मेडिकल के ब्लड बैैंक में बढ़ रही गंभीर बीमारियों से पीडि़त ब्लड डोनर्स की संख्या नहीं पहले जांच की व्यवस्था।

मेरठ (ब्यूरो)। रक्तदान महादान हैलोग इस बात को अच्छे से समझते हैैं और ब्लड डोनेट भी करते हैैं। मगर यहां ये बताना प्राथमिकता नहीं है बल्कि अपडेट यह है कि ब्लड डोनेट करने वाले लोगों के साथ ही बीमार ब्लड डोनर्स की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। बात यहीं खत्म नहीं होती, क्योंकि ब्लड डोनेट करने से पहले उसके जांच की कोई व्यवस्था ही नहीं है। इसलिए इंफैक्टेड ब्लड की जांच और उसके रख-रखाव पर हर साल ब्लड बैैंक का लाखों रुपये बर्बाद हो रहा है। आंकड़ों की बात करें तो 2021-22 में 533 यूनिट ब्लड वेस्ट हो गया क्योंकि ये ब्लड एचआईवी, एचसीवी, वीडीआरएल और एचबी आदि से इंफेक्टेड था। इसकी जांच और रख-रखाव पर 9 लाख 59 हजार 400 खर्च हुए।

12682 यूनिट ब्लड एकत्र
मेडिकल कॉलेज का ब्लड बैंक समाजसेवी संस्थाओं के सहयोग, मेडिकल में भर्ती मरीज के तीमारदारों और कैंप आदि लगाकर ब्लड एकत्र करता है। साल 2021-22 में मेडिकल कॉलेज में कैंप और डायरेक्ट डोनेशन के माध्यम से 12682 यूनिट ब्लड एकत्र किया गया। सालभर में एकत्र हुए ब्लड में से 533 यूनिट ब्लड एचआईवी, एचसीवी, वीडीआरएल और एचबी आदि बीमारियों के कारण वेस्ट हो गया। हालांकि 2021-21 में वेस्ट होने वाले ब्लड की संख्या 472 यूनिट तक सीमित थी। ऐसे में हर साल वेस्ट होने वाले ब्लड यूनिट्स में इजाफा स्वास्थ्य विभाग की चिंता का विषय बनता जा रहा है।

मेडिकल कालेज के आंकडों के अनुसार
12682 - यूनिट ब्लड साल 2021-22 मेें हुआ एकत्र (डायरेक्ट डोनेशन, मेडिकल में भर्ती मरीज के तीमारदारों और कैंप के जरिए)
12028 - यूनिट ब्लड यूनिट साल 2021-22 मेें हुआ सप्लाई
2132 - यूनिट ब्लड साल 2021-22 मेें कैंप के माध्यम से हुआ एकत्र
32 - कैंप आयोजित किए गए साल 2021-22 मेें
1800 - रुपये खर्च होते हैैं प्रति यूनिट ब्लड की जांच और रख-रखाव में

जांच में डोनेट ब्लड में ये बीमारियों आई सामने
14 यूनिट - एचआईवी
250 यूनिट - एचसीवी
264 यूनिट - एचबीएस
5 यूनिट - वीडीआरएल
533 यूनिट - वेस्ट हुआ ब्लड

ब्लड जांच की प्रक्रिया
ब्लड डोनेशन से पहले ब्लड बैंक की ओर से जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। डॉक्टर्स के मुताबिक एलाइजा जांच की रिपोर्ट आने में करीब चार घंटे का समय लगता है। उस अवधि तक डोनर इंतजार नहीं करता। ऐसी स्थिति में डोनेशन के दौरान उनसे मौखिक रूप से पूछा जाता है कि उन्हें कोई बीमारी तो नहीं है। उसी जानकारी के आधार पर ब्लड ले लिया जाता है। आंकड़ों के अनुसार, ब्लड डोनर्स में तीन प्रतिशत को अपनी बीमारियों के बारे में जानकारी नहीं होती। ब्लड लेने के बाद प्रत्येक यूनिट की हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी, मलेरिया, एचआइवी और सिफलिस की जांच की जाती है।

ब्लड डोनेशन पर रोक
डोनर द्वारा दिए गए ब्लड में बीमारी की पुष्टि होने पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से उसे फोन पर इस बाबत जानकारी दी जाती है। उन्हें बीमारी से बचाव, उपचार के बारे में बताया जाता है। यदि कोई एचआइवी से ग्रसित पाया जाता तो उसे मेडिकल कालेज बुलाकर बात की जाती है। इनमें से मलेरिया के मरीजों को छोड़कर बाकी बीमारियों से ग्रसित मरीजों के ब्लड डोनेशन पर हमेशा के लिए रोक लगा दी जाती है।

1800 रुपये का खर्च
प्रत्येक यूनिट ब्लड संग्रह व जांच पर करीब 1800 रुपये का खर्च आता है। बीमारियों से ग्रसित ब्लड मिलने पर पैसे का नुकसान तो होता ही है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति के रक्त का प्रमुख रूप से तीन प्रकार से उपयोग होता है। उसका प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और रक्त। यदि किसी संक्रमित या बीमार व्यक्ति का ब्लड भूलवश किसी दूसरों को चढ़ा दिया जाए तो एक यूनिट से तीन लोग गंभीर बीमारी का शिकार हो सकते हैैं।

ब्लड बेकार न जाए, इसलिए समय-समय पर कैंप लगाकर ब्लड डोनर्स को जागरूक किया जाता है। उन्हें समय-समय पर जांच कराने को कहा जाता है ताकि ब्लड डोनेशन से पहले बीमारियों के बारे में पता चल सके।
डॉ। विजय सोनी, प्रभारी, ब्लड बैंक, मेडिकल कालेज

Posted By: Inextlive