कागज के भाव बढऩे से 65 की नोटबुक 105 रुपये में
वाराणसी (ब्यूरो)। भोजन, यात्रा, इलाज, मकान निर्माण, सुविधाएं और शिक्षा समेत सभी जीवन से जुड़े आवश्यकताओं पर महंगाई की मार पड़ रही है। दिनों-दिन आम पब्लिक की पहुंच से दूर हो रही स्तरीय शिक्षा पर कागज की कीमत भारी पड़ रही है। स्टूडेंट्स की बुक और नोटबुक कागज के दाम बढऩे से डेढ़ से दोगुने रेट पर बिक रहे हैं। मसलन, बढ़े हुए कागज की कीमत का बोझ सीधे तौर पर पैरेंट्स की जेब पर पड़ रहा है। कागज व्यापारी के अनुसार छह महीने पूर्व कागज का मूल्य 50 से 55 रुपये प्रति किलो था। वर्तमान में यह बढ़कर 100 से 110 रुपये प्रति किलो हो गया है। इतना ही नहीं डिमांड बढऩे पर कीमत भी उड़ान भरने लगाती है। बावजूद इसके कागज की आसान उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। इसलिए कागज मिलों पर प्रतिबंध लगाकर कागज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। ताकि, पैरेंट्स, नागरिक और स्टूडेंट्स समेत पढ़ाई, लेखन, अंकन, मुद्रण आदि पर अधिक मार न पड़े।
कीमतों में बड़ा अंतरशहर के कई बुक स्टालों पर ब्रांडेड नोटबुक की कीमतों में एक साल के अंदर बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। कागज की महंगाई ने गत शैक्षिक वर्ष में 65- 70 रुपए में मिलने वाली एक नोटबुक इनदिनों 105-110 रुपए में एक मिल रही है। हालांकि, इनका पेपर फाइन और फ्लैप स्मूथ और हार्ड होता है। ब्रांडेड के अलावा अन्य लोकल ब्रांड्स की कापियां भी महंगी हो गई हैं। 200-220 रुपए किलो मिलने वाले रफ-फेयर 400 रुपए प्रतिकिलो से पार हो चले हैं.
आसान नहीं रह गया कागज का धंधा कर्णघंटा के कागज व्यापारी मुनीर बताते हैं कि एक दौर था जब बनारस में बनी कॉपियां और किताबें कई राज्यों में जाती थीं। कुछ ही महीने पहले कागज की कीमतें थोड़ी डाउन थी। विगत पांच वर्षों में देखे तो मालूम पड़ता है कि कागज कीमतों में आग लग गई है। वर्तमान समय में 110 रुपए प्रतिकिलो की दर से कागज खरीदकर कॉपी बनाकर आपूर्ति करने में बचत बहुत कम हो रहा है। मजदूरी और ट्रांसपोटेशन के खर्च को छोड़ दें तो शॉप का किराया, बिजली बिल, अन्य टैक्सेस से धंधा पीट रहा है. 100 करोड़ के ऑर्डर होल्डबनारस कागज इंडस्ट्री का महीने का कारोबार लगभग तीन से पांच करोड़ रुपए से अधिक का है। चालीस फीसदी महंगे हुए कागज की वजह से शहर में लगभग 140 से अधिक प्रिंटिग कारखाने बंद पड़े हैं। इससे पूर्वांचल समेत कई राज्यों मिलने वाला आर्डर होल्ड हो गया है। हर हफ्ते कागज के दाम में इजाफा होता रहता है। इससे प्रिंटिंग इंडस्ट्री में अनिश्चितता का माहौल कायम हो गया है.
आंकड़ों पर एक नजर बनारस कागज इंडस्ट्री - 500 करोड़ (अनुमानित ) कागज की महंगाई - 38 फीसदी (6 महीने में) रोजगार - प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष- 40 हजार से अधिक महंगाई की वजह से थमे प्रिंटिंग प्रेस- 140 ऑर्डर होल्ड - 100 करोड़ रुपए का नोट्सबुक के दामों में इजाफा- 25 फीसदी कोरोना से पहले 50 रुपये की नोटबुक पर क्लासनोट्स बनाने पर तकरीबन वह दो माह चलता था। अब भी पचास रुपए की वही कॉपी मिलती हैं, जो एक महीने में ही भर जाता है। पढ़ाई-लिखाई के सामान और संसाधन कीमतों को कंट्रोल करना चाहिए. धर्मेंद्र मौर्य, स्टूडेंट डिमांड के मुताबिक आपूर्ति नहीं की जा रही है। पेपर की गुणवत्ता में भी असर देखने को मिल रहा है। कागज के दाम बढऩे से शादी के कार्ड, पोस्टर व अन्य की कीमत छपाई के बाद और महंगी हो जा रही है। लिहाजा, प्रिंटिंग इंडस्ट्री भी चुनौती का सामना कर रही है. बबलू सिंह, प्रिंटिंग प्रेस संचालक