गेम के खेल में पापा की जेब खाली
वाराणसी (ब्यूरो)। बच्चों में ऑनलाइन गेम खेलने की बढ़ती लत पैरेंट्स के हैप्पीनेस को खत्म कर रही है। गेम खेलने के दौरान जहां बच्चे विभिन्न तरह के टूल्स, प्वाइंट्स और क्वॉइंस खरीदने में रुपये खर्च कर पापा के अकाउंट खाली कर रहे हैं तो वहीं गेम खेलने के दौरान साइबर अपराधी भी बच्चों को विभिन्न तरह के ऑफर देकर अपना शिकार बना रहे हैं। इन सब खेल का घरवालों को पता तक नहीं लगता कि उनका बच्चा किस तरह के खेल में बुरी तरह से फंस गया है। इसके बाद बच्चे पैरेंट्स के डर से दुनिया से चले जाते हैं और जब मां-बाप को बच्चों के इस लत की जानकारी होती है तब तक सबकुछ खत्म हो चुका होता है। अगर आपका बच्चे में भी किसी गेम खेलता है तो संभल जाइए कही ऐसा न कि वह भी किसी का शिकार हो जाए।
यूपी के कई शहरों में बच्चों की मौत
ताजा मामला कानपुर का है। जहां 6 दिन पहले 16 साल के एक छात्र ने फांसी लगाकर जान दे दी। पैरेंट्स उसके इस सुसाइड की वजह समझ नहीं पा रहे थे। फारेंसिक टीम ने जब उसके मोबाइल के लॉक को क्रैक किया तो मौत का राज खुला। वह छात्र गेम में 65 हजार गंवा चुका था। इसी तरह पांच महीने पहले लखनऊ में कक्षा-8 में पढऩे वाली एक छात्रा की मां ने ऑनलाइन गेम खेलने से मना किया तो उसने सुसाइड कर लिया। छात्रा हजारों रुपये गेम के चक्कर में गंवा चुकी थी।
कहीं आपका बच्चा कर न ले सुसाइड अधिकतर लोग अपने मोबाइल नंबर से यूपीआई का इस्तेमाल करते हैं। इसे बच्चे गेम से जोड़ लेते हैं। फिर गेम खेलने के दौरान विभिन्न तरह के हथियार बंदूक, लाइफ लाइन सहित अन्य चीजें खरीदते हैं। कुछ पैरेंट्स तो बकायदा यूपीआई आईडी से पेमेंट्स खुद कर देते हंै। लेकिन पैरेंट्स इस बात से अंजान हैं कि उनका बच्चा एक ऐसे दलदल में फंस रहा है जहां से न निकलने पर वह या तो सुसाइड जैसे कदम उठा सकता है या फिर अपने मां-बाप के अकाउंट को सफाचट करा देगा। इस तरह से बनाते हैं शिकारऑनलाइन गेम खेलने के दौरान मां या पिता के अकाउंट से विभिन्न तरह के हथियार (टूल्स) खरीदकर रुपये खर्च कर दिए। इस तरह के लेनदेन का पहला मैसेज तो मोबाइल फोन पर आता है। उसके बाद किए गए लेनदेन की जानकारी नहीं मिल पाती। ऐसे में पैरेंट्स को बैंक खाते से खर्च किए गए रुपए की सही जानकारी नहीं मिल पाती। धीरे-धीरे जब यह रकम बढ़कर अधिक हो जाती है तो लोग साइबर ठगी की शिकायत दर्ज कराते हैं। जांच के बाद मामला सामने आता है कि गेम खेलने के दौरान बच्चे ने पैसे खर्च किए हैं। इसके बाद शिकायकर्ता भी अपना प्रार्थना पत्र वापस ले लेते हैं.
लालच में बच्चे गंवा देते हैं पैसे साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक कई गेम प्ले स्टोर से हटा दिए गए हैं, लेकिन उनको एपीके (एंड्राइड पैकेज किट) के जरिए अभी भी डाउनलोड किया जा रहा है। इन गेम में रुपए के लेनदेन की जानकारी मोबाइल के मैसेज इनबॉक्स से नहीं मिल पाती है। साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक रॉबलॉक्स, माइनक्राफ्ट, फोर्टना इट और एपेक्स जैसे गेम के जरिए साइबर ठग बच्चों को शिकार बनाते हैं। ज्यादातर बच्चे लालच के चक्कर में पैसे गंवा देते है। गेम में खरीदारी के शुरूआत में फायदे मिलते हैं, लेकिन उसके बाद सिर्फ लूटते ही जाते हैं। बच्चों को टॉपअप वाले गेम से दूर रखें -टॉपअप वाले गेम से बच्चों को दूर रखना चाहिए। -बच्चे उनमें लेवल पार करने की होड़ में ऐसा कर रहे हैं. -पैरेंट्स बच्चों को वह मोबाइल न दें, जिसमें बैंक खाता लिंक हो। -समय-समय पर अकाउंट चैक करें.-पैसे किस अकाउंट में जा रहे हैं। इसका ध्यान रखें.
-मोबाइल पर आने वाली किसी भी लिंक को क्लिक न करें क्योकि वह लिंक पूर्णत फर्जी रहती है. -मोबाइल पर कोई मैसेज लिंक के साथ आए तो उस लिंक को भी क्लिक न करें। ये सावधानी बरतें -बैंक एकाउंट के लेनदेन के लिए अलग मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का इस्तेमाल करें. -एटीएम कार्ड और बैंक से संबंधित दस्तावेजों की जानकारी बच्चों को कतई उपलब्ध न कराएं. -ऑनलाइन सामान मंगाने के दौरान मोबाइल फोन पर अधिकृत एप का इस्तेमाल करें. -मोबाइल फोन पर अपना इंटरनेट बैकिंग यूजरनेम और पासवर्ड कभी सेव न करें। -फोन पर स्पैम (इंटरनेट पर भेजे जाने वाले अप्रासंगिक या अनचाहे संदेश) अलर्ट रखें, एंटी वायरस भी इस्तेमाल कर सकते हैं. मानसिक रूप से बीमार भी कर रहाये गेम सिर्फ अकाउंट साफ करना या बच्चों को सुसाइड करने पर मजबूर नहंी कर रहे, बल्कि मानसिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। एसएसपीजी हॉस्पिटल में प्रति माह 1500 से ज्यादा मानसिक रोग के मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसमें 40 से 50 फीसदी वे बच्चे भी शामिल हैं, जो मोबाइल व गेम की लत में जकड़े हैं। मनोचिकित्सकों की मानें तो कोरानाकाल के दौरान बच्चों को जो मोबाइल की लत लगी है वह अब ज्यादा हावी हो गया है।
ये गेम हैं खतरनाक फ्री फायर पीकर ब्लैक जैक कसीनो लूडो रमी तीन पत्ती कूपन रिडीम रश एप गेम फंटासी माई फैबना गेमजी फंटासी विंजो रमी गोल्ड विंजो कोरोनाकाल के दौरान बच्चे स्मार्ट फोन से पढऩे के साथ गेमिंग के भी एडिक्स हो गए हैं। ऐसे केसेज में लगातार इजाफा हो रहा है। अब ऑनलाइन पढ़ाई नहीं हो रही है, लिहाजा पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल से दूर रखने का प्रयास करें। अगर दें भी तो उसकी प्रॉपर मॉनिटरिंग करें. डॉ। रवीन्द्र कुशवाहा, साइक्राटिक-एसएसपीजी साइबर ठगी के लिए जालसाज फर्जी गेम साइट बनाते हैं। इससे निजी जानकारी मांगकर हैकर अपने सर्वर में सुरक्षित कर लेते हैं, जिससे ठगी होती है। बच्चे के मोबाइल पर पैरेंट कंट्रोल एप डाउनलोड करें, जिससे बच्चे के मोबाइल की निगरानी हो सकेगी। अनवांटेड चीजें कभी डाउनलोड न करें. अरुण सिंह, साइबर एक्सपर्ट