Meerut News : अच्छे पेरेंंट्स न बन पानेे का बड़ा मलाल है
केस 1
गढ़ रोड निवासी संगीता दो बच्चों की मां हैं। उनकी देखभाल, घर के काम और ऑफिस की जिम्मेदारियों की वजह से वह काफी स्ट्रेस में आ गई। उन्हें अनिद्रा, सिरदर्द, और मानसिक चकराहट की समस्या रहने लगी। डेली रूटीन भी खराब हो गया। अधिक जिम्मेदारियों और समय की कमी की वजह से वह काफी चिढ़चिढी रहने लगी। काउंसलर के पास पहुंची तो पता चला कि वह पेरेंटल बर्नआउट की शिकार हैं।
केस 2
शास्त्रीनगर निवासी राजीव और सुषमा का दो साल का बेटा ऑर्टिस्टिक है। उन्हें बेटे की स्पेशल केयर करनी पड़ती है। बच्चे को संभालते हुए दोनों कहीं बाहर नहीं जा पाते। खुद को हर वक्त थका हुआ महसूस करने लगे। उन्हें लगने लगा कि वह अपने बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से पूरी तरह से जुड़ा महसूस नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने काउंसलर की मदद ली। पता चला कि अधिक जिम्मेदारियों की वजह से ऐसा हो रहा है।
केस 3
गंगानगर निवासी नीलम वर्किंग हैं। डेढ़ साल की बेटी भी है। घर, ऑफिस और काम के प्रेशर की वजह से वह बीमार सी रहने लगी। नींद पूरी न होना, बात-बात पर गुस्सा करना, किसी काम में ध्यान न लगना, सिरदर्द जैसी समस्याओं ने उन्हें घेर लिया। काउंसलर के पास गई। पता चला की मानसिक तनाव और खुद की देखभाल में लापरवाही की वजह वह बर्नआउट की शिकार हो गई है।
ये है स्थिति
मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक हर दिन 10 से 12 केस पेरेंटल बर्नआउट के काउंसलर्स के पास पहुंच रहे हैं। इनमें ऐसे पेरेंट्स अधिक हैं जो वर्किंग हैं। सुबह से शाम तक इंगेज रहते हैं। घर आकर भी उनके पास अधिक समय नहीं रहता है। वहीं बच्चों की जिम्मेदारियों की वजह से उनकी नींद भी पूरी नहीं हो पाती है। इनमें गुस्सा, चिढचिढ़ाहट, खीझ जैसे लक्षण हर समय बने रहते हैं।
पेरेंट्स अपनी दूसरी जिम्मेदारियों और अपने बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण की जिम्मेदारियों में तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। इसकी वजह से वह अधिक थकान, तनाव और निराशा महसूस कर रहे हैं। वह खुद को मेंटली और फिजिकली वीक महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगने लगा है कि उनके बच्चे की परिवरिश कमजोर हो रही है। उनके प्रति शारीरिक, मानसिक और इमोशनल तौर पर जिम्मेदारियों को निभाने में विफल हो रहे हैं। इस स्थिति को पेरेंटल बर्नआउट कहते हैं।
पैरेंटेल बर्नआउट के ये हैं मुख्य कारण
न्यूकि लर फैमिली, घर-परिवार की जिम्मेदारी, दो या दो ये अधिक बच्चों की देखभाल।
खुद के लिए समय की कमी, अपने शौक या दोस्तों के लिए समय न निकाल पाना।
बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को पूरा करना, उनके विकास पर ध्यान देना।
परिवार या दोस्तों से मदद न मिल पाना, अकेलेपन और निराशा का अनुभव।
बच्चों की देखभाल, खासकर छोटे बच्चों की, रात को उन्हें सुलाने या उनके बीच उठने-बैठने के कारण नींद पूरी नहीं हो पाना।
शारीरिक रूप से अस्वस्थ होना या मानसिक तनाव का होना।
नकारात्मक विचार बर्नआउट को और बढ़ाते हैं।
समाज की अपेक्षाओं की वजह से दबाव और अतिरिक्त बोझ।
स्ट्रेस की वजह से पेरेंट्स के आत्मविश्वास और मनोबल में कमी।
बच्चों के साथ समय बिताने में रुचि कम होना।
खुद को लेकर गिल्ट होना।
बच्चों के साथ रिश्तों में तनाव, चिढ़चिढ़ापन। ऐसे करें समस्या का हल
टाइम मैनेजमेंट करें, खुद के लिए समय निकालें।
परिवार, दोस्तों या किसी अन्य से मदद लें।
पर्याप्त नींद लें, स्वस्थ आहार लें और फिजिकल एक्टिविटी करते रहें ताकि ऊर्जा बनी रहे।
खुद पर कम दबाव डालें। काम को छोटे पाटर्स में डिवाइड करें। इन बातों का भी रखें ध्यान
पैरेंटल बर्नआउट से निपटने के लिए रणनीतियां तैयार करें।
समय का बेहतर प्रबंधन करें।
छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करना।
बच्चों के साथ-साथ अपने लिए भी क्वालिटी टाइम निकालें।
दिन में समय-समय पर छोटे-छोटे ब्रेक लें।
मानसिक थकान कम करने के लिए रेस्ट करें।
इनका है कहना
पेरेंट््स को अपनी मानसिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। अगर वह खुद को थका हुआ या निराश महसूस करें, तो किसी की मदद लें। खुद की देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। पैरेंटल बर्नआउट सिर्फ शारीरिक थकावट नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और भावनात्मक प्रक्रिया है।
डॉ। विभा नागर, क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट
डॉ। रवि राणा, सीनियर न्यूरो साइकेट्रिस्ट पैरेंटल बर्नआउट के दौरान आत्म-संवेदनशीलता और अपराधबोध का अनुभव सामान्य है। जब पेरेंट्स अपने बच्चों की देखभाल में पूरी तरह से सफल नहीं होते, तो वे खुद को दोषी महसूस करते हैं। जरूरी है कि वह अपनी सीमाओं को समझें। वे हर समय परफेक्ट नहीं हो सकते और ये ठीक भी है।
डॉ। तरूण पाल, एचओडी मेंटल हेल्थ, मेडिकल कॉलेज