- काशी की उम्र की तय करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और ज्ञानप्रवाह की संयुक्त टीम कर रही है खोदाई

- राजघाट स्थित लाल खां का रौजा के कैम्पस और सारनाथ में चल रही है इतिहास की तलाश

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ङ्कन्क्त्रन्हृन्स्ढ्ढ : 'हमारे शहर की तारीख सिर्फ अंदाजा। किसी को नहीं मालूम कब हुआ आबाद? ये सारे मुल्क के शाहों का एक शहजादा। यहां जो भी आया, सदा रहा आबाद.' मशहूर शायर डॉ। नाजिम जाफरी की यह चंद लाइन एहसास करा रही हैं कि काशी की उम्र एक राज है। दुनिया इस धार्मिक और सांस्कृतिक शहर काशी को प्राचीनतम नगरी कहती है लेकिन अब ये कयास खत्म होंगे क्योंकि धरती को कोख से खोदकर इस रहस्य से पर्दा उठाने की तैयारी हो रही है। बाकी सारे बातें अंदर के पेज पर।

संयुक्त टीम कर रही काम

काशी में इन दिनों ताबड़तोड़ खोदाई चल रही है, कोशिश है एक एक ऐसे राज से पर्दा उठाने की जिसकी क्यूरियॉसिटी सभी के दिलों में है। खासतौर पर हर बनारसी तो इसे जरूर जानना चाहेगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और ज्ञानप्रवाह की संयुक्त टीम राजघाट स्थित लाल खां का रौजा के कैम्पस और सारनाथ सारनाथ में मौजूद रहीं सभ्यताओं की खोज में जुट गई है। हर रोज बीतने के साथ रहस्य से पर्दा उठाता जा रहा है।

लगी है पूरी टीम

टीम की कमान पुरातत्व सर्वेक्षण के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ। बीआर मणि संभाल रहे हैं। इनके साथ बीएचयू के प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग की रियाटर्ड प्रोफेसर वर्तमान में ज्ञान प्रवाह से जुड़ीं विदुला जायसवाल, असिस्टेंट आर्कियोलाजिस्ट राजेश यादव, मीरा सहाय, मनोज यादव, ड्राफ्ट मैन अजय हैं। इनके साथ 14 ट्रेंड मजदूर हैं। पूरी टीम राजघाट स्थित लाल खां के रौजा कैम्पस में खोदाई कर रही है। इसके लिए कई स्पॉट सेलेक्ट किए गए हैं। छह फरवरी से दो स्पॉट पर खुदाई की जा रही है। वहीं सारनाथ में खोदाई डॉ। बीआर मणि की देखरेख में हो रही है। यहां अशोक स्तम्भ के पश्चिमी तरफ और मूलगंध कुटी विहार के उत्तरी छोर पर खोदाई हो रही है।

हर परत में छुपा है इतिहास

डॉ। बीआर मणि के अनुसार मिट्टी की हर पर्त में इतिहास छुपा होता है। पारखी नजरें इसे देखकर ही बता सकती हैं कि किस परत में कौन सी सभ्यता पनपी थी। लाल खां के रौजा में हो रही खुदाई में मिट्टी की परतों में दबा इतिहास धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है। अभी तक एक मीटर से अधिक की खोदाई हो चुकी है। मिट्टी के सबसे ऊपरी परत बिल्कुल नयी है। इसे कुछ साल पहले लेवलिंग करने के लिए डाला गया था। इसके नीचे जाने के बाद पुरानी सभ्यता के निशान मिलने लगते हैं। जैसे-जैसे नीचे बढ़ते हैं वैसे-वैसे मिट्टी के बर्तन, खिलौने, मकानों की दीवारें, नालियों की संरचना नजर आ रही है। लोहे के सामान, जले कोयले, हड्डियां आदि भी मिल रही हैं। यह सब सुबूत दे रही हैं कि यहां एक सुविकसित इंसानी बस्ती थी। फिलहाल इनके कुषाण काल का होने आभास हो रहा है। इसी तरह सारनाथ में भी थोड़ी खोदाई के मिट्टी के बर्तन, ईटे आदि मिलने लगी हैं। हालांकि की अभी यहां काफी खोदाई होनी है। पुरातत्व महत्व की इन चीजों को संभलकर रखा जा रहा है।

पहले भी नापी गयी उम्र

-काशी की उम्र पता करने की कोई पहली कोशिश नहीं है। इसके पहले भी कई बार काशी की उम्र जांचने की कोशिश की गयी है

-राजघाट पुल बनने के दौरान सबसे पहले कई जगहों पर खोदाई हुई। यहां पहली बार प्राचीन इंसानी बस्ती के सबूत मिले

-वर्ष 1940 में पुरातत्वविद कृष्णदेव ने काशी की उम्र जांचने के लिए खोदाई की

-1967 में बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रो। एके नरायन की टीम ने राजघाट पर खोदाई किया

-यहां पर प्राचीन नगर के अवशेष मिले। लाल खां के रौजा की जो वर्तमान स्थिति है वह खोदाई के दौरान सामने आयी

-खोदाई के आधार पर काशी की उम्र 800 ईसा पूर्व निर्धारित की गयी

-बीएचयू की प्रो। विदुला जायसवाल ने तीन बार सारनाथ के पास अकथा में वर्ष 2002 से 2008 के बीच खोदाई करायी

-ईसी दौरान रामनगर में खोज हुई। इसमें मिले मिट्टी के बर्तन आदि के आधार पर 1800 ईसा पूर्व की तिथि निर्धारित की गयी

-सारनाथ में वर्ष 1834 से 1934 के बीच कई बार खोदाई की गयी। हर बार पुरातत्वविदों को कुछ नया मिलता गया

-यहां 600 ईसा पूर्व तक के इतिहास से जुड़े तमाम सुबूत मिले हैं।

अब विज्ञान तय करेगा उम्र

पुरातत्वविद बताते हैं कि काशी की उम्र के बारे में जो भी बातें की गयी हैं उसको प्रयोगशाला की कसौटी पर नहीं परखा गया है। खोदाई के दौरान मिल रहे सामानों की प्रयोगशाला में कार्बन डेटिंग के जरिए परफेक्ट एज तय की जाएगी। आमतौर पर काशी को प्राचीनतम नगर माना जाता है लेकिन इंडिया में ही हड़प्पा-मोहन जोदड़ो की सभ्यता का पता जो लगभग दो से ढाई हजार बीसी पुरानी थी। जबकि काशी के बारे में 800 ईसा पूर्व की बात सामने आती है। कुछ जगहों पर 1800 बीसी तक के प्रमाण मिले हैं। ऐसे में इसे इतनी पुरानी तो होनी ही चाहिए। इससे भी पुरानी हुई तो नयी बात होगी। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि काशी आर्य काल से भी पहले बसी हुई है। माना जाता है कि हजारों सालों पहले प्रेम के पुजारी नाटे कद के सांवले लोगों ने काशी की नींव रखी थी। इसके कुछ समय के बाद पश्चिम से आए। ऊंचे कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन ली। इन्हें आर्य कहा गया। आगे चलकर काशी में पहले सूर्य वंश फिर चंद्र वंश की स्थापना हुई। महाभारत में भी काशी का उल्लेख है लेकिन इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

सारनाथ में भी रहस्य आएंगे सामने

भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेशस्थली के रूप में फेमस सारनाथ में रहस्यों की तलाश भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कर रहा है। अशोक स्तम्भ के पश्चिमी तरफ खोदाई शुरू के बाद पुरातात्विक महत्व की चीजें मिली हैं। वहीं मूलगंध कुटी विहार के उत्तरी छोर में भी खोदाई हो रही है। यहां से मिलने वाली वस्तुओं की प्रयोगशाला में जांच की जाएगी। कार्बन डेटिंग की वैज्ञानिक विधि से सारनाथ के वास्तविक उम्र निर्धारित की जाएगी। यहां अभी तक सम्राट अशोक के काल के तमाम चिह्न मौजूद हैं। भगवान बुद्ध का समय इससे काफी पहले था। वह कहते हैं कि भगवान बुद्ध का जुड़ाव इस स्थान से हैं तो उसका प्रमाण मिल जाना चाहिए। खोदाई के दौरान पूरी उम्मीद है कि कोई न कोई ऐसी वस्तु मिलनी चाहिए।

खोदाई में यह मिला

-मिट्टी के बर्तन

-टोराकोटा की टाइल्स

-पक्की ईटों से बने घरों की संरचना

-घरों की विकसित नालियां-दीवार

-मिट्टी के खिलौने

-लोहे के औजार

-जले कोयले, राख

-हड्डियां

-प्राचीन मुद्रा

-मानव आकृति की मूर्तियां

-पक्की ईटें

यहां हो रही खोदाई

-राजघाट स्थित लाल खां के रौजा परिसर में

-यहां दो स्थानों पर खोदाई हो रही है

-आधा दर्जन और स्थानों पर खोदाई होनी है

-सारनाथ स्थित खण्डर परिसर में अशोक स्तम्भ के पश्चिम की ओर

-मूलगंध कुटी विहार के उत्तर की ओर

'खोदाई के दौैरान मिल रहे चीजों की प्रयोगशाला में जांच की जाएगी। इसके आधार पर उम्र तय की जाएगी। अभी तक जिस तरह के परिणाम मिल रहे हैं उससे हमें काफी उम्मीद है'।

-डॉ। बीआर मणि, एडिशनल डायरेक्टर जनरल

'कई बार काशी की उम्र की तलाश करने की कोशिश की। कई जगहों पर खोदाई कराई। अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग परिणाम सामने आए हैं। इस बार काफी हम वैज्ञानिक आधार पर उम्र की तलाश कर रहे हैं'।

-डॉ। विदुला जायसवाल, पुरातत्वविद्

Posted By: Inextlive