अमेरिका में मंदी और जीएसपी के चलते यहां के निर्यातकों को लगा करोड़ों का झटका 60 करोड़ के आर्डर डंप पिछले तीन साल में 35 परसेंट गिर गया एक्सपोर्ट अमेरिका को निर्यात होने वाले सामानों का बढ़ गया दाम रेट और क्वालिटी को लेकर बायर्स को संतुष्ट करना एक्सपोर्टरों के लिए बड़ी चुनौती

वाराणसी (ब्यूरो)वैश्विक मंदी के दौर में अगर यहां के एक्सपोर्टरों को जनरल सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस (जीएसपी) का दर्जा फिर से मिल जाए तो न सिर्फ एक्सपोर्ट का ग्राफ बढ़ेगा बल्कि डंप 60 करोड़ का आर्डर भी निकलेगा। 2019 में अमेरिका ने भारत से जीएसपी का दर्जा छिन लिए जाने से यहां के एक्सपोर्टरों को जबरदस्त झटका लगा था, जिससे वह आज तक उबर नहीं पाए। तीन साल के अंतराल में यहां के कारोबार में करीब 35 परसेंट की गिरावट आई है। इसके चलते यहां के एक्सपोर्टरों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। यहां के एक्सपोर्टरों ने एक बार फिर से जीएसपी की मांग उठाई है.

युद्ध ने भी कम किया कारोबार

पूर्वांचल के लिए वैश्विक मंच पर अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। लगातार मंदी के बादल मंडराने की वजह से यहां के निर्यातकों को भारी नुकसान हो रहा है। पहले जीएसपी का दर्जा छिन लिए जाने से इसके बाद यूक्रेन और रसिया के बीच चल रहे युद्ध से भी निर्यातकों को झटका लगा है। निर्यात का ग्राफ काफी नीचे आ गया है.

अमेरिका में 35 परसेंट से ज्यादा का कारोबार

कालीन समेत पूर्वांचल के हस्तशिल्प उत्पादों का सिर्फ अमेरिका में 35 प्रतिशत से ज्यादा का कारोबार होता है। यहां के लकड़ी के खिलौने, पत्थर के शिल्प, जरी जरदोजी, गुलाबी मीनाकारी, बनारसी मोतियां, जूट वाल हैंगिंग, कालीन व दरी, ब्लैक पॉटरी इत्यादि उत्पादों का एक्सपोर्ट किया जाता है.

4.5 हजार करोड़ का कालीन मार्केट

कालीन का ही निर्यात प्रतिवर्ष 4.5 हजार करोड़ का होता है। इनमें एक हजार करोड़ से ज्यादा के अन्य उत्पादों का भी निर्यात किया जाता रहा। एक्सपोर्टरों के अनुसार जब से जीएसपी खत्म हुआ एक्सपोर्ट के ग्राफ में करीब 35 परसेंट की गिरावट आयी है। यहां से जो प्रोडक्ट भेजा जा रहा है वह अलग महंगा पड़ रहा है.

चार लाख फैमिली कुटीर उद्योग से जुड़े

इस मार्केट से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो हथकरघा, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग से वाराणसी में करीब चार लाख से अधिक परिवार जुड़े हैं। इनके हाथों से बने सामान को अमेरिका में काफी पसंद किया जाता है। यही कारण है कि पूर्वांचल के जिलों से हर महीने करीब दो हजार करोड़ से अधिक का माल अमेरिका निर्यात किया जाता था जो घटकर आधा हो गया। एक्सपोर्ट करने पर बनारसी निर्यातकों को लंबे समय से जीएसपी का लाभ मिलता था। हर सामान पर जीएसपी में छूट के अनुसार निर्यातकों को लाभ मिलता था.

60 करोड़ के आर्डर डंप

जीएसपी के बंद होने से यहां के प्रोडक्ट अमेरिकी मार्केट में काफी महंगे हो गए हैं। जीएसपी मिलने पर 8 से 25 परसेंट तक छूट मिलती थी। एक तो छूट खत्म हो गयी दूसरे उत्पाद भी महंगे हो गए। इसके चलते अब लोग कम निर्यात कर रहे हैं। जीएसपी में छूट खत्म होने से यहां के मार्केट में करीब 60 करोड़ से अधिक के आर्डर डंप हैं.

क्या है जीएसपी

अमेरिका द्वारा भारत को व्यापार में दी जाने वाली तरजीह की सबसे पुरानी और बड़ी प्रणाली है। जीएसपी यानी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज। इसकी शुरुआत 1976 में विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि के लिए की गई थी। इसके तहत दर्जा प्राप्त भारत को हजारों का सामान बिना किसी शुल्क के अमेरिका को निर्यात करने की छूट मिलती थी। भारत 2017 में जीएसपी कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा.

अमेरिकी में मंदी का असर खत्म न होने से इसका असर यहां मार्केट पर पड़ रहा है। रही सही कसर यूक्रेन और रसिया के बीच चल रहे युद्ध ने पूरी कर दी है। एक्सपोर्ट का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है.

अमिताभ सिंह, अध्यक्ष, यूपिया

हथकरघा और हस्तशिल्प समेत कुटीर उद्योगों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है, लेकिन केंद्र सरकार अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी और खाड़ी के देशों को नया बाजार बनाए तो इस असर को खत्म किया जा सकता है.

राज दुआ, टे्रजरार, यूपिया

भारत सरकार जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम उठाए जिससे यह समस्या खत्म हो। जीएसपी खत्म होने से अमेरिकी बाजारों में भारतीय उत्पाद महंगे हो गए हैं। इसका असर यहां के बाजार पर पड़ रहा है.

जुनैद अंसारी, पूर्व अध्यक्ष, पूर्वांचल निर्यातक संघ

जीएसपी की शुरुआत सरकार को फिर से करनी चाहिए, जिससे यहां का एक्सपोर्ट बढ़ सके। वैश्विक मंदी ने इस सेक्टर को काफी नुकसान पहुंचाया है।

तुफैल अंसारी, साड़ी व्यवसायी

Posted By: Inextlive