Meerut: माहे रमजान में रोजे की हिदायत है। रोजे का मतलब यह नहीं कि भूखे-प्यासे रहें। यह महीना अपने को बुराइयों से बचा कर पाक-साफ करने का है। गिले-शिकवे भुला कर दोस्ती करने का प्यार बांटने का और बेसहारा की मदद करने का है। आइए जानते हैं माहे रमजान में रोजों के फायदे और नमाज के मायने...
By: Inextlive
Updated Date: Sat, 11 Jun 2016 02:48 PM (IST)
इस्लाम में नमाज या सलाह का महत्वनमाज फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है। रमजान के मुबारक महीने रोजे रखने के साथ, पांच बार की नमाज अदा करना भी जरूरी है। नमाज के मुताल्लिक उलैमा इकराम लिखते हैं कि, हर नमाज ऐसे अदा करो जैसे कि यह तुम्हारी आखिरी नमाज हो। इससे यह पता चलता है कि इस्लाम में नमाज का क्या महत्व है। इस्लाम में पांच वक्त की नमाज फर्ज है, यानि पांच बार नमाज पढ़ना जरूरी है।पांच समय की नमाज पढ़ने का विधान व उनका महत्व1- नमाज -ए-फजर (उषाकाल की नमाज) यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है।
नोट- पहली नमाज सुबह की उषाकाल की होती है। ऐसा माना जाता है कि इसे करने से रोजी में बरकत होती है। इसके साथ ही तंदरुस्ती बनी रहती है।
3- नमाज -ए-अस्त्र (दिवसावसान की नमाज) यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।
नोट- तीसरी नमाज जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है। इसे करने से शरीर में बीमारी नहीं रहती है।
5- नमाज-ए-अशा (रात्रि की नमाज) अंतिम पांचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।नोट- पांचवी नमाज सुकुन की नींद के लिए की जाती है।'नमाज अल्लाह से मांगने का जरिया है। इस माह रोजा रखकर रोजेदार अल्लाह की इबादत करते हैं। अल्लाह का शुक्रिया करते हैं, जिसने हमें जिंदगी बख्शी है।'- पीरजी अहमद अली।
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