एक साल में कागज के दाम में 30 से 35 परसेंट का उछाल रॉ मैटेरियल्स भी महंगा किताब-कापी उद्योग संकट में स्कूल खुलते ही अभिभावकों पर भार पडऩा तय

वाराणसी (ब्यूरो)कोरे कागज में भी मुनाफाखोरी ने सबकी मुसीबत बढ़ा दी है। एक साल पहले जो कागज 70 रुपए किलो बिक रहा था वह बढ़कर 110 रुपए किलो हो गया है। यानी एक साल में 30 से 35 परसेंट का उछाल है। इस कारण कॉपियों के दाम में 20 से 25 परसेंट का इजाफा हुआ है। यानि जो कॉपी बच्चे पहले दस रुपए में लेते थे अब वह 15 रुपए में बिक रहा है। इसका सीधा असर गार्जियंस की पॉकेट पर पड़ रहा है। दाम बढऩे की वजह कागज व्यवसायी मिलर्स द्वारा एक्सपोर्ट करना बताया जा रहा है। फिलहाल व्यवसायियों का कहना है कि इसी तरह कागज को एक्सपोर्ट किया गया तो जुलाई में कागज के और दाम बढ़ सकते हैं.

हर महीने सात हजार टन की खपत

बनारस में हर महीने करीब 7 हजार टन कागज की खपत है। ऐसे में दाम बढऩे से कागज के कारोबार पर काफी असर पड़ा है। डिमांड घटकर करीब 6 हजार टन हो गई है, जबकि अभी स्कूल नहीं खुला है। स्कूल खुलते ही फिर से कागज की मांग बढ़ जाएगी। बच्चों को कॉपी, चार्ट पेपर समेत, ड्राइंग कापी की जरूरत पड़ती है।

12 परसेंट जीएसटी का भार

कागज के दाम तो बढ़े ही सरकार ने इस पर 12 परसेंट जीएसटी का भार भी लाद दिया। इसके चलते दाम को और हवा दे दिया कागज मिलों ने। मुनाफा कमाने के चक्कर में कागज मिल संचालक कागज का एक्सपोर्ट बाहर करने लगे हैं। इसका असर पूर्वांचल के व्यवसायियों पर पड़ रहा है। इसका विरोध पिछले दिनों व्यवसायियों ने किया था। इस पर कुछ अंकुश लगा था लेकिन इस कुछ महीने से फिर कागज का एक्सपोर्ट शुरू कर दिया है.

महंगे कागज ने कारोबार किया ठप

वाराणसी प्रकाशक संघ के महामंत्री रविशंकर सिंह ने बताया कि कागज के दाम तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं, जबकि प्रतिस्पर्धा के चलते किताब के दाम नहीं बढ़ा सकते हैं। कोरोना काल के कारण दो साल से व्यापार पूरी तरह ठप था। इस वर्ष स्कूल खुलने के साथ थोड़ा कारोबार ने गति पकड़ी तो महंगे कागज के कारण किताब-कॉपी उद्योगों की चाल कमजोर पड़ गई है। प्रकाशक व कॉपी निर्माता भी आपूर्ति के सापेक्ष कम मात्रा में किताब-कॉपी तैयार कर रहे हैं।

एक्सपोर्ट पर अंकुश लगाए सरकार

कागज मिल वाले देश के बाहर माल निर्यात करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। भारी मुनाफाखोरी कर रहे हैं। यदि यही हाल रहा तो कागज के दाम में तेजी कहां रुकेगी कहना मुश्किल है। साथ ही कॉपी-किताब के कारखाने व प्रिंटिंग प्रेस बन्द हो जाएंगे। केन्द्र सरकार को इस ओर ध्यान देते हुए गेहूं की तरह कागज के निर्यात पर भी रोक लगाना चाहिए या भारत में कागज की पूर्ति के बाद ही निर्यात की मंजूरी देनी चाहिए.

कागज मिलों की मुनाफाखोरी पर सरकार को अंकुश लगाना चाहिए। इससे आमजन को राहत मिल सकती है। दाम बढऩे की वजह सरकार की नीतियां भी दोषी हैैं।

राकेश जैन, अध्यक्ष, प्रकाशक संघ

कागज के दाम बढऩे से अभिभावकों संग पुस्तक प्रकाशक, कॉपी निर्माता परेशान हैं। कॉपी में सीधे 15 से 20 परसेंट का उछाल आया है। प्रतिस्पर्धा के चलते किताबों के दाम कम बढ़ाए गए हैं.

रविशंकर सिंह, महामंत्री, प्रकाशक संघ

दाम बढऩे की वजह से इस समय कागज की खपत कम हो गई है। जुलाई से जब स्कूल खुलेगा तो दाम बढऩे का सबसे अधिक असर अभिभावकों पर पड़ेगा.

राकेश ढोढी, महामंत्री, कागज व्यवसायी संघ

Posted By: Inextlive