बोन-मैरो ट्रांसप्लांट की मिले सुविधा तो हमेशा के लिए ठीक हो जाए बीमारी शादी से पहले मेल-फीमेल को मिलवा लेनी चाहिए हेल्थ कुंडली


वाराणसी (ब्यूरो)अगर आप अपने स्वास्थ्य की कुंडली से परिचित नहीं हैं तो इस खबर को जरूर पढ़ लीजिए। खासकर वे लोग जो शादी करने वाले हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि ऐसे लोगों की शादी से पहले कुंडली मिले ना मिले, लेकिन रक्त का मिलान जरूर करा लेनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो आप का होने वाला बच्चा उस बीमारी की चपेट में कभी नहीं आएगा, जिसमें उसकी सांसें जिंदगी भर दूसरों के खून की बदौलत चलती हैं। हम बात कर रहे हैं बच्चों में होने वाली सबसे गंभीर बीमारी थैलेसीमिया की। यह बच्चों में जेनेटिक तौर पर मिलने वाली ब्लड रिलेटेड डिजीज है। इसमें हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी होने से रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। काशी में 300 बच्चे इससे पीडि़त हैं.

बदला जाता है खून

जिस बच्चे को यह बीमारी होती है। उसका सप्ताह में एक बार पूरा खून बदला जाता है। बच्चे की सांस जब तक चलती रहेगी, तब तक दवा भी दी जाती रहेगी। इसका अंतिम उपचार बोन-मैरो ट्रांसप्लांट ही है। एसएस हॉस्पिटल बीएचयू के बाल रोग विभाग में थैलेसीमिया यूनिट की इंचार्ज प्रो। विनीता गुप्ता के मुताबिक यह बीमारी माता-पिता दोनों से मिलकर बच्चों में आती है। बच्चे के माता-पिता दोनों के जीन में माइनर थैलेसीमिया है, दोनों थैलेसीमिया कैरियर हैं तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया हो सकता है। अगर माता-पिता में से एक में माइनर थैलेसीमिया या एक थैलेसीमिया कैरियर है तो बच्चे को खतरा नहीं रहता।

बीएचयू में 300 बच्चे रजिस्टर्ड

बनारस की बात करें तो एसएस हॉस्पटल बीएचयू के बाल रोग विभाग में बने थैलेसीमिया यूनिट में 18 वर्ष से कम के करीब 300 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। जहां डेली 10 बच्चों में ब्लड चेंज हो रहा है। इन सभी बच्चों के लिए फ्री ऑफ कॉस्ट ब्लड देने का प्रावधान है। एनएचएम के तहत बीएचयू में 6 बेड का थैलेसीमिया वार्ड है.

फ्री होती है जांच

थैलेसीमिया यूनिट की एक्टिंग इंचार्ज डॉ। प्रियंका अग्रवाल ने बताया कि यहां आने वाले बच्चों की जितनी भी जांच होती है वो सब फ्री है। आने वाले समय में यहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा भी शुरू करेंगे। इसको लेकर प्लानिंग की जा रही है। अभी यह सुविधा लखनऊ और दिल्ली एम्स में ही है। अभी तक यहां से 3 बच्चों का ट्रांसप्लांट कराया गया है। चूंकि एक ट्रांसप्लांट में 7 से 8 लाख रूपए का खर्च आता है तो इसे हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता।

प्रेगनेंसी के टाइम नहीं होता थैलेसीमिया का टेस्ट

डॉ। प्रियंका के मुताबिक पिछले 4 साल में थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या लगभग डबल हो गई है। अवेयरनेस प्रोग्राम का भी नतीजा है कि यहां से लगायत अन्य जिलों में पेशेंट ट्रेस किए जा रहे हैं। डॉ। प्रियंका का कहना हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान जिस तरह से एचआई, टीबी व अन्य टेस्ट होते, उसी तरह से थैलेसीमिया का टेस्ट होना जरूरी है, ऐसा इसलिए भी नहीं हो रहा है कि गवर्नमेंट ने इसे मैनडेट्री टेस्ट नहीं बनाया है। जबकि यह टेस्ट न सिर्फ फीमेल, बल्कि मेल का भी होना चाहिए।

गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की जांच संभव

डॉ। प्रियंका ने बताया कि थैलेसीमिया से पीडि़त ज्यादातर बच्चों विटामिन-डी की कमी पाई जाती है। इसके अलावा जिन बच्चों में बहुत ज्यादा ब्लड चढ़ता है उनके ग्रोथ हॉर्मोंस की कमी देखी जा रही है। बीटा थैलेसीमिया एक तरह से एनीमिया की तरह होता है। जिसमें महिलाओं या पुरुषो में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। बीटा थैलेसीमिया से पीडि़त लोगों में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बनता है। ऐसे केसेस सीवियर थैलेसीमिया होते है। जिन्हे हर सप्ताह ब्लड की जरूरत पड़ती है। यहां गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया है या नहीं इसकी पहचान की सुविधा भी शुरू हो गई है। गायक्नोलॉजिस्ट डॉ। सिखा और रेडियोलॉजिस्ट डॉ। ईशांत कुमार के सहयोग से इस प्रक्रिया को फॉलो किया जा रहा है। पिछले एक साल में गर्भ में पल रहे ऐसे 10 से 15 बच्चों की जांच की जा चुकी है।

कराया जा सकता है कानूनन गर्भपात

बाल रोग विभाग के एचओडी प्रो। सुनील राव के मुताबिक थैलेसीमिया माइनर के लक्षण कोई घातक नहीं हैं, लेकिन इसके लक्षण पति-पत्नी दोनों में हो तो बच्चों में थैलेसीमिया मेजर होने की आशंका 90 फीसद से अधिक रहती है। प्रेगनेंसी के समय से ही नियमित चेकअप हो तो इस बीमारी से बचने के लिए कुछ रास्ते निकाले जा सकते हैं। एचबीए-2 जांच से पता चल जाता है कि माता-पिता में थैलेसीमिया कॅरियर के जीन हैं या नहीं। जिनके परिवार में पहले से थैलेसीमिया पीडि़त बच्चा हो और उन्होंने दूसरा बच्चा प्लान भी कर लिया हो तो महिला के गर्भ में 8 से 10 सप्ताह के शिशु होने पर सीवीसी टेस्ट कराएं। जांच में बच्चा थैलेसीमिया पीडि़त मिले तो कानूनन गर्भपात कराया जा सकता है.

थैलेसीमिया के सिंप्टम्स

- थकान, कमजोरी, त्वचा का पीला रंग (पीलिया)

- चेहरे की हड्डी की विकृति, धीमी गति से विकास, पेट की सूजन, गहरा व गाढ़ा मूत्र.

- बच्चों में खून बनना बंद हो जाता है, जिससे लिवर, हृदय, मस्तिष्क के साथ शरीर के अन्य अंग प्रभावित होने लगते हैं।

थैलेसीमिया का ट्रीटमेंट

- ब्लड ट्रांसफ्यूजन, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण, दवाएं और सप्लीमेंट्स, संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी, साथ ही विटामिन या आयरन युक्त खुराक न लेने के निर्देश दिए जा सकते हैं.

ऐसे हो सकती है रोकथाम

बच्चा थैलेसीमिया रोग के साथ पैदा न हो, इसके लिए शादी से पूर्व लड़के और लड़की की खून की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए। यदि शादी हो भी गई है तो गर्भावस्था के 8 से 11 सप्ताह में ही डीएनए जांच करा लेनी चाहिए.

फैक्ट एंड फीगर

22 बच्चों का ट्रांसप्लांट हुआ है, जिनको कैंसर था

3 थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चों का ट्रांसप्लांट हुआ है

6 बेड का है थैलेसीमिया यूनिट बीएचयू में

10 बच्चों को डेली चढ़ता है ब्लड

किसी को दो सप्ताह में तो किसी को चार सप्ताह में ब्लड चेंज होता है। हीमोग्लोबिन मेंटेन करना पड़ता है। आयरन ओवरलोड होने पर मेडिसिन चलती है। 10 साल से ऊपर के बच्चों में और भी कई सारे कॉप्लिकेसंस होते हैं, जिसमें अनेमिया, ग्रोथ प्रॉब्लम और थॉयराइड है। बोन-मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा देने के लिए प्रपोजल बनाकर भेजा गया है।

प्रोसुनील राव, एचओडी, बाल रोग विभाग-बीएचयू

इस बीमारी से बचाव के लिए जरूरी है कि अवेयरनेस बढ़ाई जाए। सरकारी प्रयासों को बढ़ाने के साथ उनके प्रचार-प्रसार पर भी ध्यान देना होगा। युवाओं को एचबीए-2 जांच के माध्यम से संवाहक अवस्था का टेस्ट कराने के लिए प्रेरित करना होगा। प्रेगनेंट वीमेन के लिए भी इसकी जांच अनिवार्य हो। बीएचयू में जांच की सुविधा नि:शुल्क है।

प्रोप्रियंका अग्रवाल, एक्टिंग इंचार्ज, थैलेसीमिया यूनिट

Posted By: Inextlive