लड़कियां भी बुनकरी के काम को बखूबी दे रही अंजाम
-जिले की 24 लड़कियां हथकरघे पर दिखा रही हैं अपना हुनर
-साड़ी बीनकर डेली कमा रही हैं 300-400 रुपए -प्रवासी सम्मेलन में इनके हाथ से बनी साडि़यों को किया जाएगा प्रदर्शित VARANASI बनारसी साड़ी पूरी दुनिया में फेसम है और बुनकरों के हुनर की चर्चा देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी होती है। इस क्षेत्र में पुरुष बुनकरों का दबदबा जगजाहिर है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। लड़कियां भी बुनकरी के काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं। ये कुशल बुनकर बनकर साडि़यां बना रही हैं और आर्थिक रूप से मजबूत बन रही हैं। फिर क्या और बढ़ा दिया कदमपुरुषों के साथ महिलाएं या लड़कियां रीलिंग, चरखा चलाने, कटाई, तनाई आदि काम करती आयी हैं, लेकिन इनको करघे पर बैठकर ढरकी फेंकने देने से परहेज ही किया गया। इसका रिजल्ट ये रहा कि एक्सपर्ट कारीगरों की संख्या कम होती गई और बनारस का कढुआ बुनकरी खत्म होता गया। पावरलूम और मशीनों से माल तैयार कर हथकरघा के नाम पर ग्राहकों को बेचा जाने लगा। इस बीच सितम्बर 2009 में जीआई रजिस्ट्रेशन के बाद गुणवत्ता वाली हथकरघा की बनारसी साड़ी और वस्त्रों की डिमांड बढ़ने लगी। फिर क्या, बस इसी अवसर का लाभ उठाने के लिए दीनदासपुर जंसा, भटपुरवरा, चंदापुर गांव की 24 लड़कियाें ने इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने का फैसला लिया। ये लड़कियां हाईस्कूल, स्नातक व एमए कर रही हैं। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से बीए करने वाली दीनदासपुर की नूरफसा कहती हैं कि अगर सीखने के बाद 300-400 रुपए रोज साड़ी बीनने पर मिलेगा, तो इस पुश्तैनी पेशे में क्या हर्ज है। सुनीता कहती हैं कि इस काम को करके हम लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इन्हीं की तरह फातमा खातून, नाजमा, सलमा, बेबी बानो, पूनम, सुन्दरी, संजू, रेखा, निशा, सुल्ताना, जरीनिशां, मैमुननिशां भी हिम्मत दिखाकर आगे बढ़ रही हैं। ये बेधड़क करघे पर बैठकर ढरकी फेंकते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ काम कर रही हैं।
दिखाएंगी अपना कौशलह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के निदेशक डॉ। रजनीकांत कहते हैं कि एक साल पहले बुनकर परिवार की 18 से 25 वर्ष की 24 लड़कियों को बुनकर के रूप में प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया गया। इन लड़कियों के हाथ से बनी साडि़यों को प्रवासी भारतीय सम्मेलन में प्रदर्शित किया जाएगा। ये दीनदयाल हस्तकला संकुल में हजारों प्रवासी भारतीयों के सामने हथकरघे पर बनारसी साड़ी बुनकर अपने कौशल को दिखाएंगी, जिसमें विशेषकर कढ़ुआ साड़ी जो मूलरूप से बनारस का प्रसिद्ध है, वह विशेष आकर्षण का केंद्र होगा। इन लड़कियों को प्रशिक्षित कर बुनकर बनाने वाले मास्टर बुनकर शाहिद, संतोष, युनूस ने कहा कि हम लोगों ने सोचा नहीं था कि लड़कियां इतनी जल्दी सीखकर कुशल बुनकर बन जाएंगी।