एक नहीं, दो नहीं...14 एसटीपी हैैं, फिर भी गंदगी नालों में ही बहती है
मेरठ (ब्यूरो)। शहर का दुर्भाग्य ही है कि 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) होने के बावजूद गंदगी सीधी सीवर लाइन के जरिए नालों में बहाई जा रही है। यह मेरठ विकास प्राधिकरण और नगर निगम में समन्वय की कमी और खींचतान की वजह से हो रहा है। इसी का नतीजा है कि 2017 से अब तक एमडीए और नगर निगम के बीच लगातार पत्राचार चल रहा है लेकिन सीवर लाइन संचालन का जिम्मा जल निगम लेने को तैयार नहीं है। इसी का नतीजा है कि शहर के नालों में 40 प्रतिशत गंदगी सीवर लाइन से आ रही है और बरसात में यही नाले शहर को डूबाने का काम करते हैं।
378.50 मिलियन लीटर सीवेज
सूत्रों की मानें तो शहर में 378.50 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन उत्पन्न होता है। इसमें से 366.91 एमएलडी नगर निगम क्षेत्र और 11.59 एमएलडी छावनी परिषद क्षेत्र में उत्पन्न होता है। इनके निस्तारण के लिए वर्तमान में 179 एमएलडी क्षमता के 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं लेकिन सरकारी सिस्टम की उदासीनता की वजह से इनका उपयोग ही नहीं हो पा रहा है।
यह है स्थिति
72 से लेकर 220 एमएलडी के 14 एसटीपी एमडीए औ जल निगम के हैैं।
179 एमएलडी एमडीए व जल निगम को मिलाकर सीवेज शोधन क्षमता है।
338 एमएलडी सीवेज प्रतिदिन शहर में निकलता है।
159 एमएलडी सीवेज काली नदी में बिना ट्रीट किए बहाया जा रहा है।
220 एमएलडी का एक एसटीपी स्वीकृत हो चुका है नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत, जो कमालपुर में बनना है।
सीवरेज समेत डायरेक्ट नालों में फेंका जाने वाला कूड़ा हर बरसात में जलभराव का प्रमुख कारण बनता है। इसके कारण नालों की सफाई होने के कुछ घंटों बाद ही दोबारा नालों में गंदगी का ढेर लग जाता है जो कि बरसात में नालों के ओवरफ्लो होने का कारण बनता है। यदि सीवरेज का पानी साफ करके नालों में गिराया जाए तो यह समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। एसटीपी प्लांट के लिए सीएमडीएस से करार है। एसटीपी का अपग्रेडेशन भी हो रहा है। 13 प्लांट पूरी तरह संचालित हैं।
चंद्रपाल तिवारी, सचिव, एमडीए