यहां तो एसटीपी को ही ट्रीटमेंट की जरूरत है
मेरठ (ब्यूरो)। शहर में 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) होने के बावजूद सीवर का पानी नालों में बह रहा है। इस पानी से वाटर लेवल को रिचार्ज करने की कोई व्यवस्था नहीं है। हालत यह है कि भूमिगत जल स्तर में सुधार होने की संभावना भी कम हो रही है। हालांकि, नगर निगम ने इस बार मेरठ को वाटर प्लस श्रेणी के मानकों को पूरा करने की कार्य योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। इसमें शोधित जल को एकत्र करने के लिए एसटीपी के नजदीक एक बड़ा टैंक बनाया जाएगा। यह योजना समय से पूरी हो गई तो 2024 में मेरठ इस श्रेणी के लिए दावेदारी करने वाला पहला शहर होगा।
प्रयास हो रहे नाकाफी
नालों के गंदे पानी को साफ करने के लिए बायोरेमेडिएशन तकनीक के अंतर्गत आधा अधूरा साफ कर पानी भी काली नदी में मिलाया जा रहा है। कुल मिलाकर भूमिगत जल स्तर को सुधारने के लिए यह प्रयास नाकाफी साबित हो रहे है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के कैंपेन के तहत नालों के पानी की स्थिति को टटोलने की कोशिश हो रही है।
378.50 मिलियन लीटर सीवेज रोजाना
सूत्रों की मानें तो शहर में 378.50 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन उत्पन्न होता है। इसमें से 366.91 एमएलडी नगर निगम क्षेत्र और 11.59 एमएलडी छावनी परिषद क्षेत्र में उत्पन्न होता है। इनके निस्तारण के लिए वर्तमान में 179 एमएलडी क्षमता के 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं लेकिन सरकारी सिस्टम की उदासीनता की वजह से इनका उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। ऐसे में बिना ट्रीट हुए सीवर का पानी नालों में बह रहा है। क्योंकि 2017 से अब तक एमडीए और नगर निगम के बीच लगातार पत्राचार चल रहा है लेकिन सीवर लाइन संचालन का जिम्मा लेने के लिए कोई तैयार नही है। इसी का नतीजा है कि शहर के नालों में 40 प्रतिशत गंदगी सीवर लाइन से आ रही है और इस जल को ना तो संचय किया जा रहा है और ना ही स्टोरेज की कोई व्यवस्था है।
क्या होता है वाटर प्लस
गौरतलब है कि देश में वाटर प्लस सिटी का खिताब अभी तक 10 लाख से अधिक आबादी वाले सात शहरों इंदौर, सूरत, नवी मुंबई, विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा भोपाल और ग्रेटर हैदराबाद के ही पास है,्र लेकिन अब मेरठ भी इस दावेदारी में शामिल होने का प्रयास कर रहा है। वाटर प्लस सिटी का खिताब उन शहरों को दिया जाता है, जो एसटीपी के शोधित जल को दोबारा उपयोग में ला रहे हों। ताकि भूमिगत जल का उपयोग कम हो और जल का स्टोरेशन अधिक रहे। इन शहरों में एसटीपी का शोधित जल पार्कों में पेड़-पौधों की सिंचाई, सड़क पर पानी छिड़काव और औद्योगिक इकाइयों में उपयोग किया जा रहा है।
नगर निगम ने करीब 60 लाख रुपये की कार्ययोजना तैयार की है। कमालपुर में 72 एमएलडी शोधन क्षमता का एसबीआर तकनीक का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट है। लगभग 65 एमएलडी सीवेज प्रतिदिन शोधित होता है। शोधित जल को एकत्र करने के लिए एसटीपी के नजदीक एक बड़ा टैंक बनाया जाएगा। मशीनों से एसटीपी के शोधित जल को पुन शोधित करके टैंक में होगा। इसी शोधित जल को टैंकरों में भरकर पेड़-पौधों की सिंचाई, सड़क पर पानी छिड़काव में उपयोग होगा। एसटीपी से एक पाइप लाइन डालकर आसपास के खेतों की सिंचाई के लिए भी यही शोधित जल किसानों को दिया जाएगा। वहीं भविष्य में यही शोधित जल औद्योगिक इकाइयों तक भी पहुंचाया जाएगा।
बायोरेमेडिएशन तकनीक कारगर नहीं
शहर के नालों की गंदगी को दूर करने के लिए नगर निगम ने सालभर बायोरेमेडिएशन तकनीक के अंतर्गत कसेरूखेड़ा नाले पर रक्षापुरम एसटीपी के पास एक डोजिंग प्लांट लगाया था। इस प्लांट से 2000 लीटर पानी में प्रतिदिन 10 लीटर बायोकल्चर या ड्रेन क्लीनर मिलाकर नाले के पानी को साफ करने की योजना बनाई गई थी लेकिन यह प्रयास खानापूर्ति के तौर पर चल रहा है। बिजली से संचालित इस प्लांट के संचालन व देखरेख के लिए कंपनी ने दो कर्मचारी तैनात किए हुए हैं। जिस पर पूरी तरह से प्रतिमाह तीन लाख रुपये खर्च किए जा रहे लेकिन इसके बाद भी नाले में गंदगी और बदबू तैर रही है।
डॉ। अमित पाल शर्मा, नगर आयुक्त