Varanasi news: रील्स में खोया रियल बचपन
वाराणसी (ब्यूरो)। मोबाइल फोन की लत बच्चों यानी टीनेजर्स के लिए परेशानी बनती जा रही है। ये सिर दर्द, अनिद्रा, आंखों और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। नशे के दुष्प्रभाव के रूप में सामने आने वाली मतिभ्रम की समस्या मोबाइल फोन पर दो घंटे से अधिक वीडियो देखने पर भी खड़ी हो रही है। 5 साल से 17 साल तक के बच्चों के पेरेंट्स मतिभ्रम और उनकी स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान होकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। बनारस में ऐसे केसेस लगातार बढ़ रहे हैं। मंडलीय अस्पताल के मानसिक रोग ओपीडी में डेली 10 से 15 केस आ रहे हैं। इन मरीजों में कई मरीज सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, नींद नहीं आना, आंखों की रोशनी कमजोर होने आदि की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं.
चिड़चिड़ापन हो रहा हावी
मंडलीय अस्पताल के मनकक्ष विभाग में पहुंच रहे बच्चे और यंगस्टर्स काउंसलिंग के दौरान बता रहे हैं कि रातभर रील्स देखने के कारण वे दो से तीन घंटा ही सो पाते हैं। इसके बाद पता लग रहा है कि रील्स देखने का चस्का इन्हें मानसिक तौर पर बीमार कर रहा है। इसके चलते सिरदर्द और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं हो रही हैं। ये रील्स इन पर इस कदर हावी हो रहे हैैं कि रात में नींद टूटने पर लोग दोबारा इन्हें देखने बैठ जाते हैं। इससे उनकी नींद से लेकर मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ रहा है। एक तरह से देखा जाए तो रील्स के चक्कर में उनकी रियल लाइफ खराब हो रही है.
रील बनाने की भी बीमारी
मनोचिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल एडिक्शन का शिकार होकर आने वाले मरीजों की जांच में पता चला है कि अगर ये लोग नए-नए रील्स नहीं बताते हंै तो ये डिस्टर्ब हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में वे पेरेंट्स और दोस्तों के साथ मिसबिहैव करते हैं, जिससे परेशान होकर पेरेंट्स मनकक्ष तक पहुंच रहे हैं.
मायोपिया जैसी समस्या के शिकार
लगातार रील्स देखने के चक्कर में बच्चों का विजन कमजोर हो रहा है। आंखों की समस्या लेकर ओपीडी में डेली 5 से 7 बच्चे जांच के लिए पहुंच रहे हैं। मोबाइल के कारण इनमें मायोपिया जैसी समस्या देखने को मिल रही.
ऐसे करें बचाव
-मोबाइल इस्तेमाल कम करें.
-रील्स देखने का समय निर्धारित करें.
-फैमिली और फ्रेंड्स से बातचीत करें.
-अच्छी बुक्स पढ़ें.
-खाना खाते समय परिवार को समय दें.
सिर्फ रील्स देखने का ही नहीं लगातार मोबाइल का इस्तेमाल बच्चों को मानसिक तौर पर बीमार कर रहा है। इनमें चिड़चिड़ापन, काम में मन नहीं लगना जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। पेरेंट्स अगर बच्चों को सिर्फ जरूरतभर ही मोबाइल उनके हाथ में दे तो ही बेहतर रहेगा.
डॉ। रविन्द्र कुशवाहा, साइकियाट्रिस्ट, मंडलीय अस्पताल
पेरेंट्स बच्चों को समय देने के बजाय स्मार्ट फोन दे रहे हैं, जबकि वो ये नहंी समझ रहे हैं कि प्यार और दुलार में वो उन्हें एक ऐसा जहर दे रहे है जिससे वे हमेशा के लिए बीमार पड़ सकते हैं। काउंसलिंग के दौरान बच्चे जिस तरह से मोबाइल इस्तेमाल के अपने एक्सपीरिएंस बताते हैं वे उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है.
रूचि चौरसिया, काउंसलर, मनकक्ष विभाग, मंडलीय अस्पताल
कोरोना के बाद से बच्चे मोबाइल पर ही पढ़ाई भी कर रहे हैं, उसके बाद मौका मिला तो रील देख रहे। इसके चक्कर में आंखों की रोशनी कमजोर पड़ रही है। जांच के बाद इनमें मायोपिया जैसी समस्या देखने को मिल रही। 5 से 18 साल तक के बच्चों में यह समस्या ज्यादा देखी जा रही है.
डॉ। आरएन सिंह, आई स्पेशलिस्ट, मंडलीय अस्पताल