टेक्सटाइल्स सेक्टर में रिसेशन से कारोबार घटकर हुआ आधा 1500 में से सिर्फ दो सौ मशीनें ही चल रहीं मार्केट में आर्डर में न मिलने से फैक्ट्रियों में डंप पड़ा 20 लाख मीटर कपड़ा एक अप्रैल से बिजली का 30 गुना भार बढऩे से धड़ाधड़ बंद हो गई मशीनें

वाराणसी (ब्यूरो)काशी में टेक्सटाइल्स की 1300 मशीनें बंद हो गई हैैं। वजह टेक्सटाइल्स सेक्टर में रिसेशन बताया जा रहा है। साथ ही बिजली की दरों में 30 गुना इजाफा ने भी इस सेक्टर में ताला जड़ दिया। यही हाल रहा तो जो 200 मशीनें चल रही हैं, वह भी जल्द ही ठप हो जाएंगी। दरअसल, तीस गुना बिजली का भार टेक्सटाइल्स सेक्टर ज्यादा दिन तक नहीं सह पाएगा। मशीनें बंद होने से फैक्ट्रियों में 20 लाख मीटर कपड़ा डंप पड़ा हुआ है। इसके चलते अरबों रुपए का नुकसान कारोबारियों को हुआ.

1500 में से 1300 मशीनें बंद

वाराणसी में कपड़ा बनाने वाली करीब 1500 मशीनें हंै। चार महीना पहले इन मशीनों पर प्लेन कपड़ा तैयार होता था। इनमें बॉटम सिग्मेंट के ज्यादातर कपड़े तैयार होते थे। जैसे पैजामा, सलवार, कुर्ता शामिल है। इसके अलावा प्लेन फैब्रिक, डॉबी, जकात, डुपियन और फैब्रिक कपड़े तैयार करते हैं। इससे करीब 500 उद्यमी इस कारोबार से जुड़ थे जो घटकर करीब 100 ही रह गए हैं। बाकी लोग किसी और सेक्टर में किस्मत आजमा रहे हैं.

दर्जनों इलाकों में चलती थीं मशीनें

कपड़े का कारोबार ज्यादातर इंडस्ट्रियल एरिया चांदपुर, लहरतारा के अलावा दुल्हीपुर, पीलीकोठी, बजरडीहा, सरैया समेत दर्जनों ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर कपड़े का कारोबार होता है। अप्रैल माह से बिजली की दरों में तीस गुना बढ़ोतरी होने के बाद धड़ाधड़ मशीनें बंद होने लगीं। बिजली की दर देना कारोबारियों के लिए सबसे महंगा पड़ रहा है। पहले एक मीटर कपड़ा तैयार करने में दो रुपए की लागत आती थी, जोकि अब बढ़कर चार रुपए हो गया है। दो रुपए प्रति मीटर का नुकसान कपड़ा कारोबारियों को रहा है। इसके चलते पहले प्रोडक्शन आधा हुआ, इसके बाद मशीनें बंद होना शुरू हो गईं.

60 परसेंट मंदी की वजह से बंद

कपड़ा कारोबारियों का कहना है कि कपड़ा मार्केट में जबरदस्त रिसेशन आया है। कोरोना काल के समय कपड़ा मार्केट बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके बाद जब कोरोना समाप्त हुआ तो थोड़ा बहुत मार्केट हुआ। इसके बाद भी मार्केट नहीं सुधरा। हालात यह थे कि कारोबारियों के यहां थान का कपड़ा डंप होने लगा। मार्केट में आर्डर न मिलने से डंप की खाई करोड़ों से बढ़कर अब अरबों में हो गई है। इसकी भरपाई होना मुश्किल लग रहा है.

4 करोड़ का प्रतिदिन का कारोबार

कपड़ा कारोबारियों की मानें तो पहले 4 करोड़ का प्रतिदिन का कारोबार होता था। महीने में करीब 1 अरब 20 करोड़ का कारोबार होता था, जो घटकर इस समय 40 करोड़ से भी कम हो गया है। मार्केट से आर्डर ही नहीं मिल रहा है। इसके चलते प्रोडक्शन भी ठप है।

बिजली ने दिया झटका

नए अध्यादेश से कपड़ा इंडस्ट्री पर असर पड़ा है। वस्त्र कारोबारियों का कहना है कि नए नियम में स्टेट गवर्नमेंट ने वस्त्र लूम संचालकों के लिए बिजली सब्सिडी 75 किलोवाट से घटाकर 5 किलोवाट कर देने से शहर की 80 परसेंट मशीनें बंद हो गई हैं। करीब 30 हजार वस्त्र पावरलूम बंदी की कगार पर पहुंच जाएंगे। इससे वस्त्र उद्योग पर 30 गुना अधिभार बढ़ गया है।

मार्केट में आर्डर न मिलने से करोड़ों रुपए का कपड़ा फैक्ट्रियों में डंप पड़ा है। कई मशीनें तो बंद हो गई हैं। जो मशीनें चल रही हैं, वह भी जल्द ही बंद हो जाएगी.

राकेश कांत राय, अध्यक्ष, वाराणसी वस्त्र बुनकर संघ

सरकार के इस फरमान से कपड़ा उद्योग चरमरा जाएगा। इस उद्योग से जुड़े उद्यमियों का कहना है कि 1 अप्रैल से नए अध्यादेश को लागू कर दिया है। इससे अब तक 13 सौ मशीनें बंद हो गई हैं.

अनिल मूंदडा, महासचिव

कपड़ा कारोबार बहुत ही भयंकर मंदी के दौर से गुजर रहा है। सरकार ने बुनकरों को मिलने वाली बिजली सब्सिडी डेढ़ सौ किलोवाट से घटाकर 5 किलोवाट कर दिया है। इसके चलते सैकड़ों मशीनें बंद हो गईं.

ज्वाला सिंह, महामंत्री

नोटबंदी से बुनकर लड़ा जीता, जीएसटी से लड़ा और जीत गया। कोरोना काल से भी लड़ाई लड़ी गई और जीत हासिल की लेकिन सरकार के नए आदेश से कपड़ा सेक्टर हार गया, अब सभी पलायन को मजबूर हैं.

शैलेष प्रताप सिंह, उपाध्यक्ष, हिन्दू बुनकर वाहिनी

Posted By: Inextlive