रंग लगाकर सब्जियों को बना रहे ताजा फलों पर कर रहे मोम का इस्तेमाल मिलावट के खिलाफ फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट छेड़ेगा अभियान हॉट स्पॉट हुए चिन्हित।

मेरठ (ब्यूरो)। हेल्दी मानी जाने वाले फल और सब्जियां भी खाने लायक नहीं बचे हैं। जी हां, दूध, मिठाई की तरह बासी और खराब सब्जी को केमिकल वाले रंगों के जरिए ताजा बनाकर मार्केट में बेचा जा रहा है। मंडियों से लेकर छोटी-बड़ी दुकानों पर ऐसे फल-सब्जी खुलेआम बिक रहे है। फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट की सर्वे रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। यही नहीं, विभाग द्वारा ऐसी जगहों को चिन्हित कर छापेमारी की तैयारी भी की जा रही है।

ऐसे लगाया जा रहा रंग
सब्जियों और फलों को फ्रेेश बनाने के लिए इन पर केमिकल डाई लगाया जाता है।

हरे रंग की सब्जियों पर मैलाकाइट ग्रीन कलर का छिड़काव किया जाता है।

मटर, हरी मिर्च, पलक, तोरई, भिंडी, परवल, कुंदरू आदि सब्जियों पर इसका इस्तेमाल होता है। इससे बासी सब्जी एक दम ताजी हो जाती है।

डाई कलर से हरा रंग खिला और चमकदार हो जाता है।

मिलावटखोर बेकार और खराब सब्जियों को फेंकने की बजाय उन्हें कलर करके सुंदर और ताजा बनाकर महंगे दाम पर बेच देते हैं।

पांच से दस रुपए के रंग के कई किलो सब्जी को नया रूप दे दिया जाता है।

मोम से चमकदार हो रहे फल
सब्जियों की तरह फलों को भी मोम लगाकर ताजा और बढिय़ा बनाया जा रहा है। सेब, नाशपाती समेत कई फलों की स्किन को चमकदार बनाकर बाजार में बेचा जाता है। मोम लगे फल देखने में अधिक सुंदर लगते हैं। लोग इन्हें बढिय़ा क्वालिटी का समझकर अधिक दाम में खरीदते हैं। सेब की तरह पपीते पर भी मोम लगाकर उसे बढिय़ा बनाकर बेचा जा रहा है।

लीची पर लाल रंग
खाने में स्वादिष्ट और सेहतमंद मानी जाने वाली लीची के छिलके को भी लाल रंग के केमिकल डाई से स्प्रे करके उसे ताजा बनाया जाता है। रंग की हुई लीची देखने में एकदम ताजी लगती है। जिन्हें अधिक दाम पर बेचा जाता है।

सेहत पर बुरा असर
डॉक्टर्स बताते हैं कि डाई वाले केमिकल रंगों में भारी तत्व होते हैं। जो शरीर के भीतरी अंगों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं। इनमें लेड, क्रोमियम जैसे हेवी मेटल होते हैं। जिन्हें पचाना शरीर के लिए संभव नहीं होता । ये केमिकल शरीर में खून के साथ मिल जाते हैं और कई गंभीर बीमारियां शरीर में पैदा हो जाती हैं जिनमें एक कैंसर भी है। केमिकल डाई जब शरीर के अंदर जाती है तो पेट में दर्द, अपच, उल्टी, डायरिया जैसे रोग भी पनप जाते हैं।साथ ही यदि प्रेग्नेंट महिला इन रंगों का सेवन करती है तो होने वाले बच्चों की फिजिकल और मेंटल ग्रोथ पर इसका सीधा असर पड़ता है। शरीर का डाइजेस्टिव सिस्टम भी इससे खराब हो जाता है और कई गंभीर और जानलेवा बीमारियां जकड़ लेती हैं।

ऐसे करें मिलावट की पहचान
सब्जियों और फलों को पानी में भिगोकर रखें, यदि रंग होगा तो पानी का रंग बदल जाएगा।

रूई का एक टुकड़ा पानी में भिगो लें। इससे सब्जी और फलों की सतह को रगड़ें, यदि रंग होगा तो रुई की सतह पर दिखाई देगा।

एक बर्तन में पानी लें। इसमें हरी मटर मिलाएं। एक घंटे तक यूं ही पड़ा रहने दें। यदि पानी में रंग का सेपरेशन दिखाई दे और समझे मटर में मिलावट है।

सेब की बाहरी परत को चाकू से खुरचे। चिपचिपा पदार्थ निकलें तो इस पर मोम लगा हुआ है।

मिलावट पकडऩे के लिए विभाग सर्वे कर रहा है। ऐसी जगह को चिन्हित किया जा रहा है जहां मिलावट मिलने की संभावना है। विभाग द्वारा लोगों को भी जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। अधिक चमकदार फल और सब्जियों को खरीदने से बचना चाहिए। ऐसी सब्जियों में केमिकल डाई का उपयोग किया गया हो सकता है।
दीपक कुमार, सहायक आयुक्त, फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट

केमिकल डाई खाने के लिए नहीं होते हैं। इनमें ऐसी कई तत्व होते हैं जो शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।प्रेग्नेंट महिलाओं में गर्भपात तक हो सकता है। होने वाले बच्चों को भी इसके कई खतरे रहते हैं।
डॉ। मनीषा त्यागी, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ

मिलावट शरीर के लिए बहुत नुकसानदायक है।इससे किडनी, पेट, आंत का कैंसर हो सकता है। ये केमिकल शरीर में जाकर बाहर नहीं निकलते हैं।अंदर ही अंदर टॉक्सिन बढ़ते जाते हैं और इसे गंभीर बीमारियां पनपने लगती है
डॉ। संदीप गर्ग, वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive