हमारा स्कूल आपके घर से बहुत दूर है, यहां आपके बच्चे का एडमिशन नहीं हो सकता!
केस- 1
शास्त्रीनगर निवासी एक पेरेंट्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वहां के ही एक बड़े स्कूल में उनके बेटे का नाम आरटीई के तहत लॉटरी में आया था। लेकिन स्कूल ने डॉक्यूमेंट अधूरे होने का बहाना बनाकर एडमिशन लेने से मना कर दिया है।
सदर रंजीतपुरी निवासी एक पेरेंट्स ने बताया कि वहां के दो स्कूलों ने स्कूल से घर की दूरी नियमों से ज्यादा बताकर उनके बच्चे काएडमिशन लेने से मना कर दिया। केस- 3
मोदीपुरम निवासी एक पेरेंटस ने बताया कि वहां के एक स्कूल ने कागाजों में कमी बताकर उनके बेटे का एडमिशन देने से मना कर दिया है।
मेरठ (ब्यूरो)। देश में 6 से 14 वर्ष के हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 बनाया गया। यह पूरे देश में अप्रैल 2010 से लागू किया गया। मगर प्राइवेट स्कूल घर से स्कूल की दूरी अधिक, डायस कोड, सीटें फुल जैसे तरह-तरह के बहाने बनाकर शिक्षा के अधिकार यानी आरटीई के तहत एडमिशन से दूरी बना रहे हैैं। आंकड़ों के मुताबिक मेरठ जनपद में 76 ऐसे स्कूल हैं, जिनकी शिकायत लेकर पेरेंट्स बीएसए कार्यालय पहुंच रहे हैैं।
चक्कर काट रहे पेरेंट्स
एक तरफ स्कूलों में साधारण तौर पर दाखिले के लिए आ रहे स्टूडेंट्स का स्वागत हो रहा है। वहीं आरटीई के अंतर्गत नि:शुल्क दाखिला लेने आ रहे स्टूडेंट्स को गेट से ही स्कूल प्रबंधन कागजों में कोई न कोई कमी या स्कूल की दूरी दायरे से अधिक बताकर वापस भेज रहे हैं। भीषण गर्मी में दूर-दूर से आ रहे बच्चों के पेरेंट्स बीएसए कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। आरटीई के तहत पहली लिस्ट में लगभग दो हजार बच्चों का नाम चयनित हुआ था। बावजूद इसके रोजाना पांच से आठ पेरेंट्स बीएसए कार्यालय अपनी फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं। अभी तक 76 स्कूलों की शिकायतें बीएसए कार्यालय पहुंच चुकी हैं।
मांगा जा रहा डायस कोड
बेसिक शिक्षा विभाग पहुंचे रमेश ने बताया कि उनकी बेटी सुनैना का आरटीई के तहत चयन हुआ है। स्कूल जाने पर उनसे बीएसए विभाग द्वारा जारी किया डायस कोड मांगा जा रहा है। इसे लेकर ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर कार्यालय पहुंचे तो वहां भी बीएसए दफ्तर के लिए टरका दिया गया। बीएसए कार्यालय से बताया गया कि डायस कोड पेरेंट्स से मांगा ही नहीं जाना चाहिए। समस्या का निस्तारण बीईओ कार्यालय स्तर पर हो जाना चाहिए। वहीं, इस मामले में स्कूलों का कहना है कि डायस कोड की समस्या है, इसके बगैर दाखिले में दिक्कत आ रही है।
आरटीई के तहत एडमिशन से बचने के लिए स्कूलों पेरेंट्स को घर से स्कूल की दूरी एक किलोमीटर से अधिक बताकर एडमिशन से बच रहे है। एडमिशन लेने से बचने के चक्कर में स्कूल पेरेंट्स से फिटनेस सर्टिफिकेट, टैक्स रिर्टन, पैन कार्ड आदि विभिन्न तरह के सर्टिफिकेट की मांग कर रहे हैैं। स्कूल पेरेंट्स द्वारा जमा किए गए कागजों में कोई न कोई कमी बताकर एडमिशन लेने से मना कर रहे हैैं। स्कूल अपने यहां आरटीई के तहत सीट फुल हो जाने का बहाना भी बना रहे हैैं। कुछ स्कूल पिछला पैसा सरकार द्वारा नहीं दिए जाने और नुकसान में संचालन की दुहाई देकर एडमिशन लेने से मना कर रहे हैैं।
जीओ मैपिंग भी समस्या
शिक्षा सचिव के आदेशानुसार इन दिनों प्रदेश में स्थित सभी स्कूलों की जीओ मैपिंग की जा रही है। इस कार्य के पूरा होने के बाद पता चल सकेगा कि एक स्कूल से दूसरे स्कूल के बीच की दूरी कितनी है। मगर बहुत से स्कूलों को तो मैपिंग पर भी ठीक से नहीं डाला गया है। इसके चलते दूरी वाला बहाना भी स्कूल आरटीई के तहत बच्चों का एडमिशन लेने से बच रहे हैैं।
यह अधिनियम 6 से 14 साल के बच्चों के लिए है।
जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं, वो निजी स्कूल में 25 प्रतिशत आरक्षित सीट के लिए आवेदन भर सकते हैं।
एक परिवार जिसकी वार्षिक आय 3.5 लाख या उससे कम है, वो आरटीई अधिनियम के तहत सीटों के लिए आवेदन कर सकते हैं।
अनाथ, बेघर, विशेष आवश्यकता वाले बच्चे, ट्रांसजेंडर, एचआईवी संक्रमित बच्चे और प्रवासी श्रमिकों के बच्चे आरटीई अधिनियम के तहत स्कूल में प्रवेश के लिए पात्र हैं। साथ ही अनुसूचित जाती और जनजाति श्रेणी के बच्चे भी आरटीई के तहत आवेदन करने की योग्यता रखते हैं। ये सभी डिसअडवानटेज श्रेणी में आते हैं। एडमिशन के जरूरी दस्तावेज
माता-पिता की सरकारी आईडी
ड्राइविंग लाइसेंस, मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र या पासपोर्ट। बच्चे की आईडी
यह बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट और आधार कार्ड तक सीमित नहीं है। माता-पिता बच्चे की किसी भी और सभी सरकारी दस्तावेजों को प्रस्तुत कर सकते हैं। जाति प्रमाण पत्र
जाति प्रमाण पत्र भी आरटीई प्रवेश के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
भारत के राजस्व विभाग से आय प्रमाण पत्र।
बच्चे को किसी विशेष मेडिकल सुविधा की जरूरत हैं, तो आपको स्वास्थ्य विभाग द्वारा उचित प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। बेघर बच्चे या प्रवासी मजदूरों के बच्चों के मामले में एक हलफनामा तैयार किया जाना चाहिए, जो श्रम विभाग, शिक्षा विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग से जारी किया जाता है। बच्चे की पासपोर्ट साइज फोटो। अगर बच्चा अनाथ है, तो माता-पिता दोनों का मृत्यु प्रमाण पत्र होना चाहिए। प्रवेश के लिए अंतिम तिथि से पहले सभी आवेदन जमा किए जाने चाहिए। क्या है आरटीई के तहत एडमिशन का नियमप्राइवेट स्कूल को 6-14 वर्ष की उम्र वाले गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करनी होती है। मान लीजिए कि जिस प्राइवेट स्कूल में बच्चे को एडमिशन दिलवाना है उसमें 100 सीटें हैं, जिसमें से 25 सीटों पर आरटीई के तहत बच्चों को एडमिशन मिलेगा। ऐसे में ये पॉसिबल नहीं है कि जितने बच्चों ने एडमिशन के लिए अप्लाय किया है, उन सभी को हो जाए क्योंकि एडमिशन प्रोसेस लॉटरी के हिसाब से होता है। आरटीई के उल्लंघन की सजा
अगर प्राइवेट स्कूल 6-14 वर्ष की उम्र वाले गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित नहीं करता, या फिर इस कोटे के अंतर्गत स्कूल में एडमिट हुए बच्चे से फीस लेता है तो बच्चे से वसूली गई फीस से 10 गुना ज्यादा जुर्माना स्कूल पर लगाया जाएगा। स्कूल की मान्यता भी रद की जा सकती है। अगर किसी स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई है और उसके बाद भी स्कूल संचालित किया जा रहा है तो उस पर एक लाख रुपए का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा। इसके बाद के हर दिन का 10 हजार रुपए का एक्स्ट्रा जुर्माना लगाए जाने का भी नियम है। आरटीई एक्ट के तहत अगर कोई भी स्कूल बच्चों की स्क्रीनिंग करता है या माता-पिता का इंटरव्यू लेता है तो उस पर भी 25,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। जुर्माना लगने के बाद स्कूल बार-बार ये गलती दोहराता है तो जुर्माने की रकम को दोगुना कर दिया जाएगा। स्कूल पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। कुछ पेरेंट्स आए थे, उनको आश्वासन दिया गया है कि स्कूलों पर कार्रवाई की जाएगी। कई स्कूलों के प्रिंसिपल को कॉल करके एडमिशन लेने को कहा गया है। यह भी चेताया गया है कि प्रवेश नहीं दिया तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। आरटीई के तहत लॉटरी में चयनित सभी छात्रों का दाखिला विभाग ही सुनिश्चित कराएगा। पेरेंट्स को परेशान नहीं किया जा सकता। अभिभावकों से स्कूल की आरटीई के तहत गैर जरूरी दस्तावेज मांगें जाने की शिकायत मिली है। शिकायत के आधार पर जांच कराई जाएगी। बाकी अगर कोई स्कूल गलत बहाने बनाकर एडमिशन नहीं लेता है या किसी की मैपिंग में कोई दिक्कत है तो उसी सूची बनाकर सीबीएसई व शासन को दी जाएगी।
हरेंद्र शर्मा, प्रवेश प्रभारी, बीएसए विभाग