Varanasi news: अब 20 की उम्र में महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर
वाराणसी (ब्यूरो)। दुनिया में यूं तो कैंसर के मामले महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में पाए जाते हैं, लेकिन भारत में इसका ट्रेंड थोड़ा उल्टा है। इसकी वजह है सर्वाइकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा), जो न सिर्फ वल्र्ड लेवल पर महिलाओं की सेहत के लिए बड़ा खतरा है, बल्कि भारत पर भी इसका गहरा प्रभाव है। सामाजिक बंदिशों और माहौल के हिसाब से यहां रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर खुलकर बात नहीं होती है। ऐसे में जरूरी है कि सर्वाइकल कैंसर पर बात की जाए, इसके बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए।
बनारस में कई सेंटर
बात अगर बनारस की करे तो यहां जिस तरह से कैंसर रोग को लेकर होमी भाभा कैंसर संस्थान, महामना पं। मदनमोहन मालवीय कैंसर सेंटर-बीएचयू, एपेक्स हॉस्पिटल समेत कई बड़े कैंसर सेंटर स्थापित हुए है, उसी तरह से यहां कैंसर के मरीजों में भी इजाफा हो रहा है। इसमें भी महिलाओं में होने वाले सर्वाइकल कैंसर के मरीज ज्यादा आ रहे हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि जहां पहले 50 की उम्र के बाद महिलाएं इस कैंसर की चपेट में आती थी, वहीं यंग वीमेन और युवतियों में भी देखने को मिल रही है। कैंसर स्पेशलिस्ट का कहना हैं कि अब 20 से 30 आयु वर्ग में यह रोग तेजी से फैल रहा है।
समय से इलाज जरूरी
बनारस में करीब-करीब सभी कैंसर हॉस्पिटल में एक दो नहीं दर्जनों ऐसे मामले आ चुके हैं, जो बेहद कम उम्र में ही महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित कर दिया है। चिकित्सकों का यह भी कहना है कि सर्वाइकल कैंसर का समय से इलाज न होने से मौत भी हो सकती है।
तेजी से बढ़ रहे मामले
पूर्वी उत्तर प्रदेश व पूर्वोत्तर के राज्यों में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। महिलाएं लक्षणों को दरकिनार करती हैं। यही वजह है कि रोग ज्यादा बढऩे के बाद जानकारी हो पाती है। एक आंकड़े के मुताबिक देश में हर 47 मिनट में एक महिला को सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है और हर 8 मिनट में 1 महिला की सर्वाइकल कैंसर से मौत हो रही है।
आसपास के ज्यादा पेशेंट
एपेक्स की मेडिकल ऑन्कोलॉजी डॉ। अंकिता पटेल ने बताया कि पूरे वल्र्ड में सर्वाइकल कैंसर चौथे नंबर पर, लेकिन भारत में यह ब्रेस्ट कैंसर के बाद दूसरे नंबर पा आती है। सबसे अहम बात ये है कि अब यह यंग वीमेन में भी बढ़ रहा है। इस तरह के ज्यादातर केस लोवर सोशल इकोनॉमी स्टेटस वाली महिलाओं में देखा गया है। सिर्फ बनारस ही नहीं गाजीपुर, मीर्जापुर, जौनपुर, बलिया, सोनभद्र जैसे शहरों से भी काफी पेशेंट में सर्वाइकल कैंसर पाया जा रहा है। इसमें भी 95 परसेंट में यह एचपीवी वायरस के कारण पाया गया है।
बहुत सारे हैं कारण
इसके बहुत सारे कारण है, जैसे इम्यून सिस्टम कमजोर होना, एचपीवी वायरस इंफेक्शन, एचआईवी होना यां लंबे समय से एचपीवी होने से संभावना बढ़ जाती है। एपेक्स हॉस्पिटल में हर माह 20 से 25 महिलाओं का इलाज हो रहा है। इसी तरह बीएचयू और टाटा कैंसर हॉस्पिटल में आने वाले कैंसर पेशेंट में करीब 10 से 15 फीसदी ऐसे केस आ रहे हैं। हालांकि जिस तरह से इस कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, उसी तरह से इसे लेकर जागरुकता भी बढ़ रही है। रोग के बढऩे से पहले गाइक्नोलॉजिस्ट इसे आइडेंटीफाई कर ले रही है। जिसके बाद समय रहते इलाज शुरू कर दिया जा रहा है।
एनल और वैल्वुलर कैंसर
मैक्स हॉस्पिटल की मेडिकल ऑन्कोलॉजी डॉ। मीनू वालिया ने बताया कि सर्वाइकल कैंसर एचपीवी के हाई रिस्क स्ट्रेन के लगातार इंफेक्शन के कारण होता है। ये कैंसर सबसे ज्यादा एचपीवी-16 और एचपीवी-18 के कारण होता है। इन वायरस स्ट्रेन से न सिर्फ सर्वाइकल कैंसर होता है बल्कि वैजाइनल, एनल और वैल्वुलर कैंसर का रिस्क भी रहता है। पुरुषों में एचपीवी की वजह से एनल, पेनिस और गले का कैंसर हो सकता है। यह कैंसर सभी कैंसर में एक ऐसा कैंसर है जिससे बचाव किया जा सकता है।
हर साल एक लाख पेशेंट
हर साल एक लाख से ज्यादा महिलाएं इस बीमारी से जूझती हैं जिनमें से 60 हजार के करीब इसकी गिरफ्त में आ जाती हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि इस समस्या का समाधान जल्द निकालने की जरूरत है। लेकिन अवेयरनेस की कमी और गलतफहमियों के चलते इसका असर बढ़ता है। खासकर, ग्रामीण इलाकों में बहुत महिलाओं को इस बात की जानकारी नहीं है कि किस तरह की सावधानियां बरतकर ऐसी परेशानियों से बचा जा सकता है.
वैक्सीनेशन है जरूरी
एचपीवी के लिए टीकाकरण कराना बेहद जरूरी है, इससे सर्वाइकल कैंसर का रिस्क कम हो जाता है। भारत सरकार ने भी 2018 में नेशनल एचपीवी वैक्सीनेशन प्रोग्राम लॉन्च किया था, जिसका मकसद 11-14 साल की किशोरियों को वैक्सीनेट करना था। इस तरह की तमाम प्रयासों के बावजूद एचपीवी वैक्सीनेशन काफी कम है और 2021 तक महज 10 फीसदी टारगेट ही पूरा हो सका। हालांकि, सर्वाइकल कैंसर के टीके लंबे समय से उपलब्ध हैं, लेकिन सर्ववैक ऐसा एचपीवी टीका है जो स्वदेशी है। ये टीका लगवाना काफी किफायती है। एचपीवी के खिलाफ लड़ाई में ये बहुत अहम है क्योंकि जो लोग ये टीका अफॉर्ड नहीं कर पाते थें, अब उनके लिए आसान हो गई है.
पैरेंट्स की जिम्मेदारी
ये टीका लेने के लिए मुख्य रूप से 9 से 26 साल की एज को सही माना जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सेक्सुअल रिलेशन में आने से पहले ही टीका ले लिया जाए, क्योंकि फिर एचपीवी संक्रमण होने का रिस्क रहता है। इसके अलावा कम उम्र में टीका लेने से इसका असर भी ज्यादा रहता है। ऐसे में सभी पैरेंट्स के लिए अपने बच्चों का वैक्सीनेशन कराना उनकी जिम्मेदारी है। डॉ। अंकिता पटले का कहना है कि सर्वाइकल कैंसर से बचाव में बड़ी कमी ये है कि यहां रुटीन चेकअप पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। जिससे रोग के जल्दी पता लगने की संभावना रहती है। रेगुलर चेकअप और एचपीवी टेस्ट के जरिए कैंसर के संकेतों का पता लग जाता है, जिससे शुरुआत में ही कैंसर की ग्रोथ को खत्म किया जा सकता है। दुर्भाग्य से भारत में ज्यादातर महिलाएं रेगुलर स्क्रीनिंग से बचती हैं। हालांकि अब प्रेगनेंसी चेकअप के या गाइक्नोलॉजिस्ट के पास जांच के दौरान इसे डिटेक्ट कर लिया जा रहा है।
बदलाव पर ध्यान दें
महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) (मासिक चक्र का बंद होना) का समय 45 वर्ष के बाद माना जाता है। रजोनिवृत्ति के बाद यदि ब्लीडिंग हो रही है तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसमें लापरवाही बाद में कैंसर का कारण बन सकती है। डॉ। अंकिता पटेल बताती है कि ं 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी रजोनिवृत्ति के बाद की समस्याओं से जूझ रही है। रजोनिवृत्ति के बाद यदि गुप्तांग में जलन, खुजली, पेशाब में दिक्कत, पानी गिरने की समस्या हो रही है तो पहले स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। शरीर में हार्मोन के परिवर्तन के कारण ऐसा होता है। पूर्वांचल की युवतियों व महिलाओं में तेजी से मोटापा बढ़ रहा है। इसलिए इसका एक फैक्टर ये भी हो सकता है।
कम उम्र में दिक्कत क्यों?
कैंसर से पहले होने वाले बदलावों का पता लगाने में पैप स्मीयर की भूमिका बेहद अहम है, बावजूद इसके कम उम्र की महिलाओं के बीच यह जांच कराने वालों की संख्या काफी कम है। इसकी मुख्य वजहें जागरूकता की कमी, परेशानी का डर और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच जैसी लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियां हैं।
एचपीवी का बढ़ता खतरा
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण है और यह असुरक्षित यौन संबंधों की वजह से फैलने वाला बहुत ही सामान्य प्रकार का संक्रमण है। कम उम्र में यौन संबंध बनाने और कई लोगों से संबंध बनाने से अधिक जोखिम वाले एचपीवी स्ट्रेन का खतरा बढ़ सकता है।
सर्वाइकल कैंसर के लक्षण
- सेक्स के बाद ब्लीडिंग
-मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग
-तेज गंध के साथ ब्लीडिंग
-पेड़ू में लगातार दर्द बने रहना
-पीरियड्स बंद होने के बाद ब्लीडिंग
-पॉटी में ब्लड आना
सर्वाइकल कैंसर ब्रेस्ट कैंसर के बाद दूसरे नंबर पा आती है। सबसे अहम बात ये है कि अब यह यंग वीमेन में भी बढ़ रहा है। 20 से 30 साल की वीमेन और युवतियों में यह कैंसर देखा जा रहा है। एचपीवी सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण है। अब इस कैंसर का इलाज संभव है। हालांकि अगर सही समय पर इसकी पहचान नहीं हुई तो यह लीवर और फेफड़े तक पहुंच जाता है, जिससे बच पाना मुश्किल होता है। इसलिए इससे बचने के लिए वीमेन नियमित जांच कराती रहे।
डॉ। अंकिता पटेल, ऑन्कोलॉजी व डायरेक्टर, एपेक्स हॉस्पिटल