पौधे तो खूब लगाए, ये ठीक था, पर उनकी देखभाल तो कर लेते
मेरठ ब्यूरो। हरियाली हम सभी की जरूरत है। लिहाजा हमें अपने जीवन में कम से कम 5 पौधे जरूर लगाने चाहिए, ताकि धरती मां खूबसूरती को बढ़ा सकें। हालांकि, शहर को हरा-भरा करने के लिए वन विभाग हर साल बड़े पैमाने पर पौधरोपण करता है। कई रिकार्ड बनाता है। बावजूद इसके, लगातार वन क्षेत्र सिमटता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधन खत्म होते जा रहे हैं। हालत यह है कि शहर में तीन फीसदी भी वन क्षेत्र नहीं है। पौधों की प्रॉपर देखभाल न होने से पौधे खराब हो जाते हैं। वन विभाग के अभियान के तहत रिकार्ड तो बन जाता है, लेकिन पौधे कागजों में सिमट जाते हैं। पौधरोपण अभियान की इसी सच्चाई को टटोलने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सात दिवसीय &पौधारोपण एक फरेब&य अभियान की शुरूआत की थी। इसके तहत पौधरोपण और सिमटते वन क्षेत्र की प्रॉब्लम पर विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे गए।
सोशल मीडिया पर रखे विचार
शहर में पौधरोपण की हकीकत को लेकर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सोशल मीडिया पर सर्वे पर कराया। इसमें फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम पर भी करीब 200 शहरवासियों ने भी भाग लिया। इनमें से 80 फीसदी लोगों ने माना कि पौधरोपण के साथ-साथ उनके रखरखाव को लेकर सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। 70 फीसदी शहरवासियों ने कहा कि वन विभाग की लापरवाही के कारण हरे पेड़ों की कटान होती है। इसे रोके जाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि बारिश के दिनों में वन विभाग हर साल पौधरोपण अभियान चलाता है। इसमें शहर को हरा-भरा बनाने के लिए पौधे रोपे जाते हैं। इस साल भी 22 जुलाई, 15 अगस्त और 23 अगस्त को करीब 26 विभागों ने करीब 27.91 लाख पौधे रोपे। इसमें से वन विभाग ने करीब 2.72 लाख पौधे रोपे हैं। बीते साल भी हजारों की संख्या में पौधरोपण किया गया था, लेकिन रखरखाव न होने से हर साल 30 फीसदी पौधे सूख जाते हैं। 33 फीसदी का मानक
वैसे तो राष्ट्रीय वन नीति के तहत 33 फीसदी हिस्सा हरा-भरा होना चाहिए। लेकिन यह आंकड़ा मेरठ के लिए नहीं है। मेरठ में सिर्फ 2.67 फीसदी भू-भाग ही वनाच्छादित है। यानि हरियाली को लेकर हम बहुत पीछे हैं। विभागीय आंकड़ों के अनुसार इन पौधों में से 7 लाख पौधे नष्ट हो गए।
ग्रीन बेल्ट भी सिमटी
गौरतलब है कि छह साल पहले तत्कालीन कमिश्नर प्रभात कुमार ने शहरभर में हरियाली विकसित करने के लिए ग्रीन बेल्ट योजना डेवलप की गई थी, लेकिन यह भी लापरवाही की भेंट चढ़ गई। हालत यह है कि ग्रीन बेल्ट गंदगी के बीच गुम हो चुकी है।
करीब दो दर्जन से अधिक ग्रीन बेल्ट पिछले 10 साल में विकसित की गई। इनमें गढ़ रोड, हापुड़ रोड, बाईपास, मंगल पांडेयनगर, शताब्दीनगर, काली नदी आदि की प्रमुख और बड़ी ग्रीन बेल्ट हैं। लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते इनमें से अधिकतर ग्रीन बेल्ट या तो अतिक्रमण के कारण या फिर अवैध निर्माण के कारण गुम हो गई हैं। दोनों तरफ कब्जा
वहीं गढ़ रोड पर हापुड़ अड्डे से मेडिकल कॉलेज तक दोनों तरफ रेहड़ी वालों ने कब्जा जमा लिया है। यहां वाहन भी सडक़ किनारे ही खड़े रहते हैं। नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा कई बार इन पर कार्रवाई की गई, लेकिन कब्जे जस के तस हैं। उधर गांधी आश्रम चौराहे से 100 मीटर दूरी पर सडक़ के दोनों तरफ ट्रांसपोर्ट एजेंसियों ने अपनी गाडिय़ों को पार्क कर कब्जा किया हुआ है। यहां है ग्रीन बेल्ट।।।
गांधी आश्रम से तेजगढ़ी तक
तेजगढ़ी से काली नदी तक
पीवीएस मॉल से तेजगढ़ी
हापुड़ रोड पर एल ब्लॉक चुंगी से बिजली बंबा
बाईपास परतापुर
मंगलपांडेय नगर नाला पटरी
शताब्दीनगर, वेदव्यास पुरी
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क्या शहर में हरियाली बनाए रखने के लिए वन विभाग के साथ आम लोगों को भी पहल करनी चाहिए
हां- 85
नहीं- 10
पता नहीं- 5
हां- 80
नहीं- 15
पता नहीं- 5 क्या शहर में पौधरोपण के बाद ठीक ढंग से रखरखाव नहीं किया जाता है
हां- 74
नहीं- 20
पता नहीं- 6