इन नालों में पानी नहीं...कूड़ा और गोबर बहता है
मेरठ (ब्यूरो)। स्वच्छता के नाम पर शहर में हर साल करोड़ों नगर निगम द्वारा खर्च किए जाते हैैं लेकिन सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है। न तो यहां ढंग से कूड़ा कलेक्शन किया जाता है और न ही उसका निस्तारण। कूडा कलेक्शन और निस्तारण और कूड़ेदानों की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण नाले के आसपास बसे मोहल्लों के लोग नाले में ही कूड़ा डाल देते हैं। जिस कारण इन क्षेत्रों के नाले ही कूड़ेदानों में तब्दील हो गए हैं। बरसता के मौसम में ये नाले शहरभर में जलभराव का प्रमुख कारण बनते हैैं।
नालों में कूड़ा और गोबर
कूड़े के ढेर के कारण नालों की सफाई एक बड़ी समस्या है। हाल यह है कि सिल्ट से अटी नाले की ऊपरी सतह ने दलदल का रूप ले लिया है, जबकि इस दलदल के नीचे पानी का तेज बहाव होता है। इससे कई बार नाले में गिरने के कारण लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं। शहर के भूमियापुल नाला रोड, माधवपुरम, स्पोर्ट्स कांप्लेक्स, कसेरूखेड़ा नाले की रोड, जैन नगर-ईदगाह रोड, ट्रांसपोर्ट नगर, नूरनगर, शादी महल, समर गार्डन, लिसाड़ी रोड आदि क्षेत्रों में शहर के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा जगह-जगह ज्यादा गंदगी दिखाई देती है। यहां बरसात के दिनों में जलभराव भी अधिक होता है। जिसका बड़ा कारण क्षेत्र की संकरी गलियों में कभी-कभार होने वाला कूड़ा कलेक्शन ही है। इसी के चलते अधिकतर मोहल्लों का कूड़ा इन नालों में जाकर गिरता है। वहीं इन क्षेत्रों में डेयरियों से निकलने वाला गोबर भी बदस्तूर नालियों में बहाया जा रहा है। जो नालों के चोक होने का प्रमुख कारण है।
125 से 132 करोड़ कुल सफाई व्यवस्था पर वार्षिक खर्च का अनुमान है
17 करोड़ करीब कुल वार्षिक खर्च कूड़ा गाडिय़ों व अन्य वाहनों के पेट्रोल-डीजल और लुब्रीकैंट पर
1.40 करोड़ कुल वार्षिक खर्च अनुमानित है स्वच्छता सामग्री पर
50 लाख रुपये लगभग वार्षिक खर्च है नाला सफाई पर
50 करोड़ करीब वार्षिक खर्च है नियमित सफाई कर्मचारियों के वेतन पर
38.50 करोड़ कुल वार्षिक खर्च है संविदा सफाईकर्मी और चालकों के वेतन पर सफाई व्यवस्था पर हावी लापरवाही
नगर निगम में दो अपर नगर आयुक्त व दो सहायक नगर आयुक्त समेत एक नगर स्वास्थ्य अधिकारी भी तैनात हैं। सभी को सरकारी वाहन मिला है। प्रति वाहन 25,000 से 30,000 रुपये प्रति माह ईधन का खर्च आता है। लेकिन प्रतिदिन सफाई व्यवस्था की मॉनिटरिंग नहीं होती है। जबकि सफाई ही निगम का मुख्य काम है।
कुल 90 वार्डों की सफाई व्यवस्था के निरीक्षण के लिए कुल आठ सफाई एवं खाद्य निरीक्षक तैनात हैं। तीन डिपो प्रभारी हैं। प्रत्येक सफाई एवं खाद्य निरीक्षक के पास 10 से 12 वार्ड की जिम्मेदारी है। बाइक से प्रत्येक वार्ड का निरीक्षण संभव नहीं है। तीनों डिपो प्रभारियों व सफाई एवं खाद्य निरीक्षकों को कोई सरकारी वाहन नहीं दिया गया है।
सुबह सड़कों व गलियों में झाड़ू लगाने के लिए ठेके पर लगभग 2400 आउटसोर्सिंग सफाई कर्मचारी हैं। जो दो कंपनियों के अधीन हैं। लेकिन झाड़ू न लगने की शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। इसकी मॉनिटरिंग न तो निगम स्तर से और न कंपनियों के स्तर से होती है। कंपनी का कोई सुपरवाइजर नियुक्त नहीं है। आबादी के अनुपात में सफाई कर्मचारी वार्डों में बेहद कम हैं। ठेके की व्यवस्था होने के बाद भी आउटसोर्सिंग सफाई कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ाई गई। जबकि नियमित सफाई कर्मी लगभग 700 हैं। दो रोड स्वीपिग मशीनें हैं। प्रमुख मार्गों पर प्रतिदिन 22 किमी। सफाई का कुल लक्ष्य है लेकिन डिपो से कभी-कभार निकलती हैं। अधिकांश डिवाइडर रोड किनारे धूल की परतें जमी हैं। इसकी कोई समीक्षा नहीं होती।शनिवार, रविवार और सोमवार को विशेष सफाई अभियान चलाने का निर्देश शासन स्तर से है मगर यह अभियान केवल वीआइपी क्षेत्र तक सीमित है। इस अभियान में निगम अधिकारी तक नहीं पहुंचते हैं। गंदगी वाले इलाके चिह्नित करके विशेष सफाई भी कभी नहीं की जाती।
डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन, ढलावघरों से कचरा उठाने व घरों पर कूड़ा गाडिय़ों के पहुंचने का समय व रूट कुछ भी तय नहीं है। जीपीएस गाडिय़ों में लगा है लेकिन मॉनिटरिंग का कोई सिस्टम नहीं है। नाला सफाई के बाद सिल्ट व गोबर सड़क-चौराहों पर छोड़ दिया जाता है। जबकि नाले की सिल्ट ले जानी वाली विशेष ट्रालियां निगम के पास हैं लेकिन उनका उपयोग नहीं होता है।