वर्किंग पेरेंट्स बच्चों को नहीं दे पा रहे समयबच्चों पर पड़ रहा असर अनदेखी के चलते बच्चों में पनप रहा इमोशनल ट्रॉमा बढ़ रहा अग्रेशन और स्ट्रेस। इमोशनल और फिजिकल ग्रोथ हो रही प्रभावित 8 हजार केस काउसंलर्स के पास पहुंच रहे हैं हर महीने। 30 प्रतिशत केस में वर्किंग पेरेंट्स के बच्चों पर पड़ रहा असर।

केस 1 : बच्चे में बढ़ा फ्रस्टेशन
अंकुर और उनकी पत्नी सीमा बैंक अधिकारी है। सुबह से रात तक काम में बिजी रहते हैं। एक बेटा राहुल दस साल का है। राहुल की देखभाल के लिए नैनी है। पेरेंट्स की समय की कमी और प्यार की कमी के कारण राहुल लगातार अग्रेशन में रहने लगा। पेरेंट्स ने काउंसलर की मदद ली। पता चला कि वह फस्ट्रेस रहता है। उसका व्यवहार पूरी तरह से निगेटिव हो गया है। उसने काउंसलिंग के दौरान बताया कि वह हर जगह मम्मी पापा को मिस करता है लेकिन वह उसे समय ही नहीं दे पाते हैं।

केस 2 : फिजिकल ग्रोथ पर असर
13 साल की भावना के पेरेंटस भी वर्किंग है। घर में सभी सुविधाएं हैं, लेकिन पेरेंट्स की तरफ से उसे पर्याप्त देखभाल और सपोर्ट नहीं मिलता। पेरेंट्स बस खानापूर्ति करते हैं। ऐसे में उसकी इमोशनल और फिजिकल ग्रोथ पर इसका सीधा असर आने लगा। उसने बाहर जाना छोड़ दिया। लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया। घर से बाहर नहीं निकलती। बस स्कूल से घर तक सीमित रहने लगी। काउंसलर के पास पहुंचे तब उसकी पूरी समस्या सामने आई।

मेरठ (ब्यूरो)। न्यूक्लियर फैमिली और वर्किंग पेरेंट्स के चैलेंज कम नहीं हैं। लाइफ स्टाइल मैंटेन करने के चलते पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड नहीं कर पा रहे हैं। इसका असर बच्चों की वेलबीइंग और ग्रोथ पर पड़ रहा है। वह इमोशनल ट्रॉमा के साथ बड़े हो रहे हैं। इससे उनकी फिजिकल और इमोशनल और मेंटल ग्रोथ पूरी तरह से प्रभावित हो रही है।

पेरेंट्स की बात नहीं सुन रहे बच्चे
स्वास्थ्य विभाग के तहत नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में हर महीने तकरीबन आठ हजार केस काउसंलर्स के पास पहुंच रहे हैं। इनमें 30 प्रतिशत केस ऐसे ही पेरेंट्स के हैं। बच्चों में अग्रेशन, स्ट्रेस, जिददीपन, इमोशनल ट्रामा, बच्चों के द्वारा पेरेंट्स की बात न सुनने जैसी समस्याएं सामने आ रही है। काउंसलर्स का कहना है कि वर्किंग कल्चर और लाइफ स्टाइल ने काफी कुछ बदल दिया है। पेरेंट्स के ऊपर कामकाज का अतिरिक्त दबाव है, बच्चों को बेहतर देने की ख्वाहिश में वह उन्हें समय ही नहीं दे पा रहे हैं।

पेरेंट्स का सपोर्ट जरूरी
एक्सपटर्स बताते हैं कि पेरेंट्स अगर बच्चों को समय देते हैं या उनके साथ बातचीत करते हैं तो उनमें भावनात्मक विकास होता है। वे अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से व्यक्त कर पाते हैं और मानसिक रूप से मजबूत होते हैं। वहीं बच्चे अगर यह महसूस करते हैं कि उनके माता-पिता उनके साथ हैं और उनकी परवाह करते हैं, तब बच्चों में तनाव, आक्रामकता और अवसाद जैसी समस्याएं कम होती है।

ऐसे करें मैनेज
पेरेंट्स टाइम मैनेजमेंट करना सीखें।
बच्चों के साथ खेलें, उनके शौक को बढ़ावा दें।
बच्चों के साथ संवाद बनाएं रखें।
बच्चों के इमोशनल ट्रॉमा और स्ट्रेस को समझें ।
बच्चों को उनकी भावनाएं व्यक्त करना सिखाएं।
निगेटिव फीलिंग से निपटने के लिए उन्हें योग, ध्यान, या संगीत, डांस, आर्ट सिखाएं।

बच्चों के साथ अब काफी समस्याएं आने लगी है। शुरु से ही वह जिद्दी हो जाते हैं। पेरेंट्स काम भी बच्चों के लिए ही करते हैं।
हिमानी, पेरेंट

पहले घर में काफी लोग होते थे। पेरेंटिंग आसान थी। अब ऐसा नहीं है। बच्चों में तुरंत अग्रेशन आ जाता है। यह काफी चिंता का विषय है।
जया, पेरेंट

बच्चों को पेरेंट्स घर पर प्यार और समर्थन जरूर दें। इससे उनका दूसरों के साथ तालमेल और कम्यूनिकेशन मजबूत होता है। उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है। बच्चे हर बात की अहमियत समझ पाते हैं।
डॉ। विभा नागर, क्लीनिकल काउंसलर

Posted By: Inextlive