5 से 7 साल तक बीतने के बावजूद भी समस्याओं का नहीं होता है हल 298 शिकायतों की अभी भी पेंडेंसी बरकरार। इतना ही नहीं चार सदस्यीय टीम गठित होने के बावजूद भी नतीजा सिफर।

केस-1 : पांच साल से भटक रहे
अमित ने पांच साल पहले यूनिवर्सिटी से एलएलबी क्लीयर की है। उन्होंने एक सब्जेक्ट की कॉपी खुलवाने के लिए एप्लीकेशन फार्म भरा था, लेकिन उसका समाधान अभी तक नही हो पाया है। वे मेरठ से बाहर प्राइवेट जॉब कर रहे हैं, लेकिन उनको कई बार इसी काम के सीसीएसयू आना पड़ता है।

केस- दो: सात से अटका मामला
साल 2017 में रोहित ने बीएससी पास किया था। उनके माक्र्स कम थे। उन्होंने अपनी आंसर शीट को रिचेक कराने के लिए अप्लाई किया था, लेकिन यह कार्य आज तक नहीं हो पाया है।

मेरठ (ब्यूरो)। सीसीएस यूनिवर्सिटी में पांच से छह साल बीतने के बावजूद भी शिकायतों का समाधान नहीं हो पा रहा है। हालत यह है कि करीब 298 शिकायतें अभी तक पेडिंग में हैं। सीसीएसयू के रजिस्ट्रार कार्यालय पर शिकायतों की पेडेंसी को लेकर सबसे ज्यादा छात्र पहुंच रहे हैं। ऐसे में छात्रों को रोजाना परेशान होना पड़ता है। यूनिवर्सिटी बीते कई सालों से 298 केस पेंडिंग हैं इनमें कॉपियों को दिखाने व री चेकिंग की डिमांड की गई है। वहीं, बीते एक साल में शिकायतों का समाधान नहीं हो सका है। जबकि पेंडेंसी को दूर करने के लिए चार सदस्यीय टीम भी गठित हो चुकी है।

मार्कशीट में सुधार नहीं
गौरलतब है कि मार्कशीट को लेकर कई बार बदलाव किए गए हैं। बीच में सिंगल विंडो का बड़ा बदलाव हुआ। इसके सुधार का दावा सीसीएसयू कर रही है। इनमें भी बीते पांच साल में 298 केस पेंडिंग हैं। हैरानी की बात यह है कि समिति के गठन होने के बावजूद भी शिकायतें दूर नहीं हो पाई हैं।

आरटीआई से नहीं मिल रही जानकारी
सीसीएसयू का दावा है कि आरटीआई के तहत सात दिन में जवाब मिलेगा। कभी 15 दिन में जवाब देने का दावा होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि कई साल बीत जाते हैं, लेकिन छात्रों को समुचित जानकारी नहीं मिल पाती है।

रोजाना समस्याएं हल करने का दावा
यूनिवर्सिटी में अब रोजाना ज्यादा से ज्यादा समस्याएं हल करने का दावा किया जा रहा है। लेकिन हालात तो ये है बीते सात साल में कई समस्याएं हल नहीं हो पाई हैं।

मेरी व मेरे दोस्त के सब्जेक्ट में माक्र्स कम आए थे। मैनें आरटीई के तहत कुछ जानकारियां मांगी थी। चार साल बाद भी मुझे समुचित जवाब नहीं मिल सका है।
निखिल

मैने कॉपी की री चेकिंग के लिए चार साल पहले फार्म भरा था। लेकिन कई बार चक्कर काटने पर भी कॉपी चेक नहीं कराई गई। मुझे कम माक्र्स की ही माक्र्सशीट दी गई।
जैबा

मेरी तीन साल पहले आरटीआई के तहत सूचना मांगी थी। मुझसे पहले मेरी सिस्टर ने भी सात साल पहले एक आरटीआई लगाकर अपनी कॉपी खोलने को कहा था। लेकिन संबंध में हल नही हो पाया है।
अंकुर

जो भी समस्याएं आ रही हैं। मैंने पता किया है जो भी पेंडेंसी है, उनका पहले समाधान किया जा रहा है। साथ ही छात्रों की नई समस्याओं को भी सुलझाया जा रहा है।
धीरेंद्र कुमार, रजिस्ट्रार

Posted By: Inextlive