Varanasi news: आंखों में रंगीन सपने, फिर क्यों चुन रहे खुदकुशी का अंधेरा
वाराणसी (ब्यूरो)। काशी में एक साल में 8 स्टूडेंट्स के सुसाइड ने पैरेंट्स को भी झकझोर दिया है। हालांकि, इन सुसाइड के पीछे पढ़ाई का तनाव ही नहीं हैं और भी कई कारण हैं, लेकिन फिर भी किसी बच्चे की जान जाना बेहद चिंताजनक है। यहां दूर-दूर से पढऩे के लिए आने वाले बच्चे डिप्रेशन के चलते सुसाइड कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर रहे हैं। ताजा मामला आईआईटी-बीएचयू का है। बुधवार को संस्थान में बी। आर्क के छात्र उत्कर्ष राज ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया। छात्र के परिजन और फ्रेंड्स ने तो कुछ बताने से इंकार कर दिया, लेकिन परिस्थिति बता रही थी कि वो किसी बड़े सदमें में था। हालांकि आईआईटी-बीएचयू में छात्रों के सुसाइड का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी यहां के कई छात्रों ने आत्महत्या कर अपनी जान गंवाई है। पिछले साल जून में भी यहां के एक रिसर्च स्कॉलर ने तो अगस्त में फार्मास्यूटिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्र ने डिप्रेशन में आकर सुसाइड किया था.
प्रेम प्रसंग व पारिवारिक कलह
सिर्फ छात्र-छात्राएं ही नहीं बनारस के अन्य यंगस्टर्स में सुसाइड करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। साइकोलॉजिस्ट डॉ। आरपी कुशवाहा की मानें तो युवाओं में खासकर पढऩे वाले बच्चों में आत्महत्या की वजह सिर्फ पढ़ाई या ज्यादा माक्र्स लाने का प्रेशर नहीं है। इसकी कई सारी वजह है, जिसे समझने की बेहद जरूरत है। बनारस में सिर्फ बीएचयू, आईआईटी-बीएचयू या अन्य कॉलेज के स्टूडेंट्स ही नहीं अन्य जगहों के युवा भी तेजी से आत्महत्या कर रहे हैं। फरवरी 2023 से एक फरवरी 2024 तक 8 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं जिला प्रशासन की ओर से जारी आंकड़े बता रहे हैं कि साल 2022 में बनारस में कुल 159 लोगों ने सुसाइड किया है। इसी तरह से 2023 में भी करीब 150 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की। इसमें अधिकतर मामले प्रेम प्रसंग, डिप्रेशन और पारिवारिक कलह से जुड़े हैं.
ओवर एक्सपेक्टेशन भी वजह
साइकोलॉजिस्ट डॉ। अपर्णा सिंह का कहना है कि बच्चे अच्छा कर रहे हंै। आईआईटी जैसे बड़े संस्थान में आकर पढ़ रहे हैं, सुनहरे भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं, फिर ऐसा क्या जो अचानक से वे सुसाइड कर ले रहे हैं। प्रॉपर केस स्टडी की जाए तो दिखेगा कि सुसाइड इज नॉट अ मैटर ऑफ फेल्योर ओनली। लाइफ में वो असफल हो रहा है, इसलिए सुसाइड कर रहा है ऐसा नहीं है। सक्सेसफुल भी सुसाइड कर रहे हैं और जो प्रॉसेस में हैं वो भी कर रहा है। इसका मतलब ये है कि वजह प्रेशर है या एक्सेस प्रेशर या फिर ओवर एक्पेक्टेशन और मैटरलिस्टक लाइफ है। आप जब मैटरलिस्टिक चीजों को इम्पॉर्टेंस दे रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि हमारी प्रिफरेंस में वो मैटरलिस्टिक चीजों को गेन करने का होगा, जो गेन कर पाएंगे उनमे सेल्फ ऑफ अचीवमेंट आएगा और जो नहीं कर पाएंगे, उनमें निराशा के भाव आएंगे। सुसाइड के पीछे सबसे बड़ी वजह ओवर एक्सपेक्टेशन है.
डिप्रेशन से बाहर निकलें
डॉ। अपर्णा बताती हैं कि हर एक सेकेंड मे तीन लोग सुसाइड करते हैं। ऐसा नहीं है कि इसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन तब रोका जा सकता है, जब आंख, कान खुले हुए हों। जब कोई दुनिया छोड़ देता है तब लोग कहते हैं अरे इसने अपनी प्रॉब्लम शेयर नहीं किया मुझसे, मैं इसकी जरूर मदद करता। मगर जब वह आपसे अपनी प्रॉब्लम शेयर करना चाहता था तब तो उसकी सुनी नहीं और जिसने सुनी भी तो उसने उसे उससे बाहर निकालने के बजाए उसे नजरअंदाज कर दिया.
काउंसलिंग भी कारगर नहीं
आईआईटी बीएचयू में पढऩे वाले स्टूडेंट्स की हर प्रॉब्लम को साल्व करने के लिए यहा सखा नाम की एक संस्था भी कार्य कर रही है। सोर्स बताते हैं कि यहां सुसाइड करने वाले छात्र की काउंसलिंग भी की जा रही थी। इसका मतलब कि काउंसलिंग का कोई असर नहीं पड़ा। इस पर डॉ। अपर्णा सिंह का कहना है कि काउंसलिग काम करता है, यह बहुत इफेक्टिव है, बशर्ते ये देखना पड़ता है कि काउंसलिंग करने वाला कैसा है। हो सकता है कि जो काउंसलिंग कर रहा है वो उसके मर्ज को समझ ही न पाया हो। पता चला कि जो काउंसलिंग कर रहा है वो खुद डिप्रेशन में हो तो उससे उस बच्चे या किसी को भी क्या रिलीफ मिलेगी। जब तक हम सामने वाले की रूट कॉज नहीं पकड़ पाएंगे तब तक ये काम नहीं करेगा। बिहैवियर थैरेपी, साइकोडायलिमिक अप्रोच है। जैसे अभी आप जिस डिप्रेशन में हो इसका रूट कॉज आपका चाइल्डहुड है। बचपन जो ट्रामा आपने फेस की है और बड़े होने पर भी वो डिसाल्व नहीं हुई है तो कहीं न कहीं वो आपके दिमाग में बना रहता है। फिर जब वैसा ही दोबारा कुछ होता है तो उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इसमें साइकोडालिमिक बड़ा रोल प्ले करता है.
सेफ और सेक्योर स्पेस
सोसायटी में स्पेस बनाना जरूरी हो गया है, जो कि सेफ हो, सेक्योर हो और ट्रस्टेबल हो। आज जो भी सुसाइड कर रहे है, इनको लेकर पैरेंट्स यही समझते हंै कि उनके समय तो कोई ऐसा नहीं करता था, तो ऐसे लोगों ने शुरू से ही उस चीजों को एक्सेप्ट कर लिया था। मगर अब पैरेंट्स बच्चों को ओवर पैंपर्ड कर रखे हुए थे और घर का सेक्योर्ड वातावरण छोड़कर जब वो बाहर निकला तो हर कोई उसे डाउन दिखाने की कोशिश कर रहा है। ओवर प्रोटेक्टिव इनवॉरमेंट बाहर में नहंी है। इस रियलिटी को एक्सेप्ट करना सभी के लिए पॉसिबल नहीं है। बनारस में सुसाइड करने वाले इन बच्चों के पास कोई रास्ता नहीं बचा होगा तभी इन लोगों ने ऐसा किया.
डॉ। अपर्णा सिंह, साइकोलॉजिस्ट
निगेटिविटी से रहें दूर
जब व्यक्ति की मनोवांछित इच्छापूर्ति नहीं होती है तो वह निराशा एवं हताशा अनुभव करने लगता है। सामान्यत: आजकल के युवाओं में देखा जाए तो उदासी अधिक देखने को मिल रही है जिसकी वजह करियर, एजुकेशन रिलेशनशिप्स आदि हो सकते हैं। एडवाइज है कि निगेटिव लोगों से दूर रहें, मगर अगर कोई डिप्रेशन में है तो वो निगेटिव बातें ही शेयर करेगा। इस सोसायटी में ऐसे लोग भी हंै जो डिप्रेश्ड व्यक्ति की बात सुनने के बाद उसकी बातें औरों के बीच फैला दिया। इससे उस व्यक्ति को हेल्प नहीं मिली। अलबत्ता उसे और ज्यादा दर्द मिल गया। ऐसे में कोई भी डिप्रेशन में चला जाएगा। इस स्थिति में बच्चे होपलेस और हेल्पलेस महसूस करने लगते हैं। फिर यही चीजें सुसाइड की वजह बन जाती है.
-पल्लवी मिश्रा, प्रबल इंडिया फाउंडेशन की संस्थापक व साइकोलॉजिस्ट
प्रेशर क्यों नहीं ले पा रहे
सुसाइड में मल्टी फैक्टर इन्वॉल्व है। ये आपके दिमाग में नहीं होता कि बच्चा प्रेशर नहीं ले पाया, इसलिए सुसाइड कर लिया। इस कदम को उठाने से पहले उसने क्या-क्या प्रॉब्लम फेस किया है, इस पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता है। लोगों को लगता है कि हमारे समय तो इससे ज्यादा प्रेशर हुआ करता था तो हम झेल लेते थे, मगर आज के बच्चे नहीं झेल पा रहे हैं। बच्चे प्रेशर क्यों नहीं ले पा रहे हैं। जाहिर सी बात है कि ऐसा इनवायरनमेंट उनके पैरेंट्स और सोसायटी ने क्रिएट किया है कि वो प्रेशर नहीं ले पा रहा है और अगर वो ले भी रहा है तो उस पर इतना ज्यादा प्रेशर डाल दिया जा रहा कि वो ऐसे स्टेज में पहुंच जा रहा है.
डॉ। आरपी कुशवाहा, मनोरोग चिकित्सक
8 फरवरी, 2023
बीएचयू के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में एमएससी फाइनल ईयर के छात्र आशीष कुमार नामदेव ने हॉस्टल में पेस्टिसाइड पीकर सुसाइड कर लिया। वह डालमिया हॉस्टल के रुम नंबर-91 में रहता था। लगभग 6 साल पहले कोटा में तैयारी के दौरान भी उसने सुसाइड का प्रयास किया था। उसने ऑनलाइन पेस्टिसाइड मंगाकर पिया लिया था। बीएचयू हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.
10 जून, 2023
डाटा एंट्री आपरेटर के तौर पर जॉब करने वाले सत्यम ने महमूरगंज के बैंक ऑफ इंडिया के पास अपने आफिस में ही सल्फास खा लिया था। तबियत बिगडऩे पर ऑफिस के लोग उसे गैलेक्सी अस्पताल गए। वहां से डॉक्टरों ने जवाब दिया, तो फिर एसएस हॉस्पिटल बीएचयू के इमरजेंसी में भर्ती कराया गया, जहां पर डॉक्टरों ने सत्यम को मृत घोषित कर दिया।
25 जून, 2023
आईआईटी बीएचयू के रिसर्च स्कॉलर कुलदीप सिंह ने सुसाइड कर लिया था। एसएन बोस हॉस्टल के रूम का दरवाजा तोड़कर शव बाहर निकाला गया। कमरे से सुसाइड नोट नहीं मिला। नंवबर 2022 में कुलदीप की शादी हुई थी। वह मुजफ्फरनगर का रहने वाला था। आईआईटी-बीएचयू से मैथमैटिक्स में रिसर्च कर रहा था। जुलाई 2023 में उसकी फेलोशिप बंद होने वाली थी, जिसको लेकर वह डिप्रेशन में था।
3 जुलाई, 2023
बीएचयू के बिड़ला सी हॉस्टल के कमरा नंबर-321 में रहने वाले हिंदी साहित्य के छात्र जितेंद्र कुमार ठाकुर (23) ने फांसी के फंदे पर लटककर जान दे दी थी। साथी छात्रों ने खिड़की से झांककर आत्महत्या का पता चला। छात्रों ने ही प्रॉक्टोरियल बोर्ड और पुलिस को जानकारी दी.
14 अगस्त, 2023
आईआईटी-बीएचयू में फार्मास्यूटिकल इंजीनियरिंग विभाग का छात्र सोनू कुमार ने फांसी लगाकर जान दे दी। उसका शव चितईपुर थाना क्षेत्र के विवेक नगर कालोनी में स्थित कमरे में मिला। बगल में रहने वाले छात्रों ने देर तक उसे कमरे से बाहर निकलते नहीं देखा तो संदेह हुआ।
2 सितंबर, 2023
बीएचयू के प्रॉक्टोरियल बोर्ड ऑफिस के पीछे पुराने पेट्रोल पंप के सामने एक अज्ञात महिला का शव पेड़ से लटका दिखाई दिया। इसको लेकर आत्महत्या की आशंका जताई गई। लंका थाने की पुलिस ने महिला के शव को पेड़ से उतारा और अपने कब्जे में लिया।
21 अक्टूबर, 2023
बीएचयू के आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट की एक रिसर्च स्कॉलर ने टीचर्स अपार्टमेंट अपनी जान लेने की कोशिश की। चाकू से गले पर ही काट दिया था। काफी देर बाद उसे ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया। हालांकि, उसकी जान बच गई.
27 दिसंबर, 2023
बीएचसी फस्र्ट ईयर की छात्रा वैशाली सिंह (19) ने लंका स्थित रोहित नगर स्थित मंगलम अपार्टमेंट के सेकेंड फ्लोर पर फांसी लगा ली। वह अपने मौसी के घर पर रहती थी। उसके कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। यहां भी आशंका पारिवारिक कलह या डिप्रेशन की आशंका जताई गई।
13 हजार से भी अधिक मामले
एनसीआरबी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देशभर में साल 2021 में स्टूडेंट्स के 13 हजार से भी अधिक सुसाइड के मामले दर्ज हुए। इनमें महाराष्ट्र में सर्वाधिक 1834, एमपी में 1308, तमिलनाडु में 1246, कर्नाटक में 855 और उड़ीसा में 834 केस दर्ज हुए। जबकि, राजस्थान में यह आंकड़ा 633 है जो दूसरे राज्यों की तुलना में कम है.