खाने का तेल हो या मसाला रसोई गैस का सिलेंडर हो या पेट्रोल-डीजल...अगर गौर करें तो बाजार में रोज कुछ न कुछ महंगा हो रहा है. बस किताबें बची थी आखिरकार वो भी नहीं बच पाई.

मेरठ (ब्यूरो)। खाने का तेल हो या मसाला, रसोई गैस का सिलेंडर हो या पेट्रोल-डीजलअगर गौर करें तो बाजार में रोज कुछ न कुछ महंगा हो रहा है। बस किताबें बची थी, आखिरकार वो भी नहीं बच पाई। तकलीफदेह खबर ये है कि बच्चों को पढ़ाना भी अब महंगा हो गया है क्योंकि निजी प्रकाशनों ने कापी, किताब और स्टेशनरी के दाम 20 प्रतिशत तक बढ़ा दिए हैं।

कागज की शॉर्टेज
दरअसल, एक अप्रैल से सीबीएसई के नए शैक्षिक सत्र का शुभारंभ होने जा रहा है। स्कूलों ने नए सेशन के सिलेबस की लिस्ट अभिभावकों को पकड़ा दी है। ऐसे में कोरोना के चलते दो साल से नुकसान झेल रहे बुक सेलर और प्रकाशकों ने दाम बढ़ाना शुरू कर दिए हैं। वहीं बुक सेलर्स की मानें तो रूस-यूक्रेन युद्ध के असर के कारण कागज की शॉर्टेज से कागज काफी महंगा हो गया है। जिसका असर किताब, कॉपियों पर देखने को मिल रहा है। युद्ध के कारण पेपर की शार्टज समेत अन्य कारणों से पेपर इंडस्ट्री में अचानक 40 से 50 प्रतिशत महंगाई के साथ कागज में उपयोग होने वाले कच्चे माल की भी शॉर्टेज हो गई है। इसमें पेपर में इस्तेमाल होने वाला एक प्रमुख केमिकल भी शामिल है। इस कारण प्रकाशकों को रिप्रिंटिंग में समस्या आ रही है क्योंकि उनकी लागत कीमत भी 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसका असर स्टेशनरी के बढ़े हुए दाम के रूप में दिख रहा है। इसके चलते निजी प्रकाशनों ने किताबों के दाम बीते वर्षों के मुकाबले 20 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ा दिए हैं।

कोरोना पोस्ट इफैक्ट बढ़ा कारण
दो साल से कोरोना के कारण स्टेशनरी के दाम में इजाफा नहीं हो पा रहा था। जबकि रॉ मैटेरियल और कागज के रेट में इजाफा जारी था। ऐसे में कोरोना खत्म होने के बाद इस साल की शुरुआत से बुक्स के रेट में इजाफा कर दिया गया था। जो अभी तक जारी है। कापी के दाम में 20 प्रतिशत तक का इजाफा अब हुआ है। साथ ही कोरोना के कारण दो साल तक रोजगार प्रभावित होने से 60 प्रतिशत तक लेबर इस फील्ड को छोड़ चुकी थी। जिस कारण से अब प्रकाशकों को मंहगी लेबर से काम चलाना पड़ा रहा है। साथ ही डीजल के लगातार बढ़ते दाम का असर भी स्टेशनरी प्रोडक्ट पर पड़ रहा है।

नर्सरी से लेकर 12वीं तक इजाफा
स्टेशनरी बाजार पर नजर डालें तो नर्सरी से लेकर 12वीं तक की कापी-किताबों के रेट पर एकदम से इजाफा होना शुरू हुआ है। निजी प्रकाशनों से नर्सरी का कोर्स 1200 से 1500 रुपये तक मिल रहा है। जबकि कक्षा एक से पांचवीं तक का कोर्स 2000 से 3500 रुपये में मिल रहा है। वहीं इंटरमीडिएट की किताबों के दाम 1800 से 2500 रुपये तक हो गए हैं। जबकि एनसीईआरटी की यहीं पुस्तकें सिर्फ 400 रुपये तक में ही मिल रही हैं।

यह है स्थिति
कोर्स निजी प्रकाशन
नर्सरी 1200-1500
एक से पांच तक 2000-3200
छह से आठवीं 3300-3800
10वीं से 12वीं 4000- 4500

कोट्स
अनेकों कारण से 40 से 50 प्रतिशत महंगाई के साथ कागज में उपयोग होने वाले कच्चे माल की भी शॉर्टेज हो गई है। इस कारण प्रकाशकों को रिप्रिंटिंग में समस्या आ रही है क्योंकि उनकी लागत कीमत भी 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। उदाहरण के लिए 200 रुपए वाली पुस्तक पर अगर प्रकाशक 15 रुपए बचते थे तो अब उसे उसी कीमत पर रखने पर प्रत्येक बुक पर 15-20 रुपयों की हानि हो रही है।
आशीष धस्माना, अध्यक्ष, उप्र बुक सेलर एसोसिएशन

पेन समेत कापी के दाम में 20 प्रतिशत तक इजाफा हुआ है। बुक्स के दाम इस साल की शुरुआत में बढ़ाए जा चुके थे, वही लागू हैं। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अचानक से पेपर की बहुत अधिक शार्टेज हो गई है। जिसके कारण नया माल मंहगा आ रहा है। पेन के रेट जीएसटी की दर बढऩे के कारण बढ़ाए गए हैं। पहले यह 12 प्रतिशत स्लैब मे था, अब 18 प्रतिशत में है।
संजय अग्रवाल, उपाध्यक्ष, मेरठ स्टेशनरी एसोसिएशन

पेपर की कमी, लेबर की कमी, डीजल के दाम में इजाफा कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारण है जिसके कारण प्रिटिंग कॉस्ट बढ़ गई है। लेबर की इतनी शार्टेज है कि डबल खर्च पर काम कराना पड़ रहा है। पेपर के रेट में 40 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। इस कारण से कापी और किताबें मंहगी हो गई हैं।
मनोज अग्रवाल, उपाध्यक्ष, मेरठ पुस्तक विक्रेता संघ

रोज किसी न किसी चीज के दाम बढ़ जाते हैं। किताबों के दाम स्कूल खुलने से पहले ही बढ़ा दिए। प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढऩा एक टास्क हो गया है।
सुबोध शर्मा, पेरेंट्स

रसोई से लेकर घर तक का बजट बिगड़ गया है। रोज बढ़ती महंगाई से आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है। बाजार पर लगाम का कोई नियम नहीं है।
सुशील, पेरेंट्स

सरकार को प्राइवेट प्रकाशकों पर लगाम कसनी चाहिए। स्कूलों की फीस भी एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ाई जानी चाहिए।
अरुण नेगी, पेरेंट्स

Posted By: Inextlive