सीसीएसयू के गणित विभाग में चल रही सात दिवसीय कार्यशाला में डॉ. वेदवीर आर्य ने भारतीयों के गणित में योगदान के कालक्रम की जानकारी दी।

मेरठ (ब्यूरो)। सीसीएसयू के गणित विभाग में चल रही सात दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन का संचालन डॉ। सोनिया गुप्ता ने किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में डॉ। वेदवीर आर्य ने भारतीयों के गणित में योगदान के कालक्रम की जानकारी दी। वे इस समय डीआरडीओ में ज्वॉइंट सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं और इन्होंने इंडियन क्रोनोलॉजी पर पांच पुस्तकें भी लिखी हैंं।

ग्रहण के सही समय का पता
उन्होंने बताया कि माया सुर सिद्धांत 22 फरवरी 6768 ईसा पूर्व से हैं। उन्होंने बताया कि प्रथम बार भारतीयों ने ही चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण होने के सही समय का पता लगाया था। पाई को अपरिमेय संख्या, शून्य का आविष्कार, गोलाकार त्रिकोणमिति सभी भारतीय गणितज्ञों की देन है। अल्जेब्रा शब्द भी भारतीय वेदों द्वारा ही लिया गया है।

अपरिमेय संख्या का प्रयोग
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में डॉ। देशपांडे ने शुल्ब सूत्र और अपरिमेय संख्याओं की अनुमानित मान पर अपना भाषण दिया। वे अभी वर्तमान में नागपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि शुल्ब सूत्र में ही अपरिमेय संख्या का प्रयोग किया गया है और पाई का अनुमानित मान भी शुल्ब सूत्र में ही दिया गया है। जबकि पाश्चात्य गणित में अपरिमेय संख्या पाई को मान्यता 19वीं में मिली।

रचना का वर्णन भी
इसी क्रम में उन्होंने बताया कि वर्ग की रचना का वर्णन भी बोधायन शुल्ब सूत्र में दिया गया है। इस दौरान रश्मि, रीमा गर्ग, नमन, कपिल समरेश ने कार्यकारिणी समिति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है। मेरठ कॉलेज मेरठ के डॉ। अशोक कुमार भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

Posted By: Inextlive