चार दिन की बारिश में सड़कें बदहाल हो जाती है। इसके तहत सड़कों को दुरुस्त करने के लिए निगम की ओर से व्हाइट टॉपिंग टेक्निक से सड़क बनाई जाएगी।

मेरठ (ब्यूरो)। अब शहर में स्थिति यह है कि ऐसी कोई भी सड़क नहीं है जहां पर गड्ढे न हों। इतना ही नहीं, बारिश में गड्ढे में तब्दील सड़कें हादसों का कारण बन जाती हैं। ऐसे में अब नगर निगम ने सड़कों की हालत सुधारने की पहल की है।

20 साल सड़क रहेगी दुरुस्त
शहर की सड़कों को दुरुस्त करने के लिए विभागीय प्रक्रिया शुरू हो गई है। नगर निगम ने शहर की सड़कों की सूची तैयार कर ली है। साथ ही पेचवर्क से गड्ढे भरने की योजना तैयार की है। नगर निगम के अधिकारियों का दावा है कि व्हाइट टॉपिंग टेक्निक से सड़कों को दुरुस्त किया जाएगा। दरअसल, इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में सड़केें व्हाइट टॉपिंग तकनीक से बनाई गई हैं। दावा है कि इससे सड़कों की उम्र 20 से 25 साल तक बढ़ जाएगी।

शहर में 43 सड़कें जर्जर
बरसात के बाद अगर आप शहर में घूमने निकलें तो हर सड़क पर आपको गड्ढे मिल जाएंगे, लेकिन नगर निगम ने अपने दायरे में मात्र 43 सड़कों को खस्ता हाल सड़कों में शामिल किया है। अब सड़कों को 15 नवंबर से पहले गड्ढा मुक्त बनाने का आदेश आने के बाद विभाग हरकत में आ गया है। इसके लिए निर्माण अनुभाग को जिम्मेदारी सौंपी गई है। निर्माण अनुभाग 43 सड़कों के करीब 44 किमी के दायरे में पेचवर्क करेगा।

व्हाइट टॉपिंग से भरेंगे गड्ढे
बार बार टूटती सड़कों की हालत सुधारने के लिए अब नगर निगम अन्य राज्यों में अपनाई जा रही नई व्हाइट टॉङ्क्षपग तकनीकि का प्रयोग करेगा। मध्य प्रदेश में सफल साबित हो चुकी व्हाइट टॉङ्क्षपग तकनीक से इन चयनित सड़कों पर पैचवर्क किया जाएगा।

मेंटीनेंस का खर्चा बचेगा
विभाग का दावा है कि इस तकनीक में करीब 20 साल तक सड़कें खराब नहीं होंगी। यही नहीं हर साल मेंटीनेंस का खर्चा भी बचेगा। यही नहीं सीमेंट कांक्रीट की नई सड़क निर्माण से इसकी लागत भी एक तिहाई कम होगी। गौरतलब है कि मेरठ में बारिश के कारण कई सड़कें धंस गई हैं। ऐसी सड़कों पर व्हाइट टॉपिंग का उपयोग करने से उनकी लाइफ बढ़ जाएगी।

50 लाख तक की बचत
व्हाइट टॉपिंग तकनीक से बनी सड़क सामान्य डामर रोड की तुलना करीब ढाई गुना महंगी है। अधिकारियों के मुताबिक 7 मीटर चौड़ी एक किलोमीटर टू-लेन डामर रोड पर 30 लाख रुपए खर्च आता है। व्हाइट टॉपिंग तकनीक से इसे बनाने पर करीब 70 लाख प्रति एक किमी का खर्चा आएगा। जबकि नई सीमेंट कंक्रीट की सड़क बनाने पर लागत बढ़कर एक से सवा करोड़ रुपए प्रति किमी तक हो जाती है।

व्हाइट टाङ्क्षपग से सड़क काफी मजबूत बनती है। इसकी उम्र डामर वाली सड़क से कहंी ज्यादा होती और इसको बनाने में खर्च लगभग डामर की सड़क के बराबर ही आता है। कम खर्च में सड़क की उम्र 20 साल से अधिक बढ़ जाती है। इसलिए इस तकनीक का इस बार प्रयोग किया जाएगा।
अमित शर्मा, अधिशासी अभियंता

Posted By: Inextlive