बड़े दुख की बात है कि आपके 9 करोड़ डूब गए
मेरठ (ब्यूरो)। शहर के सौंदर्यीकरण के लिए विभागों के पास न तो योजनाओं की कोई कमी है और न ही बजट की। कमी है तो बस किए गए काम के रख-रखाव करने वालों की। हर साल नई-नई योजनाओं में लाखों का बजट खर्च किया जाता है और उसका असर भी दिखाई देता है। मगर कुछ समय के बाद सब कुछ बर्बाद और बेअसर नजर आता है। साइकिल ट्रैक, स्मार्ट सिटी बस स्टॉप और डस्टबिन जैसी योजनाओं को ही ले लीजिए। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के सात दिवसीय अभियान के पहले दिन जब इन योजनाओं का रियल्टी चैक किया गया तो पता चला कि जोर-शोर से शुरू हुई इन योजनाओं के नाम पर केवल हमारे और आपके पैसे को बर्बाद किया गया।
साइकिल ट्रैक पर करोड़ों बर्बाद 2017 में सपा शासनकाल के दौरान क्लीन यूपी ग्रीन यूपी योजना के तहत बनाया गया था साइकिल ट्रैक।5.5 किमी लंबा साइकिल ट्रैक साइकिल सवारों की सुविधा को देखते हुए तैयार किया गया था।
6 करोड़ 14 लाख 37 हजार रुपए की लागत आई साइकिल ट्रैक बनाने में।साल 2017 में सपा शासनकाल के दौरान क्लीन यूपी ग्रीन यूपी योजना के तहत मेरठ में एमडीए द्वारा छह करोड़ 14 लाख 37 हजार रुपए की लागत से साइकिल ट्रैक बनाया गया। साढ़े पांच किमी लंबा साइकिल ट्रैक शहर की सड़कों की सुंदरता बढ़ाने और साइकिल चालकों की सुविधा के लिए तैयार किया गया था। मगर सात साल तक अनदेखी के चलते यह ट्रैक आज की डेट में जगह-जगह से टूटा पड़ा है। ट्रैक के एक लंबे हिस्से पर अतिक्रमण हो चुका है। साइकिल ट्रैक पर झाडियां उग आई हैैं। इस टै्रक की सुंदरता को बढ़ाने और रात के समय ट्रैक को जगमग करने के लिए लगाई गई महंगी एंटिक एलईडी स्ट्रीट लाइटें भी लापता हो चुकी है। इतना ही नहीं, इस योजना के तहत जनता के पैसे की बर्बादी कैसे की गई इसका पता तब चला, जांच में ये खुलासा हुआ कि यह साइकिल ट्रैक बना ही गलत था। इसके बाद इस ट्रैक पर बिजली तार का घोटाला हो गया। जिसमें 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच लंबी चली तो इस ट्रैक के नाम पर कई और घोटाले भी सामने आए। जिनकी जांच अभी तक चल रही है। इस बाबत कई इंजीनियर निलंबित किए भी जा चुके हैं।
करोड़ों के स्टॉपेज हो गए जर्जर2012 में जेएनएनयूआरएम योजना के तहत नगर निगम द्वारा लोगों की सुविधा के लिए सिटी बस स्टॉपेज बनाए गए थे।
शहर की सड़कों, सार्वजनिक स्थलों को कूड़ा-कचरा मुक्त बनाने के लिए नगर निगम हर दो से तीन साल में नई-नई डस्टबिन योजना लाता है। ऐसा नहीं है कि डस्टबिन लगाए नहीं जाते, लगाए जाते हैैं लेकिन कुछ समय ज्यादातर डस्टबिन गायब हो जाते हैैं। बचे-कुचे डस्टबिन कबाड़ हो जाते हैैं। लोगों के पैसे की यह ऐसी बर्बादी है, जो हर साल की जाती है। निगम ने पांच साल पहले 2018 में 60 लाख रुपए की लागत से शहर में हरे-नीले रंग के प्लास्टिक के 1500 डस्टबिन लगाए गए थे। जो कुछ समय बाद ही गायब हो गए या जला दिए गए। इसके बाद स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में सफलता के लिए निगम ने ड्यूल स्टील के 500 से अधिक डस्टबिन लगवाए थे। इसमें करीब 35 लाख रुपए से अधिक खर्च किए थे। लेकिन कुछ समय बाद इनमें से अधिकतर डस्टबिन गायब हो गए थे। स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 के दौरान नगर निगम ने 5200 रुपये प्रति डस्टबिन के हिसाब से शहर के प्रमुख बाजारों, चौराहों के आसपास 95 डस्टबिन लगाए थे। जो स्वच्छता सर्वेक्षण के बाद ही गुमशुदा हो गए थे। डस्टबिन के लिए नगर निगम लगातार प्रयास करता है लेकिन खुद जनता इस दिशा में जागरुक नहीं है इसलिए समय से पहले ही डस्टबिन या तो तोड़ दिए जाते हैं या गायब हो जाते हैं।हरपाल सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी सिटी बस स्टॉपेज के लिए नए स्थानों के चयन के साथ-साथ कुछ पुराने स्टॉपेज को अपडेट करने का प्रयास किया जा रहा है। सही जगह का चयन करने का प्रयास जारी है।
विपिन सक्सेना, एआरएम
17 बस स्टॉप के निर्माण में 10 लाख रुपये प्रति बस स्टॉप खर्च किया गया था।
1.70 करोड़ रुपये का बजट सिटी बस स्टॉपेज योजना के नाम पर किया गया था खर्च।शहर के सौंदर्यीकरण और लोगों की सुविधा के नाम पर साल 2012 में जेएनएनयूआरएम योजना के तहत नगर निगम द्वारा स्मार्ट सिटी बस स्टॉपेज बनाए गए थे। शहर में करीब 17 विभिन्न जगहों पर बनाए गए इन बस स्टॉपेज के निर्माण में करीब 1.70 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। यानी प्रति बस स्टॉप की लागत करीब 10 लाख रुपये आई थी। मगर इन बस स्टॉपेज को बनाने में भी पैसे की बर्बादी की गई। कारण, बिना एमसीटीएस से बात किए हुए ही गैर-जरूरी जगाहों पर इन बस स्टॉपेज का निर्माण कर दिया गया। जिस कारण आज तक एक भी बस स्टॉप पर सिटी बस नहीं रुकती। इस्तेमाल न होने के कारण आज यह अधिकतर बस स्टॉप जर्जर हालत में पहुंच गए हैैं। लोगों के बैठने के लिए बस स्टॉप पर लगाई गई सीटें भी समय के साथ-साथ गायब हो गई। सिटी बस स्टॉप पर लगे चमचमाते हुए डिजिटल बोर्ड भी न जाने कहां गए। आज इन बस स्टॉप के नाम पर बस जर्जर ढांचा ही नजर आता है। जिसे देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि कैसे इस योजना के नाम पर लोगों के पैसे को लापरवाही की भेंट चढ़ा दिया गया।
लाखों के डस्टबिन हो गए कबाड़ 2018 में स्वच्छता सर्वेक्षण के दौरान निगम ने 60 लाख खर्च कर प्लास्टिक के 1500 डस्टबिन लगाए थे। जो बाद गायब हो गए। 2019 में स्वच्छता सर्वेक्षण के दौरान 35 लाख खर्च कर ड्यूल स्टील के 500 डस्टबिन लगाए गए थे। इनमें से अधिकतर गायब हो गए। 2021 के स्वच्छता सर्वेक्षण में 4 लाख 94 हजार खर्च कर निगम ने 95 डस्टबिन लगाए थे। ये भी समय के साथ-साथ गायब हो गए।