कैंसर के इलाज में शीशा होगा कारगर
-बीएचयू के डाक्टर ने कुत्ते के पंजे के कैंसर को किया ठीक
-कीमोथेरेपी और सर्जरी हो चुकी थी विफल -पहली बार कैंसर के इलाज में सिरेमिक शीशा का हुआ प्रयोग, शुरू हुआ रिसर्चइंसानों के साथ ही जानवरों के लिए भी कैंसर समस्या बनता जा रहा है। आए दिन आ रहे केसेस के इलाज में इंसानों की तरह ऑप्शन मौजूद नहीं हैं। लेकिन इलाज में खास तरह के शीशे का प्रयोग उम्मीद की नई किरण लेकर आई है। कीमोथेरेपी व सर्जरी के सभी उपाय नाकाम हो जाने के बाद डाक्टर्स को बायोग्लास की मदद से मांसपेशियों के कैंसर से पीडि़त हाइब्रिड कुत्ते को दो महीने में ठीक करने में सफलता मिली है। बीएचयू के बरकछा कैंपस में पश़ु चिकित्सा विज्ञान संस्थान में शल्य चिकित्सा के हेड डॉ। एनके सिंह के इस प्रयोग ने कैंसर के ट्रीटमेंट की दिशा में रिसर्च की नई राह खोल दी है। एक्सपर्ट के मुताबिक यह इंसानों पर भी कारगर साबित होगा।
परिष्कृत शीशे ने दिखायी राहकैंसर के इलाज का सारा उपाय नाकाम साबित होने पर डॉ। एनके सिंह की टीम ने बायोग्लास से उपचार करने का फैसला किया। उन्होंने बीएचयू के सिरामिक डिपार्टमेंट के हेड डॉ। विनय कुमार सिंह से खास तरह का बायोग्लास लिया। करीब दो महीने के ट्रीटमेंट के बाद घाव पूरी तरह से ठीक हो गया और पंजा पुराने आकार में आ गया। इस सफलता ने जानवरों सहित इंसानों के कैंसर के इलाज में भी नई उम्मीद जगा दी है। डॉ। एनके सिंह ने बताया कि अनेक देशों में सामान्य घावों को ठीक करने में बायोग्लास का उपयोग होता है। कैंसर पर इसका प्रयोग संभवत: दुनिया में पहली बार ही किया गया है। इस सफलता ने कैंसर के इलाज को नई दिशा दी है। डिपार्टमेंट इस पर आगे का शोध कर रहा है। जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
कीमोथेरेपी से ऑपरेशन तकडॉ। एनके सिंह ने बताया कि इलाज के लिए आए कुत्ते के दाहिने पंजे में बड़े आकार का ट्यूमर हो गया था। ट्रीटमेंट के दौरान घाव बढ़ता गया तो कुत्ते के मालिक उसे लेकर बीएचयू पहुंचे। जांच में पता चला कि कुत्ते को कैंसर है। इलाज की शुरुआत कीमोथेरेपी से की। सुधार तो कुछ नहीं हुआ, गंभीर साइड इफेक्ट जरूर सामने आने लगे। उन्होंने डॉ। डीडी मैथ्यू एवं डॉ। आरके उदेहिया के साथ आपरेशन किया, मगर पैर में उभरा घाव ठीक नहीं हुआ। इसके बाद आइआइटी, बीएचयू में धातु विज्ञान के प्रोफेसर प्रलय माइटी से इलेक्ट्रोस्पिनिंग तकनीक से मेडिकेटेड बैंडेज बनवाए। दवाओं और इंजेक्शन की मदद भी ली, लेकिन फायदा नहीं हुआ। तब बायोग्लास का उपयोग किया गया।
संक्रमण का खतरा न के बराबर बायोग्लास का रासायनिक नाम 45एस5 या कैल्शियम सोडियम फास्फो सिलिकेट है। यह परिष्कृत शीशा है, जिसमें फाइबर व रेशे की अधिक मात्रा अधिक होती है। सिलिका बेहद कम और फास्फोरस-कैल्शियम की अधिक मात्रा होने के कारण यह बायोमेडिकल अनुप्रयोगों में बेहद उपयोगी है। इसकी संरचना हड्डी के खनिज घटक हाइड्राक्सीपैटाइट के समान है। इस विशिष्ट जैविक संरचना के चलते इसका प्रयोग हड्डियों को जोड़ने के साथ-साथ दांत, जबड़े और कान की अंत:संरचना के प्रतिस्थापन में होता है। यह एंटीबायोटिक व एंटीसेप्टिक भी होता है। इस कारण संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। यह घाव में कोशिका विखंडन की दर को बढ़ाकर उसे ठीक होने में मदद करता है। हड्डियों और कोशिकाओं की हीलिंग के दौरान यह कैल्शियम, फास्फोरस का स्त्राव करता है। तेजी से बन रहे शिकारडॉ। एनके सिंह के मुताबिक इंसान की तरह पशुओं में भी अब कैंसर, डायबिटीज आदि बीमारियां काफी बढ़ गई हैं। कुत्तों में स्तन कैंसर, यूट्रस कैंसर, मांसपेशियों का कैंसर, हड्डियों का कैंसर आदि ज्यादा पाया जा रहा है। हालांकि अन्य जानवरों में कैंसर जैसी अभी कम पायी जा रही है। लेकिन आएदिन केसेस बढ़ रहे हैं। ऐसे में रिसर्च बेस ट्रीटमेंट पर फोकस करना होगा।
दुनिया भर में डॉक्टर बायोग्लास का सर्जरी में उपयोग करते हैं। लेकिन कैंसर के इलाज में पहली बार प्रयोग किया गया है। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इसको लेकर रिसर्च स्टार्ट हो गया है। -डॉ। एनके सिंह, हेड , शल्य चिकित्सा विभाग, पश़ु चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू