एक समय था जब नगर निगम भी शहरवासियों का सुगम इलाज करता था। निगम के पास खुद के क्लीनिक और अस्पताल थे। पर समय क्या बदला निगम के अस्पताल और क्लीनिक खुद बीमार हो गए।

मेरठ ब्यूरो। अब हालत यह है कि न तो डॉक्टर्स हैं और न ही कोई सुविधाएं। यहां पर इलाज की सारी संभावनाएं बेमानी हो गई है। यानि निगम के अस्पतालों को खुद इलाज की जरूरत आ पड़ी है। अब सवाल यह है कि जब निगम की ओर से क्लीनिक और क्लीनिक के कर्मचारियों की तनख्वाह पर बकायदा पैसा खर्च हो रहा है तो व्यवस्थाएं क्यों दुरुस्त नहीं है। अस्पताल खंडहर हो चुके हैं और डॉक्टर नदारद, ऐसे में इन खंडहर बिल्डिंग पर आम जनता का पैसा बर्बाद हो रहा है।

ये थी निगम की चिकित्सीय सुविधाएं-
- शारदा रोड स्थित नगर निगम का आयुर्वेदिक अस्पताल
- साकेत गोल मार्केट स्थित नगर निगम का होम्योपैथिक अस्पताल
- सूरजकुंड स्थित संक्रामक रोग अस्पताल
- पुरानी तहसील स्थित कोतवाली के बराबर में एलोपैथिक क्लीनिक

गुम हो गए 70 साल पुराने क्लीनिक
गौरतलब है कि करीब 70 साल पहले साल 1958 में जब नगर निगम नगर पालिका हुआ करता था तब नगर पालिका ने शहर के लोगों के स्वास्थ्य की बेहतरी और संक्रामक रोगों के प्रसार की स्थिति में बचाव के लिए सूरजकुंड पर संक्रामक रोग अस्पताल, पुरानी तहसील यानी कोतवाली के बराबर में एलोपैथिक, शारदा रोड पर आयुर्वेदिक और सिविल लाइन क्षेत्र के साकेत में होम्योपैथिक डिस्पेंसरी खोली थीं। इन क्लीनिक का काम ना केवल मरीजों को देखना था बल्कि किसी संक्रमण के कारण मरीज बढऩे पर शहर में ब्लीचिंग पाउडर और फॉगिंग जैसे कार्य किए जाते थे। जहां दिन निकलते ही मरीजों की कतारें लग जाती थीं। इतना ही नही 2017 तक पूर्व महापौर हरिकांत अहलुवालिया के कार्यकाल तक डिस्पेंसरी में मरीजों को दवाइयां मिलती रहीं। लेकिन अब डिस्पेंसरी बंद होने से मरीज भटकते हैं।

1994 में सरकार ने सेवा कर दी बंद
साल 1994 में नगर विकास विभाग ने नगर पालिका के समय संचालित की गई चारों डिस्पेंसरी को अयोग्य घोषित कर दिया। चिकित्सकों और अन्य स्टाफ की तैनाती पर रोक लगा दी। लेकिन पूर्व महापौर हरिकांत अहलुवालिया के प्रयास के चलते दोबारा डिस्पेंसरी खोली गई। इसके बाद बोर्ड बैठक में कई बार अस्पताल संचालन के लिए दवाइयों का बजट पास किया गया और चिकित्सकों की तैनाती के लिए शासन को पत्र भेजे गए, लेकिन चिकित्सकों की तैनाती नही हुई। इससे अलग खास बात यह है कि अस्पताल के लिए फार्मासिस्ट से लेकर चिकित्सकों तक के पद अभी तक जारी है। अस्पताल का स्टॉफ निगम के अलग अलग विभाग व डिस्पेंसरी में काम कर रहा है।

नए डॉक्टर नहीं मिले
सूरजकुंड स्थित संक्रामक रोग अस्पताल और डिस्पेंसरी पर शहर ही नहीं आसपास के गांवों के लोग भी हैजा, टिटनेस और मलेरिया जैसी बीमारियों के इलाज के लिए पहुंचते थे। अस्पताल से मलेरिया और हैजा जैसे संक्रामक रोग के रोकथाम के लिए कार्यक्रम चलाए जाते थे। इस अस्पताल पर आखिरी चिकित्सक डॉ। वीके शर्मा रहे। इनके रिटायर होने के बाद अस्पताल बंद हो गया और तब से लेकर अभी तक ना तो चिकित्सक की नियुक्ति हुई और ना ही अस्पताल के दोबारा संचालन का प्रयास किया गया। कुछ ऐसा ही हालत साकेत गोल मार्केट स्थित नगर निगम का होम्योपैथिक अस्पताल का है जहां हमेशा ताला लगा रहता है।

दूर दराज से आते थे मरीज
शारदा रोड पर सरदार पटेल स्कूल के निकट आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी में नगर महापालिका की तरफ से आयुर्वेदाचार्य डॉ। ताराचंद गोयल तैनात रहे। यह डिस्पेंसरी पूरे शहर में मशहूर थी। पुरानी तहसील के निकट अभी भी एलोपैथी डिस्पेंसरी बनी है, लेकिन अब यहां महिलाओं का टीकाकरण किया जाता है। इस डिस्पेंसरी में डॉ। जीएस गुप्ता और डॉ। एसएस मित्तल आदि चिकित्सकों ने सेवाएं दी थीं। वहीं तहसील के पास कोतवाली के बराबर में एलोपैथिक क्लीनिक है। जिसमें सूरजकुंड संक्रामक रोग अस्पताल का ही स्टाफ शिफ्ट किया गया था लेकिन वह भी अब जीर्ण हालत में है।

डॉक्टर्स की कमी के कारण ये डिस्पेंसरी बंद हुई। सुविधाओं की भी कमी है जिस कारण से अब मरीज भी नही आते हैं। इनको दोबारा संचालित करने पर विचार किया जाएगा।
- डॉ हरपाल सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी

Posted By: Inextlive