आपके बच्चों को डरपोक बना रहे हॉरर गेम्स
मेरठ (ब्यूरो)। आजकल ऐसे केस सामने आ रहे हैं जिनमें बच्चों को अभिभावकों के लिए जो कामकाज में अत्यधिक व्यस्त रहते हैं और उनके बच्चे अधिकांश समय मोबाइल में व्यस्त है। लिहाजा मनोवैज्ञानिकों के पास इन दिनों रोजाना ऐसे केस सामने आ रहे हैं, जिनमें बच्चे मोबाइल में हॉर्रर गेम्स खेलकर डर रहा है। इस बीमारी पर मनोवैज्ञानिकों ने चिंता जताई है।
एक माह में 25 से ज्यादा केसहालत यह है कि एक ओर पेरेट्स की व्यवस्था बच्चों से उनका बचपन ही नहीं छीन रही है, बल्कि विकास और स्पोट्र्स एक्टिविटी से दूर कर रहे हैं। मनोरोग चिकित्सकों के पास रोज दो से तीन केस ऐसे बच्चों के पहुंच रहे हैं, जो मोबाइल गेम की लत से मानसिक बीमार हो गए हैं। वे धीरे धीरे मोबाइल मोनिया का शिकार हो रहे हैं।
दुष्परिणाम बता रहे मनोवैज्ञानिक
शहर के मनोरोग विशेषज्ञ अभिभावकों को मोबाइल गेमिंग के दुष्परिणाम बता रहे हैं। वहीं, शहर मनोवैैैैज्ञानिकों के पास एक माह में 25 से ज्यादा केस आ रहे हैं। इनमें बच्चे भूत प्रेत, जादू टोना और क्राइम से संबंधित इंवस्टिगेशन गेम्स खेलकर डर रहे हैं। हालत यह है कि बच्चे स्कूल तक जाने से डर रहे हैं। इनमें डेथ पार्क, हॉरर हॉस्पिटल, एविलोन, इनटू द डेथ टू, किलर पजल्स जैसे हॉर्रर गेम्स हैं। जो बच्चों के मनोविज्ञान को प्रभावित कर रहे हैं।
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ। पराग सिंह ने मोबाइल पर सबसे ज्यादा समय तक बच्चे हॉरर गेम्स खेलते हैं। इससे वे मानसिक रोगी हो रहे हैं। ऐसे बच्चों के केस बढ़ गए हैं। बीते छह माह से हर महीने 10 से 15 मामले नार्मल ही आ रहे हैं। ऐसे बच्चों को दवा, फैमिली थैरेपी, काउंसलिंग, व्यवहारिक थैरेपी तो दे ही रहे थे। साथ ही उन्हें ऐसे ग्रुप ज्वाइन करवा रहे हैं। इससे वो स्पोट्र्स एक्टिविटी में पार्टिसिपेट करें। मोनिया डिसऑर्डर की बीमारी
मोबाइल पर बच्चे हॉरर गेम्स खेल रहे हैं। इससे वे मेनिया डिसऑर्डर यानि मानसिक उन्माद से ग्रसित हो रहे हैं। इस बीमारी में बच्चे खुद को करेक्टर में ढाल लेते हैं। खुद को वही समझने लगते हैं। वो करेक्टर उन पर हावी होने लगता है। कुछ दिनों बाद उसके मन में डर बैठ जाता है। बच्चे दिन रात उसी के बारे में सोचते हैं। यहां तक की बच्चे डर की वजह से स्कूल तक नहीं जाते हैं।
डॉ अनीता मोरल, मनोवैज्ञानिक
पढ़ाई से फोकस हट रहा है
साइकोटिस और अन्य मानसिक बीमारी बच्चों पर असर कर रही हैं। पढ़ाई से उनको फोकस हट रहा है। अनिद्रा और चिड़चिड़ापन घर में रहने का मन नहीं करना, स्कूल न जाना, अगर जाना तो किसी से बात न करना गुमसुम रहना है। ये लक्षण होते हैं मोबाइल मोनिया के, कई केस ऐसे आ रहे हैं इनमें बच्चा हॉर्रर गेम्स से डरकर स्कूल तक नहीं जाता है।
डॉॅ पूनम देवदत्त, मनोवैज्ञानिक एवं करियर काउंसलर
- बच्चों की हर एक्टिविटी का ख्याल रखें
- बच्चों को पर्याप्त समय दें, उनसे बातचीत करें।
- बच्चों से उनकी रुचि के अनुरूप बातें करें। उनके साथ घूमने टहलने जाएं।
- बच्चों को फिजिकल खेलों के प्रति उसे प्रेरित करें। इन बातों का ख्याल रखें टीचर्स
- क्लास में बच्चों को मोबाइल के फायदे ओर नुकसान उदाहरण समेत बताएं
- मां-बाप के बाद टीचर्स की बात ही बच्चे सबसे ज्यादा मानते हैं, इसलिए उन्हें मोटिवेट करें। - बच्चों का फिजिकल एक्टिविटी ज्यादा से ज्यादा पार्टिसिपेशन कराएं
केस-1: अक्सर कांपने लगता है बच्चा
मेरठ के शास्त्रीनगर निवासी एक कारोबारी का बेटा 12 साल का है। वह सुबह से लेकर रात कई घंटे तक मोबाइल पर गेम्स खेलता है। हाईस्पीड कार गेम्स से हुई शुरूआत अब क्राइम इंवेस्टिगेटिंग तक पहुंच गई है। हालत यह है वह कई सारे हॉरर गेम्स भी खेलता है। इस कारण वह मानसिक रोगी हो गया। अक्सर डरने लगता है। कांपने लगता है। अकेले रहने से डरने लगा है। स्कूल जाने से भी कतरने लगा है।
कंकरखेड़ा निवासी एक दंपत्ति के बच्चे को भी ऐसी बीमारी हो गई है। पति सीए हैं तो पत्नी वर्किंग हैं। दोनों का बिजी शेड्यूल रहता है। इसलिए उनके 11 साल के बेटे को मोबाइल गेम्स की लत पड़ गईं है। वह सुबह से शाम तक कम्प्यूटर या मोबाइल पर गेम्स खेलता है। इसका दुष्प्रभाव दिखने लगा है। घर में कोई गेस्ट आता है, सबको बोलता है मैं सुपरमैन हूं। मैं भूत हूं। परिजन उसे चिकित्सक के पास ले गए तो पता लगा वह मानसिक बीमार है।