ब्लड सैैंपल लेते हैैं, टेस्ट करते हैैं और कहीं भी फेंक देते हैैं
मेरठ (ब्यूरो)। शहरवासियों को संक्रामक बीमारियों से निजात दिलाने का दावा करने वाले स्वास्थ्य विभाग की कोशिशों में सरकारी और निजी अस्पतालों समेत पैथालॉजी लैब्स, पलीता लगाने में जुटी हैैं। हालात यह है कि जिला अस्पताल समेत जिले में संचालित अधिकतर निजी अस्पतालों और पैथालॉजी लैब्स से निकलने वाला वेस्ट बिना ट्रीटमेंट किए ही नालियों में बहाया जा रहा है। जो पानी को दूषित बना रहा है। इसी दूषित वेस्ट के कारण शहर के विभिन्न इलाकों में टायफाइड, पीलिया, पेट का टीबी तथा अन्य वायरल इंफेक्शन आदि संक्रामक रोग लोगों को चपेट में ले रहे हैैं।
ईटीपी का नियम ताक पर
जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम के अनुसार हर अस्पताल की पैथालॉजी व ओटी समेत निजी पैथालॉजी लैब से निकलने वाले अपशिष्ट जैसे खून, यूरीन, बलगम आदि को नालियों में बहाने से पहले उनका ट्रीटमेंट किया जाना अनिवार्य है। इसके लिए ईटीपी (इफ्लूयेंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाना अनिवार्य है। बावजूद इसके जिले के अस्पतालों और लैब्स में इसकी सुविधा नहीं है। स्थिति यह है कि जिला अस्पताल समेत शहर के 190 से अधिक निजी अस्पतालों में ईटीपी नहीं है।
संक्रमण की चपेट में
ईटीपी ना होने से शहर की पैथालॉजी लैब और अस्पतालों की ओटी से बैक्टीरिया युक्त वेस्ट सीधे नालियों में बहाया जा रहा है। इन्हीं नाले/नालियों के आसपास से ही वाटर सप्लाई की पाइप या पानी की टंकियां होती हैं। जिसमें लीकेज होने पर संक्रमित पानी इन पाइपों से होते हुए लोगों के घरों में पहुंच जाता है। इस पानी को पीने वाले वाले टायफाइड, पीलिया, पेट की टीबी तथा अन्य वायरल इंफेक्शन आदि संक्रामक रोगों की चपेट में आ जाते हैं।
10 बेड से ऊपर वाले अस्पताल और सभी प्रकार की पैथालॉजी लैब जहां बलगम, यूरीन और ब्लड की जांच होती है, वहां ईटीपी होना अनिवार्य है। इन अस्पतालों को हर साल रिन्यूल के समय अपने र्ईटीपी प्लांट के दौरान ईटीपी शपथपत्र देना अनिवार्य है। लेकिन करीब 190 अस्पतालों ने अभी तक ईटीपी का शपथ पत्र या कारण नही बताया है। जिसके चलते ये अस्पताल स्वास्थ्य विभाग की रड़ार पर आ गए हैं।
ऐसे काम करता है ईटीपी
पैथालॉजी लैब्स के पानी में कई वायरस व वायरल एजेंट होते हैैं, इसे ट्रीट करना जरूरी है।
पैथालॉजी और ओटी के ब्लड, यूरीन, बलगम आदि का ईटीपी के जरिए ट्रीटमेंट करना होता है।
लैब व ओटी के अपशिष्ट को पहले एक कंटेनर में एकत्रित किया जाता है।
इसके बाद अपशिष्ट ईटीपी यूनिट में भेजते हैं, जहां उसे ट्रीटमेंट के बाद संक्रमण मुक्त कर दिया जाता है।
पैथालॉजी लैब से निकलने वाले पानी में बैक्टीरियल संक्रमण, साल्मोनेला, हैजा, पेचिश, एमडीआर प्रतिरोधी बैक्टीरिया, कैंडिडा और एस्परगिलोसिस जैसे फंगल प्रदूषण, वायरल एजेंट जैसे हेपेटाइटिस वायरस, एचआईवी वायरस, एंटरो वायरस और अन्य वायरल एजेंट निकलते हैं। जो कई गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं। मेडिकल गाइडलाइन होने के बाद भी कई अस्पताल और लैब नियम का पालन नहीं करते हैं। इससे आसपास की आबादी को गंभीर संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है।
डॉ। विश्वजीत बैंबी, सीनियर फिजीशियन कई बार पत्राचार होने के बावजूद ईटीपी अस्पताल को हैंड ओवर नहीं किया जा रहा है। हालांकि हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द ईटीपी अस्पताल में शुरू किया जाए।
डॉ। कौशलेंद्र, एसआईसी जिला अस्पताल यह नियम है कि 10 बेड से अधिक के अस्पताल और पैथालोजी लैब में ईटीपी होना चाहिए। लैब से निकलने वाला दूषित पानी कई प्रकार के संक्रमण को पैदा करता है।
मुनीश पंडित, मैनेजर, आनंद हॉस्पिटल
ईटीपी पैथालोजी लैब के लिए अनिवार्य है। इसकी गंभीरता से जांच कराई जाएगी। जिन लैब्स के पास ईटीपी नहीं है उनको नोटिस जारी किया जाएगा।
डॉ। अखिलेश मोहन, सीएमओ