कृष्णानंद के प्रभाव से डगमगाया था अफजाल-मुख्तार का साम्राज्य
वाराणसी (ब्यूरो)। पूर्वांचल में जब अंसारी बंधुओं की तूती बोलती थी और कोई भी उनके सामने सिर नहीं उठा सकता था, उस वक्त हिंदू व हिंदुत्व की लड़ाई लडऩे वाले भाजपा के विधायक कृष्णानंद राय ने बाहुबलियों के न सिर्फ सियासी साम्राज्य को ढहा दिया था, बल्कि जिले से लेकर लखनऊ तक आमने-सामने का मुकाबला भी किया था। जयश्रीराम का नारा बुलंद करने वाले भाजपा विधायक को वर्चस्व की लड़ाई में अपनी जान गंवानी पड़ी।
पहली बार बना विधायकअस्सी के दशक से अंसारी परिवार का सियासी प्रभुत्व बढऩा तब शुरू हुआ, जब अफजाल अंसारी 1985 में पहली बार विधायक चुने गए। धीरे-धीरे बड़े भाई की सियासत ने छोटे भाई मुख्तार अंसारी को जरायम की दुनिया में बड़ा बना दिया। अंसारी बंधुओं के बढ़ते वर्चस्व के सामने भाजपा ने 1996 में कृष्णानंद राय को पहली बार मैदान में उतारा। वह अंसारी बंधुओं से पटखनी खा गए। इसके बाद वर्ष 1998-99 में दूसरी बार भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। तीसरी बार 2002 के चुनाव में कृष्णानंद राय ने आठ हजार मतों से हराकर अफजाल अंसारी की पांच बार की विधायकी पर ब्रेक लगा दिया.
खतरे में सियासी जमीनअफजाल अंसारी को हराने से एक तरफ जहां अंसारी परिवार को सियासी गढ़ दरकने का खतरा सताने लगा, वहीं दूसरी तरफ माफिया मुख्तार अंसारी के पूर्वांचल में आपराधिक वर्चस्व के खात्मे की चिंता खाने लगी थी। विधायक बनने के बाद कृष्णानंद राय का मुहम्मदाबाद व लखनऊ में मुख्तार से आमना-सामना भी हुआ था। कई बार टकराव की नौबत में भाजपा विधायक का पलड़ा भारी पड़ा था। अंसारी बंधु के मजबूत वोट बैंक यादव व अनुसूचित जाति में उनकी पैठ से सियासी जमीन खतरे में पड़ गई थी.
रची गई हत्या की साजिश कृष्णानंद से हार के बाद अफजाल अंसारी ने विधायक का चुनाव नहीं लड़ा। इसके बाद कृष्णानंद राय की हत्या की साजिश रची गई थी। सटिक मुखबिरी पर बसनियां चट्टी के पास उन्हें व उनके छह साथियों को गोलियों से भून दिया गया। वर्चस्व की इस लड़ाई में निडर कृष्णानंद राय की लोकप्रिय राजनीति एक छोटे से सफर में ही रक्तरंजित हो गई. बीएचयू से पढ़कर आएकृष्णानंद राय ने कक्षा पांच तक की पढ़ाई अपने गांव के ही प्राथमिक स्कूल में की थी। आगे की पढ़ाई उन्होंने बनारस के सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल से किया। यहां से 12वीं पास करने के बाद उन्होंने बीएससी पाठ्यक्रम में बीएचयू में दाखिला लिए। यहां वह पहले से छात्र राजनीति में सक्रिय मनोज सिन्हा के संपर्क में आए। बीएचयू से पढ़ाई खत्म करने के बाद कृष्णानंद राय बिल्डिंग, कंस्ट्रक्शन और कोयला आदि के व्यवसाय में उतर गए। वह पीडब्ल्यूडी की ठेकेदारी से लेकर कोल माइंस के ठेके तक में शामिल होने लगे। 1996 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी ने मुहम्मदाबाद सीट से पहली बार उम्मीदवार बनाया, जिसके बाद वह सक्रिय राजनीति में आ गए थे