सर क्या करें...बच्चे का पढ़ाई में नहीं मोबाइल में मन लगता है
मेरठ (ब्यूरो)। यूपी बोर्ड के एग्जाम चल रहे हैं। जबकि सीबीएसई की परीक्षाएं 26 अप्रैल से शुरू हो जाएंगी। ऐसे में आमतौर पर बच्चे तैयारी में जुट जाते हैं। लेकिन, इस बार ट्रेंड जरा बदला हुआ है। बच्चों का पढ़ाई से ज्यादा मोबाइल में मन लग रहा है। यह सब देखकर पेरेंट्स परेशान हैं। इन दिनों सीबीएसई काउंसलर के पास रोजाना काफी फोन आ रहे हैं। इनमें आधे से ज्यादा केस मोबाइल एडिक्शन के ही हैं। सवाल यह है कि अचानक ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, इस मुसीबत की जड़ में कोरोना है।
ये है पेरेंट्स का डर
किशोरावस्था भी पेरेंट्स के डर में शामिल है। क्योंकि इस अवस्था में बच्चा ना समझ होने के चलते जल्द ही गलत कदम उठा लेता है। ऐसे में मोबाइल से दूरी बनाने के लिए बच्चे को अधिक डांट भी नहीं लगा सकते हैं। ऐसे में इस समस्या से उबारने के लिए पेरेंट्स सीबीएसई काउंसलर व मनोवैज्ञानिक का सहारा ले रहे हैं।
एडिक्शन के ये हैं प्रमुख कारण
-सीबीएसई काउंसलर के अनुसार कुछ गेम्स ऐसे होते हैं जिनमें बच्चों को डर होता है कि कहीं सामने वाला जीत न जाए, इसलिए वह फोकस होकर खेलते हैं और फिर ये एडिक्शन में बदल जाता है।
-कोविड काल में बच्चों को बाहर गेम्स खेलने का मौका नहीं मिला। इसलिए उन्होंने मोबाइल गेम्स को मनोरंजन का साधन बनाया। लेकिन, धीरे-धीरे यह बच्चों के लिए एडिक्शन का कारण बन गया।
-दूसरे देशों के लोग कुछ गेम्स में हमारे साथ जुड़ जाते हैं। उनसे जीतने के लिए देश प्रेम की भावना जाग्रत हो जाती है। गेम्स को अधिक फोकस से खेलना एडिक्शन का कारण बनता है।
ऐसे छुड़ाएं लत
-सोने से पहले बच्चों से फोन अलग रखें।
-उनसे फोन में खेले जाने वाले गेम्स पर चर्चा करें और समय-समय पर अच्छे-बुरे के बारे में बताएं।
-बच्चों को शुरू से ही फोन कम दें। अगर, फोन दें भी तो पहले जो जरूरी कार्य है उसे करवाएं, ताकि उसे लगे कि पहले काम जरूरी है।
-बच्चों को मोबाइल देने का 30-40 मिनट का समय बांध दें। गलत व्यवहार करने व खाना खाते समय फोन यूज न करने दें।
-परिवार के सदस्यों के साथ एक्टिविटी करवाते रहें, ताकि बच्चे को मोबाइल की जरूरत न पड़े।
-बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें
-अपने विजी शैड्यूल में से वक्त निकालकर बच्चों को आउटडोर पर लेकर जाएं।
-बच्चों को सिलेबस के अलावा इंट्रेस्टिड बुक्स की रीडिंग कराएं।
-कोरोना के चलते बच्चों का पर्यावरण से नाता टूट चुका है। इसलिए जरूरी है कि उन्हें जंगल, प्राणी, पानी आदि का महत्व जानने के लिए प्रेरित करें।
केस-1 शास्त्रीनगर निवासी अरुण के बेटा सौरभ के 26 अप्रैल से 10वीं के सीबीएसई बोर्ड एग्जाम हैं। लेकिन, वह तैयारी में जुटने की बजाय मोबाइल में गेम्स खेलने लगा रहता है। बेटा किशोरावस्था में होने के चलते अरुण परेशान है कि उसे अधिक टोक नहीं सकते। ऐसे में वह क्या स्टेप लें कि बेटा मोबाइल की लत छोड़कर पढ़ाई में ध्यान दे। ये समझ नहीं आ रहा है। केस-2 रजबन निवासी सुशीला देवी की बेटी नैना इंटर की परीक्षा की तैयारी कर रही है। लेकिन, एग्जाम तैयारी से ज्यादा उसका समय मोबाइल चलाने में बीतता है। इससे उसकी हैंड राइटिंग भी खराब हो चुकी है। मां ने बेटी को सही ट्रैक पर लाने के लिए काउंसलर से बात की है।
केस-3 कंकरखेड़ा निवासी सुरेश का बेटा पढ़ाई छोड़कर मोबाइल में लगा रहता है। गेम्स का एडिक्शन इस कदर है कि पिता के टोकने पर वह रोने लगता है। पिता को चिंता है कि अधिक टोकने पर बेटा कहीं कोई गलत कदम न उठा ले। इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए उन्हें कुछ सुझाव नहीं मिल रहा है।
वर्जनरोजाना 50 प्रतिशत कॉल मोबाइल एडिक्शन के आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण कोविड में अधिक मोबाइल का यूज करना है। बच्चों में गेम्स खेलते वक्त ईगो प्रॉब्लम होता है कि कहीं वह गेम न हार जाएं। किशोरावस्था में बच्चा अधिक भावुक होता है। वह किसी भी हद तक जा सकता है। इसलिए बच्चे की हर एक्टिविटी पर ध्यान दें।
-डॉ। अनिता मोरल, मनोवैज्ञानिक बच्चे को एकदम से न टोकें, मोबाइल यूज करने के लिए उसका समय निर्धारित कर दें। उससे फ्रैंडली नेचर रखें। उससे बात कर हंसी-मजाक का माहौल बनाएं ताकि उसके मन में आपके प्रति हीन भाव न आएं। बीच-बीच में उसे प्यार से समझाएं कि ये समय पढ़ाई के लिए जरूरी है। इससे वह आपकी बात को मानेगा और मोबाइल का यूज आपके अनुसार करेगा।
-डॉ। पूनम देवदत्त, सीबीएसई काउंसलर