कठपुतली तो बहाना है, बच्चों को स्कूल लाना है
मेरठ ब्यूरो । पढऩा-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो।। क ख ग को पहचानो अलिफ को पढऩा सीखो, जागो जरा सा जागो ओ देश के मतवालों, ये देश है पुकारता, पुकारती मां भारती ऐसे ही कई गीतों की धुन पर थिरकती हुई मेरी कठपुतली लोगों को सामाजिक जिम्मेदारियों का पाठ पढ़ाती है। बच्चों को स्कूल का महत्व बताती है, महिलाओं को अधिकार बताती है। साथ ही सामाजिक मुद्दों पर समझ बनाती है। यही नहीं, मेरी कठपुतली तो विज्ञान के नियमों को समझा देती है। जी हां, यही है मेरी यानि माला सिंह और मेरी कठपुतलियों की कहानी
मेरी कठपुतली देती है संदेश
वैसे तो मैं प्रोफेशन से टीचर हूं। साल 2006 में मैने प्राथमिक विद्यालय बिसौला में सहायक अध्यापक पद पर ज्वाइन किया था। बचपन में कठपुतली का खेल देखती थी तो मचल उठती थी, आखिर निर्जीव सी कठपुतली कैसे सार्थक संदेश दे सकती है। बस वहीं से मैंने ठाना कि बस कठपुतली को जागरूक की कड़ी बनाउंगी। पहले तो मैंने इसी कठपुतली के जरिए खेल-खेल में स्कूल के बच्चों को विज्ञान के नियम समझाए। कठपुतली कला अच्छे से समझने के लिए मैंने 2009 में सांस्कृतिक स्तोत्र एवं प्रशिक्षण केंद्र उदयपुर( राजस्थान) से शिक्षा में कठपुतली का योगदान विषय पर ट्रेनिंग ली। बस तभी से कठपुतली के साथ जागरुकता फैलाने का सफर शुरू हो गया है।
वैसे सरकारी स्कूलों में बच्चों के ड्रॉप आउट की बड़ी समस्या है। कई कारणों से बच्चे स्कूल आना छोड़ देते हैं। मैंने भी यही टास्क असेप्ट किया, कि उन बच्चों और पेरेंट्स को समझाया जाए, मैं अपनी टीम के साथ गांव-गांव गई, कठपुतली शो के जरिए बच्चों को नाटक और गीत सुनाए। इसका असर यह हुआ कि बच्चों में स्कूल आने की ललक जगी और पेरेंट्स भी शिक्षा का महत्व समझने लगे। अब इस सफर में करीब पांच हजार से ज्यादा बच्चे वापस स्कूल आ गए हैं। बढ़ रही है समझ
स्कूल ड्रॉप आउट के अलावा मैं कठपुतली के माध्यम से महिलाओं को मासिक धर्म, बेहतर स्वास्थ्य और महिला अधिकारों के बारे में जागरूक किया है। कठपुतली के जरिए मनोरंजन भी होता है और जागरूकता भी फैलती है। महिला अधिकारों के बारे में भी गांव गांव जाकर जागरुकता फैला रही हूं। वैसे अभी मैं ब्लॉक सरधना के उच्च प्राथमिक विद्यालय भरौटा में मैं सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात हूं। एकेडमिक रिसोर्स पर्सन (विज्ञान) ब्लॉक दौराला में कार्य कर रही हूं।
40 लोगों की टीम
मेरे साथ अभी 40 लोगों की टीम है। जो गांव गांव जाकर कठपुतली के जरिए लोगों को जागरूक कर रही है। अपने ट्रेनिंग प्रोग्राम में मैं अब तक करीब 1200 टीचर्स को भी कठपुतली की ट्रेनिंग दे चुकी हूं, ताकि वो आसपास के लोगों को जागरूक कर सकें।
वैसे देश में चार प्रकार की कठपुतली हैं, पहले गांव में कठपुतली के डांस आकर्षक का केंद्र होते थे, लेकिन अब वे खत्म हो गए हैं। इनमें धागा पुतली, दस्ताना पुतली, छड़ पुतली और छाया पुतली होती है। मैं और मेरी टीम दस्ताना पुतली के जरिए विभिन्न विषयों पर आधारित कविताएं, नाटक आदि के जरिए लोगों को जागरूक करती है। इसके अलावा कन्या भ्रूण हत्या, पोलियो उन्मूलन, साक्षरता, बेटियों की शिक्षा जैसे मुद्दे पर कठपुुतली के नाटक अब लोगों को जागरूक कर रहे हैं। अब यही सफर जीवन का आधार बन गया है।