Meerut News : पापा जी, कभी हंस भी लिया करो
मेरठ (ब्यूरो)। पेरेंट्स या परिजनों का बच्चों के सामने लडऩा झगडऩा, गाली-गलौज करना, चिल्लाना उनके दिमाग पर गहरा असर छोड़ रहा है। इससे न केवल बच्चों की मेंटल हेल्थ बल्कि न्यूरोलॉजिकल ग्रोथ भी प्रभावित हो रही है। तनावपूर्ण माहौल से बच्चों के न्यूरॉन्स स्ट्रक्चर और कार्यप्रणाली प्रभावित होने लगी है। उनमें इमोशनल डिस्बैलेंस, डिसीजन मेकिंग, सोशल इंट्रेएक्शन, सेल्फ कंट्रोल के समीकरण बिगड़े हुए मिल रहे हैं। जिला अस्पताल के मनकक्ष में ऐसे कई मामले हर दिन पहुंच रहे हैं। एक्सपट्र्स का कहना है कि बच्चों के सामने पेरेंट्स का लडऩा, एब्यूसिव बिहेवियर, हिंसक व्यवहार उनके दिमाग के न्यूरॉन्स में बदलाव कर देते हैं। इससे उनकी ओवलऑल ग्रोथ प्रभावित हो जाती है।
बढ़ सकता है स्ट्रेस हार्मोन
एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर बच्चे तनावपूर्ण माहौल में रहते हैं, तो उनके दिमाग में कॉर्टिसोल यानी स्ट्रेस हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। अगर कॉर्टिसोल लंबे समय तक बढ़ा हुआ रहता है, तब दिमाग के हिप्पोकैंपस जिसे याददाश्त और सीखने की क्षमता से जुड़ा क्षेत्र भी कहते हैं को नुकसान पहुंचा सकता है। दिमाग में एमिग्डाला जो डर और तनाव से जुड़ी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है, अधिक सक्रिय हो जाता है। जिससे बच्चे डरपोक, अग्रेसिव और स्ट्रेसफुल हो जाते हैं।
हो सकता है इमोशनल डैमेज
न्यूरोसाइकेट्रिस्ट के अनुसार लगातार हिंसक माहौल में रहने से बच्चों के प्रीफ्र ंटल कॉर्टेक्स पर खराब प्रभाव पड़ता है। दिमाग के इस हिस्से का काम तर्क, निर्णय, और सेल्फ कंट्रोल करना होता है। लगातार तनावपूर्ण माहौल में रहने से इसका विकास बाधित हो जाता है। जिससे बच्चों में समस्या-सुलझाने और भावनात्मक नियंत्रण में मुश्किलें आ जाती है।
काउसंलर्स बताते हैं कि तनाव की वजह बच्चों के न्यूरॉन्स के बीच की सिनैप्टिक कनेक्शन की कनेक्टिविटी कमजोर हो जाती है। जिससे बच्चे का संज्ञानात्मक विकास प्रभावित होता है। इसका असर उनकी सीखने, याद रखने और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर पड़ सकता है। सामाजिक कौशल का कमजोर होना
एक्सपट्र्स के मुताबिक बच्चे अगर लंबे समय तक तनावपूर्ण माहौल में रहते हैं तब उनका दिमाग किसी भी स्ट्रेस को खतरा मानना शुरू कर देता है। इससे उनमें सहानुभूति और दूसरों के साथ जुड़ाव जैसे इमोशन खत्म हो जाते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
पॉजिटिव पेरेंटिंग पर ध्यान दें
घर का माहौल पॉजिटिव रखें
बच्चों के सामने किसी भी तरह की लड़ाई या हिंसक व्यवहार से बचें
कोई समस्या है तो उसका समाधान शांति और संवाद से करें
पेरेंट्स अपने स्ट्रेस और गुस्से को कंट्रोल करना सीखें
जरूरत हो तो किसी थेरेपी या काउंसलर की मदद लें
डॉ। रवि राणा, न्यूरोसाइकेट्रिस्ट बच्चे सेंसेटिव होते हैं। वह हर बात अपने पेरेंट्स से ही सीखते हैं। पेरेंट्स को ही वह रोल मॉडल मानते हैं। अगर पेेंरेंट्स का व्यवहार एब्यूजिव है, तब बच्चों की भी इमोशनल और मेंटल ग्रोथ उसी तरह से होती है। बच्चों के न्यूरॉन्स कम उम्र में ही बिगड़ जाते हैं और कई तरह नकारात्मक प्रभाव उनमें आ जाते हैं।
डॉ। विभा नागर, क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट तनावपूर्ण माहौल में अगर बच्चों की परवरिश होती है तब उनमें खुद को असुरक्षित और अयोग्य समझने की मानसिकता पनप जाती है। कुछ बच्चे गुस्सैल हो जाते हैं, समाज से दूरी बना लेते हैं। उनमें डिप्रेशन, एंग्जायटी, और पीटीएसडी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
डॉ। नवरत्न गुप्ता, एचओडी पीडियाट्रिशियन डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज