशि की कमी के कारण एसडब्ल्यूडी लाइनों को बनाए रखने में विफल रहा।