एमएस डॉ. केके गुप्ता ने कहा- यह मेडिकल कॉलेज है अस्पताल की व्यवस्था सीएमओ करे बीएचयू के एसएस हॉस्पिटल के सुपर स्पेशियलिटी वार्ड में दो साल से कॉडियोलॉजी डिपार्टमेंट के लॉक्ड बेड को लेकर दो अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई


वाराणसी (ब्यूरो)बीएचयू के एसएस हॉस्पिटल के सुपर स्पेशियलिटी वार्ड में दो साल से कॉडियोलॉजी डिपार्टमेंट के लॉक्ड बेड को लेकर दो अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई में हर रोज नई-नई बातें सामने आ रही हैं। जहां कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रो। ओमशंकर तीन दिन से आमरण अनशन कर हैं। वहीं, अस्पताल के एमएस आरोपों और मांग को गलत ठहराने में लगे हैं। जबकि मरीजों के बीच से यह बात निकलकर सामने आ रही है कि बेड न मिलने की समस्या सिर्फ कॉर्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में ही नहीं है। बल्कि मेडिसिन, नेफ्रोलॉजी, बर्न यूनिट और इमरजेंसी वार्ड में भी पेशेंट्स को बेड न मिलने से प्रॉब्लम फेस करनी पड़ती है। इमरजेंसी में पहुंचने वाले मरीज के अटेंडेंट अपने मरीजों को स्ट्रेचर पर ही लेकर पड़े रहते हैं। मरीज तड़पता रहता है, मगर बेड नहीं मिलता। यहां मरीजों को बेड मिले न मिले। इससे बीएचयू प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता।

ये अस्पताल पोस्ट ऑफिस का बॉक्स नहीं

हॉस्पिटल के एमएस से प्रो। केके गुप्ता ने कहा, हर विभाग को एनएमसी के रूल के हिसाब से ही बेड उपलब्ध कराए गए हैं। उनका कहना हैं कि जब तक रेजिडेंट डॉक्टर नहीं बढ़ेंगे तब तक कहीं भी बेड की संख्या नहीं बढ़ सकती। अब रही मरीज ज्यादा आने की बात तो उनके लिए जिला व मंडलीय जैसे दूसरे अस्प्ताल भी हैं। मरीजों के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था की जिम्मेदारी सीएमओ और जिला प्रशासन की है। बीएचयू मेडिकल कॉलेज को पोस्ट ऑफिस बॉक्स की तरह बना दिया गया। जिसका मन करता है वो ही बीएचयू में मरीज रेफर कर देता है। ये कोई सर्विस अस्पताल नहीं है। ये एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल है। प्रदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में चले जाइए बगैर रेफर के केस नहीं लिया जाता। यहां तो जो आ रहा है उसे देखना पड़ रहा है। देश की हर संस्था लिमिटेशन में काम कर रही है। जिस तरह से लखनऊ में 7 मेडिकल कॉलेज, 3 सरकारी अस्पताल हैं। उसी तरह से सरकार बनारस में भी मेडिकल कॉलेज क्यों नहीं बना देती है।

हम पहले डॉक्टर को तैयार करने के लिए है

एमएस का यह भी कहना है कि हम टीचर, हम डॉक्टर बनाएंगे। हमारा अप्वाइंटमेंट एमबीबीएस को पढ़ाने और डॉक्टर को तैयार करने के लिए हुआ है। हमारा प्रियॉरिटी पहला पढ़ाना, दूसरा रिसर्च और उसके बाद मरीज देखना है, लेकिन यहां बुखार, खांसी जुकाम का मरीज भी आ जाएगा तो उसे देखना पड़ रहा है। अस्पताल के किस विभाग को कितने बेड दिए गए। उसके बारे में बताने के बजाए एमएस सिर्फ एनएमसी के नियम की बात कर रहे हैं। उनका कहना हैं एनएमसी नियमावली कहती है कि अगर डीएम या एमसीएस कैंडिडेट्स एक है तो 16, तीन है तो 20 और 5 है तो 30 बेड होने चाहिए। कहने का मतलब ये भी है कि एक यूनिट को मैक्सिमम 30 बेड दिया जा सकता है। लेकिन कॉर्डियोलॉजी में एक ही यूनिट है जिसमें 61 बेड दिए गए है। सिर्फ बेड बढ़ाने से काम नहीं चलेगा। उसके लिए मैन पावर भी चाहिए। बेड बढ़ जाएगी तो उस पर एडमिट मरीज की जिम्मेदारी कौन लेगा। 90 बेड पर 15 रेजिडेंट चाहिए कहां से आएंगे। ऐसे मरीजों को देखने के लिए मेडिकल ऑफिसर नहीं रख सकते। इसके अलावा एक बेड पर चार नर्स चाहिए। वो भी नहीं हैं।

बर्न वार्ड में सबसे ज्यादा दिक्कत

अस्पताल में बर्न वार्ड में सबसे कम बेड हैं। यहां मरीजों के लिए मात्र 6 बेड एलोकेट किए गए। बनारस में 80 परसेंट से ज्यादा जले हुए लोगों को इस अस्पताल में एडमिट किया जाता है, लेकिन बेड की संख्या कम होने से लोगों को प्राइवेट हॉस्पिटल का सहारा लेना पड़ रहा है। सोमवार को भी कार्डियोलॉजी और अन्य विभाग के मरीज बेड के लिए चक्कर लगाते रहे, लेकिन उन्हें बेड नहीं मिला। इस पर एमएस का कहना है कि बर्न वार्ड को ट्रामा में होना चाहिए था, लेकिन वहां जगह कम है, इसलिए यही चला रहे हैं। वैसे भी ये वार्ड आसईसीयू सिस्टम में आता है। इसलिए इसमे इससे ज्यादा बेड नहीं रख सकते।

डॉओम शंकर को नोटिस

कॉर्डियोलॉजिस्ट प्रो। ओम शंकर शनिवार से आमरण अनशन पर हैं, लेकिन तीसरे दिन भी बीएचयू प्रशासन का कोई पदाधिकारी उनका हाल जानने नहीं पहुंचा। अलबत्ता उन्हें एक नोटिस थमाकर इस बेमियादी धरना करने के पीछे की मंशा पूछा गई है। दिल के मरीजों ख्याल रखने वाले डॉ। शंकर खुद पिछले तीन दिन से सिर्फ नींबू पानी ही पी रहे हैं। वे अपनी मांगों को लेकर अभी भी अड़े है। सोमवार को राजातालाब बार एसोसिएशन के पदाधिकारी, बीएचयू के छात्र-छात्राएं, इंटरनेशनल एथलिट नीलू मिश्रा ने भी वहां पहुंचकर अपना समर्थन दिया।

छात्रों ने हस्ताक्षर कर किया सपोर्ट

अनशन पर बैठे प्रो। ओम शंकर को सपोर्ट करने के लिए बीएचयू के छात्रों ने कागज पर हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की है। 150 से ज्यादा छात्रों ने इस पर हस्ताक्षर कर अपना मोबाइल नंबर भी दर्ज किया है। डॉ। शंकर के साथ मरीज भी उनके साथ चेंबर में ही रात जमीन पर ही बिता रहे हैं। लोगों को कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी विभाग के विभागाध्यक्ष मरीजों के हित में स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरूस्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

पेशेंट्स की पीड़ा

कोरोना के बाद से दिल की समस्या से जूझ रहे हैं। एक बार अटैक आ चुका है। पटना में दिखाया तो वहां सही इलाज नहीं हुआ। यहां आया तो डॉ। शंकर को दिखाना शुरू किया। बेड न होने से वे एडमिट नहीं हो पा रहे हैं।

अशोक कुमार, हार्ट पेशेंट, आरा बिहार

मेरी पत्नी दिल की बीमारी से ग्रसित है। पिछले कई माह से यहां आ रहा हूं, लेकिन बेड न होने से उन्हें एडमिट नहीं कर पा रहा था। डॉ। शंकर के प्रयास से कुछ दिन पहले बेड मिला, लेकिन सर्जरी के दूसरे दिन यानि दो ही दिन मे डिस्चार्ज कर दिया गया। क्योकि अगले पेशेंट को बेड देना था।

सुरेन्द्र प्रसाद, अटेंडेंट, सासाराम

मरीज बढऩे से कुछ नहीं होता। किसी भी विभाग को एनएमसी के नियम के बिना बेड नहीं दिया गया है। इसलिए यह नियम कॉर्डियोलॉजी पर भी लागू होता है। अगर ज्यादा बेड चाहिए तो जिरियाट्रिक सेंटर की तरह ये भी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी खोल लें। जैसे उनका 100 बेड का सेंटर बन रहा है। उसी तरह इनका भी बन जाएगा।

प्रोकेके गुप्ता, एमएस, एसएस हॉस्पिटल-बीएचयू

अगर एमएस यूनिट वाइज बेड देने की बात कह रहे हैं तो उनकी तीन यूनिट हैं। इस लिहाज से तो उन्हें हमे स्वेच्छा से ही 90 बेड दे देना चाहिए, क्यों अपने मान सम्मान का छिछालेदर करा रहे हैं। अगर एनएमसी के नियम को मानते हैं तो सीटीवीएस में 61 बेड कैसे अलॉट कर दिए। वो तो एक यूनिट भी नहीं है।

प्रोओम शंकर, एचओडी, कार्डियोलॉजी- बीएचयू

Posted By: Inextlive