पॉल्यूशन कंट्रोल के पीछे बस प्लानिंग की कमी है!
मेरठ (ब्यूरो)। शहर की आबोहवा इस कदर दूषित होती जा रही है कि यहां सांस लेना परेशानी का सबब बन गया हैये तो सब जानते है लेकिन मैैं जो जानकारी आपको देने जा रहा हूं, वह जानकार शायद आप अचरज में पड़ जाएंगे। जानकारी यह है कि राज्य प्रदूषण निगम से शहर के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए मिले 114.9 करोड़ रुपए के बजट में से प्रदूषण विभाग ने करीब 64 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए। ये हाल तब है, जब प्रदेश जिले के नाम प्रदेश के सात सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो। कल मिलाकर कहा जा सकता है कि यहां पॉल्यूशन कंट्रोल के पीछे बजट की नहीं प्लानिंग की कमी है।
सात प्रदूषित शहरों में शामिल
दरअसल, हाल ही में मुख्य सचिव द्वारा प्रदेश के 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति को लेकर जांच कराई गई थी। जिसमें मेरठ समेत गाजियाबाद, आगरा, कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज और वाराणासी के वायु प्रदूषण स्तर बहुत खराब मिला था। जांच में सामने यह भी सामने आया कि इन शहरों को केंद्र सरकार द्वारा वायु प्रदूषण कम करने के लिए जो बजट मिला था, उसका भी उपयोग नहीं किया गया। ऐसे में राज्य प्रदूषण निगम ने जल्द से जल्द बजट के अनुसार अधूरे काम पूरे कराने के आदेश जारी कर दिए हैं।
स्थिति यह है कि केंद्र सरकार द्वारा मेरठ को गत वर्ष प्रदूषण कम करने के लिए 114.9 करोड़ रुपए का बजट जारी किया गया था। इसमें से गत माह तक प्रदूषण विभाग ने मात्र 49.73 करोड़ रुपए विभिन्न कामों में खर्च किए। जबकि 64 करोड़ रुपया खर्च ही नहीं किया गया। इस बजट से किए जाने वाले कामों को बकायदा निर्धारित भी किया गया था लेकिन इसमें से अधिकतर काम अभी तक अधूरे हैं। वही 15वेंं वित्त आयोग से भी गत वर्ष नगर निगम को वायु प्रदूषण नियंत्रण और गुणवत्ता सुधार के लिए 36 करोड़ रुपये मिले थे। इन कामों के लिए जारी हुआ था बजट
निजी की जगह सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग
शहरों मे हरियाली विकसित करना
लगातार पानी का छिड़काव
सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक प्रयोग
कूड़ा गाडिय़ों को ढककर ले जाना
बड़े बाजारों ओर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रात के समय सफाई के लिए मशीनरी विकसित करना
धूल के गुबार से बढ़ प्रदूषण
प्रदूषण विभाग के आंकडों के अनुसार एनसीआर में पीएम-2.5 एवं पीएम-10 में 40 प्रतिशत मात्रा धूल कणों की है। उखड़ी सड़कों, वाहनों के टायरों का प्रदूषण, अनियंत्रित निर्माण, पॉलिथिन एवं ठोस कचरा दहन और औद्योगिक इकाइयों से उडऩे वाली काली राख भी वायु प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारक हैं।
घर से निकलते वक्त मुंह और नाक को रूमाल आदि से जरूर ढककर चलें।
घर के दरवाज़े और खिड़कियां बंद रखें, खिड़कियों और दरवाजों से जहरीले प्रदूषक घर में प्रवेश कर जाते हैं।
धूल में या घर ज्यादा साफ-सफाई का काम करने से भी बचें।
सांस से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोग डॉक्टर की सलाह से घर में एयर प्यूरीफायर लगवा सकते हैं। ये अशुद्ध हवा को घर से बाहर निकालने में मदद करते हैं। प्रदूषण कम करने के लिए सभी स्तरों पर प्रयास हो रहे हैं। प्रदूषण फैलाने वाले कारकों पर लगातार सख्ती से लगाम लगाई जा रही है। इसके लिए विभिन्न विभागों से सहयोग लिया जा रहा है।
भुवन प्रकाश यादव, क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी
हवा में धूल कणों के साथ ही सल्फर, अमोनिया, नाइट्रोजन व मोनोआक्साइड जैसी गैसें शामिल होती हैं। इनसे ब्रोंकाइटिस, गले में खरास, सांस की दिक्कत, वायरल और निमोनिया की संभावना भी बढ़ जाती है। मास्क का प्रयोग करके इससे बचा जा सकता। लिक्विड अधिक लें, फ्रेश फूड अधिक लें।
डॉ। वीरोत्तम तोमर, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ