एमएमवी-बीएचयू में मिलेट्स से उत्पाद बनाना सीख रही हैं छात्राएं बनाने के साथ पैकिंग और उसे बेचने की भी जानेंगी कला रिसर्च करने वाली छात्राओं के साथ मेस के महाराज भी शामिल


वाराणसी (ब्यूरो)मिलेट्स यानी मोटे अनाज की चर्चा आज हर तरफ हो रही है। पीएम मोदी से लेकर विराट कोहली तक इसके दीवाने हैं, वजह साफ है इसके हेल्थ बेनिफिट्स। मिलेट्स के हेल्थ बेनिफेट को देखते हुए पीएम मोदी ने इसे श्री अन्न की श्रेणी में शामिल किया है और जी-20 समिट में भी इसके व्यंजन से विश्व को रूबरू भी कराया है.

बन गया वरदान

हेल्थ एक्सपर्ट की माने तो मोटा अनाज आज दुनिया के लिए वरदान माना जा रहा है। पहले यह अनाज हमारे खान-पान का अहम हिस्सा थे, लेकिन बाद में इसे दरकिनार कर दिया गया, लेकिन अपने हेल्थ बेनिफिट की वजह से मोटे अनाज ने शान से वापसी की है। बनारस के घरों से गायब हो चुके इस अनाज को फिर से वापस लाने और लोगों की सेहत सुधारने के लिए महिला महाविद्यालय (एमएमवी)-बीएचयू ने पहल की है। एमएमवी के गृह विज्ञान विभाग की छात्राओं के लिए यहां श्री अन्न पर आधारित कार्यशाला आयोजित की गई है।

दे रहे पूरी ट्रेनिंग

विभाग के न्यूट्रिशन लैब में गुरुवार से शुरू हुए इस तीन दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन छात्राओं ने मिलेट्स के बारे में पूरी जानकारी ली। इसके साथ ही रागी के आटे से मठरी समेत अन्य मिलेट्स के प्रयोग के उत्पाद तैयार करने का गुर भी सीखा। पहले दिन मिलेट्स प्रोडक्ट बनाने की विधि सीखने के बाद छात्राएं दूसरे दिन इसके पैकिंग और तीसरे दिन इसे बेचने का गुर सीखेंगी। इसके साथ ही शनिवार को लगने वाले एग्जिबिशन में यही छात्राएं अपने बनाए प्रोडक्ट का स्टॉल भी लगाएंगी। कॉलेज की प्रशासनिक अधिकारियों की माने तो लुप्त हो चुके मोटे अनाज को एक बार फिर से लोगों की पहुंच तक लाने के लिए यह एक प्रयास है। इससे हम सभी की सेहत भी सुधरेगी।

मेस महाराज भी शामिल

गृह विज्ञान की विभागाध्यक्ष व कार्यशाला संयोजक प्रो। मुक्ता सिंह ने बताया कि कार्यशाला श्री अन्न उत्पादों के उत्पादन और विपणन में प्रशिक्षण प्रदान करके छात्राओं के बीच उद्यमशीलता कौशल विकसित कर कौशल भारत मिशन का समर्थन करने का एक प्रयास है। कार्यशाला की सह संयोजक प्रो। कल्पना गुप्ता ने बताया कि संपूर्ण कार्यशाला समूह को चार उप ग्रुप में विभाजित किया गया है। प्रत्येक ग्रुप में आठ प्रतिभागी हैं। छात्राओं के साथ-साथ हर ग्रुप में मेस (हॉस्टल के मेस महाराज) के एक कर्मचारी को भी शामिल किया गया है, ताकि वे बड़े पैमाने पर छात्राओं के लिए इन व्यंजनों को सीख सकें और अपने मेस में बना सकें। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में दूसरे दिन इन उत्पादों की पैकेजिंग एवं मार्केटिंग के बारे में जानकारी देते के साथ तैयार किए उत्पाद को पैक कराया गया है। तीसरे दिन इन उत्पादों को प्रदर्शनी लगाने के साथ ही इनकी बिक्री की जाएगी।

बता रहे प्रासंगिकता

एमएमवी-बीएचयू की प्राचार्य प्रो। रीता सिंह ने छात्राओं को अपने और अपने परिवार के लिए स्वस्थ भोजन की आदतें विकसित करने के लिए इन प्रथाओं को सीखने और अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के महत्व और मिलेट के माध्यम से हमारी विरासत को बढ़ावा देने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण, मिलेट की प्रासंगिकता को भी छात्राओं को बताया। वहीं भौतिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो। संजय कुमार ने कार्यशाला के आयोजन को सराहा। डीन स्टूडेंट्स प्रो। एके नेमा ने प्रतिभागी छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए वहां उपस्थित सभी मेस महाराज से भी बात की। छात्राओं का उत्साहवर्धन करने के साथ मिलेट्स के महत्व से परिचित कराने में डॉ। सुकन्या चक्रवर्ति, डॉ। प्रसंशा शर्मा, डॉ। पुष्पा, डेयरी साइंस एंड फूड डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। अनिल कुमार चौहान, ललीता वत्ता अहम भूमिका निभा रही है।

मिलेट्स क्या होता है

मोटा अनाज जिसे मिलेट्स भी कहते हैं। इसका सेवन हमारे सेहत के लिए काफी फायदेमंद है और इन अनाज को पोषक तत्वों का भंडार माना गया है। ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), मक्का, जौ, बाजरा, लघु घान्य, सांवा, कौदौ, कांगनी, कुटकी (लघु धान्य), कोदो, चेना (चीना), सामा या सांवा जैसे अनाज मिलेट्स में शामिल हैं। इसमें बीटा कैरोटीन, विटामिन-6, नाइयासिन, पोटेशियम, फौलिक एसिड, मैग्नेसियम, जिंक आदि भरपूर मात्रा में मौजूद होती है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है.

क्यों खाना हुआ बंद

भारत में 60 के दशक में मिलेट का उत्पादन कम हुआ और उसकी जगह लोगों की थाली में गेहूं और चावल सजा दिए गए। 1960 के दशक में हरित क्रांति के नाम पर यहां परंपरागत भोजन को हटा दिया गया। गेहूं को बढ़ावा दिया गया जो एक प्रकार का मैदा ही है। मोटा अनाज खाना बंद कर देने से कई तरह के रोग के साथ ही देश में कुपोषण भी बढ़ा है.

मोटे अनाज में काफी सारी खुबियां है। अपनी परंपरा को भूल हम जंक फूड को ज्यादा महत्व देने लगे है, यही वजह है कि हम बीमारियों की गिरफ्त में है। हम अपनी छात्राओं से अपने और अपने परिवार के लिए स्वस्थ भोजन की आदते विकसित करनेे के इन प्रथाओं को सीखने का अवसर दे रहे हैं, ताकि वे स्वस्थ समाज बनाने के साथ आत्म निर्भर भी बन सकें। इसमें उन्हें बनाने के साथ उसे बेचने तक की जानकारी दी जा रही है।

प्रोरीता सिंह, प्राचार्य, एमएमवी बीएचयू

Posted By: Inextlive