ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतें इतिहास बताती हैैं, तो भला हम इन्हें संजोते क्यों नहीं
मेरठ (ब्यूरो)। हर साल 18 अप्रैल को ऐतिहासिक भवन सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है। मगर जिले में मंडलायुक्त कार्यालय, जल निगम, पीडब्ल्यूडी, खाद्य नियंत्रक, इंडियन बैंक समेत एक दर्जन कार्यालय ऐसे भवनों में संचालित हो रहे हैं जिनका शानदार इतिहास है। आज तक इन्हें हेरिटेज बिङ्क्षल्डग की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सका है। इसका बड़ा कारण है, रख-रखाव का बजट और इच्छाशक्ति की कमी।
शासन-प्रशासन की लापरवाही
गौरतलब है कि 1857 की क्रांति का इतिहास संजोए मेरठ में न सिर्फ क्रांति से जुड़े बल्कि क्रांति से भी सदियों पुराने एतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले विरासत स्थल मौजूद हैं। रावण की ससुराल, राजा परीक्षित की नगरी, द्रोपदी व सती की स्थली, कौरव व पांडवों की राजधानी के रूप में प्रचलित हस्तिनापुर को सभी जानते हैैं। मुगलिया सल्तनत के मशहूर बादशाहों से लेकर क्रांति की कहानी भी यहां के विरासत स्थल बताते हैं। हालांकि आज शासन-प्रशासन की लापरवाही के चलते इतिहास संजोए कई इमारतें गुमनामी के अंधेरे में खोती जा रही है।
सरधना चर्च
बेगम समरू द्वारा माता मरियम को समर्पित यह चर्च बनवाया गया था। यह रोमन कैथोलिक चर्च है। इसके निर्माण के बारे में अलग दावे हैं। इतिहासकार केएम मुंशी की किताबों में इसके निर्माण का वर्ष 1809 है। कुछ दस्तावेजों में 1820 और 1822 लिखा गया है। यहां कृपाओं की माता की चमत्कारिक तस्वीर है। एएसआइ द्वारा संरक्षित स्मारक होने के कारण यहां पर हाल ही में जी-20 का लोगो भी प्रदर्शित किया गया था। यहां देश-विदेश से श्रद्धालु व पर्यटक आते रहते हैं।
मोहल्ला तीरगरान स्थित इस मंदिर का निर्माण 1801 में हुआ था। इसका निर्माण राजा हरसुख राय ने कराया था। मंदिर की कलाकृति दर्शनीय है। इसकी खास देखभाल की जाती है। शाहपीर की दरगाह
नूरजहां ने हजरत शाहपीर की याद में इस दरगाह का निर्माण 1620 में कराया था। शाहपीर रहमतुल्ला औलिया के आशीर्वाद से जहांगीर की मदिरा पीने की आदत छूटी थी। यह लाल पत्थर से बनाया गया आकर्षक और कलात्मक दरगाह है। बेलवेडेरे कांप्लेक्स
1858 में बनाया गया यह भवन अंग्रेजी शासनकाल में यहां पर रायल होस का आर्टिलरी मेस था। बाद में अंग्रेजी सेना का वित्त विभाग संचालित होने लगा। वर्तमान में यहां पर भारतीय सेना का सीडीए हेडक्वार्टर है। यह भवन भव्य है और कलात्मकता के लिए जाना जाता है।
प्रिंस आर्थर पैलेस
यह अंग्रेजी शासन के समय का 55वां शॉपिग माल था। महारानी विक्टोरिया के तीसरे पुत्र प्रिंस आर्थर के नाम पर इसका नामकरण हुआ। वर्तमान में इसमें इंडियन बैंक संचालित है। इसका निर्माण 1886 के आसपास हुआ था।
शहीद स्मारक के पास स्थित नादिर अली महल से वाद्य यंत्रों का व्यवसाय होता था जिसका नेतृत्व अंग्रेजी सेना में म्यूजीशियन नादिर अली करते थे। इस भवन का निर्माण वर्ष 1885 बताया जाता है। यहां अभी भी वाद्य यंत्र का व्यवसाय होता है। बहुत से लोग यहां लीज पर रह रहे हैं। मुस्तफा कैसल
नवाब मोहम्मद इशाक खान ने 1860 में इसका निर्माण नवाब मुस्तफा खान शेफ्ता की याद में बच्वाया था। नवाब मुस्तफा अच्छे कवि और आलोचक थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन के समय यह राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था। यहां पर महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना मोहम्मद अली, मोहम्मद अली जिन्ना आदि यहां रुके थे।
ये भी ऐतिहासिक स्थल
नौचंदी मैदान के पास स्थित मां चंडी देवी मंदिर और बाले मियां की मजार समेत शहीद स्मारक व संग्रहालय, आबू का मकबरा, शाही ईदगाह, जामा मस्जिद, अशोक की लाट, तीर्थंकर शांतिनाथ मंदिर तीरगरान, टाउन हाल, तिलक पुस्तकालय, जेल चुंगी स्थित जेम्स व्हाइट का स्मारक, केसरगंज में लाखौरी ईंटों से बनी पुरानी जेल, गंगा मंदिर, कागजी बाजार, पुराना सेंट जोंस चर्च, सेंट जोंस कब्रिस्तान, कंपनी बाग, रेस कोर्स, सरधना में रोमन कैथोलिक चर्च, बेगम समरू का पुराना महल, माता मरियम चर्च आदि।
पुराने समय में मेरठ शहर में प्रवेश के लिए 9 दरवाजे हुआ करते थे। इन दरवाजों से ही मेरठ में प्रवेश किया जा सकता था। 1857 की गदर के दौरान अधिकतर दरवाजे तोड़ दिए गए थे बाकि कुछ अतिक्रमण में गुम हो चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी कुछ दरवाजे जर्जर हाल में आज अपनी बुलंदी को बयां कर रहे हैं। इनमें दिल्ली गेट, लिसाड़ी गेट, शाहपीर गेट, सोहराब गेट, जाटवगेट, बागपत गेट, खैरनगर गेट शामिल हैं। इसमें सोहराब गेट, शाहपीर गेट और खैरनगर दरवाजा आज भी अपनी बुलंदी को और मजबूती को दर्शा रहा है। मेरठ कॉलेज
अंग्रेजों ने 1892 में मेरठ कालेज की नींव रखी थी। 100 एकड़ में फैला परिसर है। पूर्व में आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध था। 1964 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से संबद्ध हो गया। यूजीसी ने इसे हेरिटेज घोषित किया है।
घंटाघर
1913 में अंग्रेजी हुकूमत ने घंटाघर का निर्माण किया था। इंग्लैंड से वेस्ट एंड वाच कंपनी की घड़ी 1914 में लगाई गई थी। उस समय हर घंटे बाद इसके पेंडुलम की आवाज दूर तक सुनाई देती थी। समय जानने का आधार घंटाघर की घड़ी हुआ करती थी, लेकिन आज घंटाघर भी अतिक्रमण की चपेट में है।
सदर स्थित रामायणकालीन बिल्वेश्वर महादेव मंदिर और सूरजकुंड स्थित सती मंदिर की स्थापत्य शैली मराठा है। बिल्वेश्वर महादेव मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की यह संरक्षित इमारत है। मान्यता यह है कि मंदोदरी यहां पूजा करने आती थीं। औघडऩाथ मंदिर धार्मिक महत्व के साथ इतिहास भी समेटे हुए है। यह केवल आस्था का केंद्र ही नहीं है, बल्कि यहां मराठा इतिहास में अनेकों पेशवाओं की विजय का उल्लेख मिलता है। आबू का मकबरा
दिल्ली रोड केसरगंज मंडी से कुछ दूरी स्थित यह मकबरा 1688 में नवाब अबू मोहम्मद खान के परिवार ने बनवाया था। नवाब अबू वही थे जिन्होंने काली नदी से मेरठ तक पानी लाने के लिए नहर का निर्माण कराया। यह नहर आज आबू नाला बन चुकी है। यह मकबरा लाली बलुआ पत्थर से बना था। प्याजनुमा आकार के इस मकबरे में तीन छोटे गुंबदों का निर्माण है। मुगल कला का मकबरा अब बहुमंजिला इमारतों में छिप चुका है। टाउन हाल
इसे अब तिलक हाल कहा जाता है। जिसमें नगर निगम से संबंधित बोर्ड बैठक होती हैं। इसका निर्माण 1886 में हुआ था। सैनी टावर
मेरठ-मवाना रोड पर सैनी गांव के पास यह टावर जार्ज एवरेस्ट ने बनवाया था। 40 फुट ऊंचा यह टावर 180 साल पुराना है। सेंट जोंस चर्च
उत्तर भारत का तीन हजार लोगों के बैठने की क्षमता वाला यह चर्च 1819 में बनाया गया था। संग्रहालय में संरक्षित इतिहास
शहर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को शहीद स्मारक, राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय संजोए हुए हैं। संग्रहालय में 1857 की गदर से लेकर पुरातत्व महत्व के हस्तिनापुर की महाभारत कालीन कला वस्तुएं, बर्तन, औजार, वस्त्र, आभूषण व प्रमुख पत्र भी संरक्षित हैं। नए वित्तीय वर्ष में शहर के कई धार्मिक और ऐतिहासिकों के नवीनीकरण के लिए मुख्यालय प्रस्ताव भेजा है। संभवत इस साल कई स्थलों को मेंटनेंस कर संजोने का प्रयास किया जाएगा।
अंजू चौधरी, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी