ओलंपिक गेम्स में पार्टिसिपेट करने वाले एथलीट को सिगरा स्टेडियम से उम्मीदें वाराणसी के खिलाडिय़ों ने ओलंपिक खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन का शहर का नाम रोशन किया


वाराणसी (ब्यूरो)आज वल्र्ड ओलंपिक डे है। इस दिन की हिस्ट्री भी रोचक है। 1948 को इंग्लैंड के लंदन शहर में ओलंपिक आंदोलन के स्थापना के 50 साल पूरे होने पर ओलंपिक दिवस की स्थापना की गई। वाराणसी के खिलाडिय़ों ने ओलंपिक खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन का शहर का नाम रोशन किया। काशी के 11 खिलाडिय़ों ने ओलंपिक तक का सफर तय किया है। हॉकी के चार खिलाडिय़ों में मो। शाहिद, विवेक सिंह, राहुल सिंह और ललित उपाध्याय ने ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। इसी तरह वाराणसी से सैकड़ों खिलाड़ी ओलंपियन बनने के लिए दिन-रात प्रैक्टिस कर रहे हैं। उनकी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 350 करोड़ की लागत से सिगरा स्टेडियम का निर्माण कराया जा रहा है, जिससे प्रैक्टिस कर रहे खिलाडिय़ों को बहुत उम्मीदें हैं। आइए जानते हैं कि खिलाडिय़ों का स्टेडियम को लेकर क्या कहना है और कौन-कौन से खिलाड़ी वाराणसी से ओलंपियन बने.

स्टेडियम हो रहा तैयार

350 करोड़ से डेवलप हो रहे सिगरा स्टेडियम में बैडमिंटन के 10 कोर्ट, स्क्वाश के 4 कोर्ट, 4 बिलियड्र्स की टेबल रूम, 2 इंडोर बास्केटबॉल कोर्ट, 20 टेबल टेनिस, कवर्ड ओलंपिक साइज स्विमिंग पुल, कवर्ड वार्म अप स्विमिंग पुल, जिम्नास्टिक, जूडो, कराटे, मार्शल आट्र्स, योगा, रेसलिंग, ताइक्वांडो, बॉक्सिंग, वेटलिफ़्िटंग, हाईटेक जिम्नेजियम होगा, जोकि दो मंजिलों में बना है। साथ ही इसमें स्पोट्र्स लाइब्रेरी, कॉम्बैट स्पोट्र्स हॉल, स्पोट्र्स सेमिनार हॉल, कई कैफे, फील्ड व्यू लाउंज भी शामिल हैं। यहां पर खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय सुविधा से लैस अत्याधुनिक स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में कोचिंग भी दी जा सकेगी। आकर्षक क्रिकेट गाउंड भी तैयार किया जा रहा है।

प्लेयर्स को उम्मीदें

झांसी से बनारस के बड़ालालपुर स्टेडियम में हॉकी की प्रैक्टिस कर रहे अंशू राजक ने बताया, ओलंपियन बनना उनका सपना है, जिसके लिए वह मेहनत कर रहे हैं। सिगरा स्टेडियम में तैयार हो रहे स्टेडियम में खिलाडिय़ों के लिए ढेरों सुविधाएं उपलब्ध होंगी। जिसमें वह और बेहतर ढ़ंग से अपनी प्रैक्टिस को पूरा कर पाएंगे।

बड़ालालपुर स्टेडियम में अपनी एथलीट की प्रैक्टिस कर रहे गोरखपुर के जलील अली ने कहा, अभी इस स्टेडियम में हमें बहुत अधिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, लेकिन हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में सिगरा स्टेडियम के रूप में हमें बेहतर जगह प्रैक्टिस करने के लिए मिलेगी।

ये खिलाड़ी बने ओलंपियन

- 1948 के लंदन ओलंपिक में बनारस के अनंत राम भार्गव ने देश का प्रतिनिधित्व किया। आजाद भारत के नागरिक के रूप में उन्होंने कुश्ती के वेल्टरवेट भाग वर्ग में अपना दमखम दिखाया। मूलरूप से पंजाब के संगरूर के रहने वाले सरदार गुलजारा सिंह बनारस के चितईपुर स्थित इंदिरा नगर कालोनी में रहते थे। 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में भाग लिया। दो दशक तक भारत के शीर्ष मैराथन धावकों में शामिल गुलजारा सिंह ने 1935 में हुए स्कूल गेम्स के जरिए खेल दुनिया में कदम रखा था। 1946 में लाहौर में हुए स्कूल गेम्स में उन्होंने भारत के लिए पदक जीता था.

-बड़ागांव के कोईरीपुर खुर्द गांव के रहने वाले चिक्कन पहलवान को 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में शामिल होने का मौका मिला। एशियन गेम्स और राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन करते हुए ओलंपिक में भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराया.

-बनारस के दारानगर के रहने वाले संजीव सिंह की प्रारंभिक शिक्षा सेंट जांस स्कूल से हुई। इसके बाद इंजीनियरिंग करने के लिए रांची चले गए। शौकिया तीरंदाजी शुरू की लेकिन यही उनकी पहचान बन गई। 1988 के सियोल ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। हाकी में ड्रिबलिंग के उस्ताद माने जाने वाले मो। शाहिद एक दशक से अधिक समय तक भारतीय हाकी टीम का अहम हिस्सा रहे हैं। 1980 मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम में भी थे.

-1984 लास एंजिल्स व 1988 सियोल ओलंपिक में भी मोहम्मद शाहिद ने देश का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें अर्जुन पुरस्कार व पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1986 में एशियाई आल स्टार टीम में उन्हें स्थान दिया गया.बनारस में हॉकी को जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाने वाले शिवपुर के हटिया निवासी गौरीशंकर सिंह से बेटे विवेक सिंह को 1988 सियोल ओलंपिक में भारतीय हाकी टीम के साथ देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने जूनियर एशिया कप 1989 में भारतीय हाकी टीम की कप्तानी की थी। विवेक के ही छोटे भाई हाकी खिलाड़ी राहुल सिंह ने 1996 में अटलांटा ओलंपिक में भाग लिया।

-चोलापुरा के नीमा गांव निवासी पहलवान नरसिंह यादव ने लंदन ओलंपिक 2012 में कुश्ती में दांव पेंच लगाए। इन्हीं के साथ चोलापुर के ही बभियांव के राम सिंह ने लंदन ओलंपिक के मैराथन इवेंट में उतरे। चार दशक बाद टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने वाली में हाकी टीम में बनारस के ललित उपाध्याय भी थे। शिवपुर के भगतपुर गांव के रहे वाले ललित ने महत्वपूर्ण सदस्य के तौर पर भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई.

वाराणसी में प्रैक्टिस कर रहे खिलाडिय़ों के लिए तैयार हो रहा सिगरा स्टेडियम बहुत हेल्पफुल साबित होगा। इसमें सभी सुविधाएं खिलाडिय़ों को मिलेंगी।

आरपी सिंह, आरएसओ

ये है थीम

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस की हर साल एक विशेष थीम होती है, जो ओलंपिक मूल्यों को प्रोत्साहित करती है। ये थीम्स लोगों को शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने, स्वस्थ रहने और ओलंपिक खेलों के मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं.

Posted By: Inextlive